Badrinath Dham: सेना के बैंड धुन और बद्रीविशाल के नारों के साथ खुले बद्रीनाथ के कपाट, जानिए क्यों हर साल ये बंद किए जाते हैं
आज सुबह 7:10 मिनट पर सेना के बैंड धुन और बद्रीविशाल के नारों के साथ कपाटों को खोला गया. इस मौके पर बद्रीनाथ धाम मंदिर को 15 क्विंटल फूलों से सजाया गया था.
सेना के बैंड धुन और बद्रीविशाल के नारों के साथ खुले बद्रीनाथ के कपाट, जानिए क्यों हर साल ये बंद किए जाते हैं
सेना के बैंड धुन और बद्रीविशाल के नारों के साथ खुले बद्रीनाथ के कपाट, जानिए क्यों हर साल ये बंद किए जाते हैं
उत्तराखंड के चार धामों की यात्रा 22 अप्रैल से शुरू हो चुकी है. गंगोत्री, यमुनोत्री और केदारनाथ के धाम को पहले ही भक्तों के लिए खोल दिया गया था. आज 27 अप्रैल को बद्रीनाथ के कपाट भी खोल दिए गए. इस मौके पर बद्रीनाथ धाम मंदिर को 15 क्विंटल फूलों से सजाया गया था. आज सुबह 7:10 मिनट पर सेना के बैंड धुन और बद्रीविशाल के नारों के साथ कपाटों को खोला गया. बदरी विशाल के कपाट खुलने के साक्षी बनने के लिए भक्तों में काफी उत्साह था. एक दिन पहले ही हजारों भक्त बाबा बद्री के दर्शन के लिए धाम में पहुंच गए थे. आइए आपको बताते हैं कि क्यों हर साल बाबा बद्रीविशाल के कपाट बंद किए जाते हैं.
#WATCH | The portals of Badrinath Dham opened amid melodious tunes of the Army band and chants of Jai Badri Vishal by the devotees. pic.twitter.com/hoqrP2Tpyq
— ANI (@ANI) April 27, 2023
हर साल कपाट बंद होने की वजह
दरअसल बद्रीनाथ धाम करीब 3,300 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. ऐसे में ठंड का मौसम आने पर यहां का वातावरण बहुत ठंडा हो जाता है और बर्फबारी होती है. इस कारण श्रद्धालुओं की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए हर साल शीतकाल में इस मंदिर को बंद कर दिया जाता है. बद्रीनाथ धाम के अलावा उत्तराखंड के बाकी तीनों धाम केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री भी शीतकाल में बंद रहते हैं. हर साल विजयादशमी पर बद्रीनाथ धाम के कपाट शीतकाल के लिए बंद करने की तिथि घोषित की जाती है. कपाट बंद करने से पहले बद्रीविशाल की मूर्ति का श्रंगार किया जाता है और माता लक्ष्मी को सखी के तौर पर सजाया जाता है, इसके बाद माता लक्ष्मी को बाबा बद्री विशाल के पास गर्भ गृह में स्थापित किया जाता है.
कपाट बंद होने के बाद भी होती है पूजा
बद्रीनाथ धाम में 6 माह तक नर पूजा और 6 माह देव पूजा की मान्यता है. ग्रीष्म काल में मंदिर के दर्शन करने के लिए दूर-दूर से भक्त यहां पहुंचते हैं. मंदिर के मुख्य पुजारी भगवान की पूजा करते हैं. लेकिन शीतकाल में बद्रीविशाल की पूजा का अधिकार देवताओं का होता है. शीतकाल में देवताओं के प्रतिनिधि के रूप में नारद जी बद्रीनाथ भगवान की पूजा करते हैं और माता लक्ष्मी उनकी सेवा करती हैं. इस दौरान मंदिर के आसपास किसी को रहने की इजाजत नहीं होती है. इस बीच मंदिर परिसर के आसपास केवल साधु संत ही तपस्या करते हैं. जो सुरक्षा के लिए बद्रीनाथ धाम में रहते हैं, उन्हें भी मंदिर परिसर से दूर रहने की अनुमति दे दी जाती है.
बद्रीनाथ की कथा
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कहा जाता है कि जिस जगह पर बद्रीनाथ धाम है, उस जगह पर कभी भगवान विष्णु ने कठोर तप किया था. उस समय माता लक्ष्मी ने बदरी यानी बेर का पेड़ बनकर नारायण को छाया प्रदान की थी. तप पूरा होने के बाद भगवान विष्णु ने माता लक्ष्मी से कहा था कि ये जगह आने वाले समय में बद्रीनाथ के नाम से जानी जाएगी.
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09:36 AM IST