वैशाख के महीने में शुक्‍ल पक्ष की तृतीया को अक्षय तृतीया (Akshaya Tritiya) के तौर पर मनाया जाता है. इस दिन को आखा तीज के नाम से भी जाना जाता है. धार्मिक रूप से इस दिन को बेहद शुभ माना गया है. माना जाता है कि इस दिन जो भी शुभ काम किए जाते हैं उनका क्षय नहीं होता. इसलिए इस दिन लोग गंगा स्‍नान, दान-पुण्‍य आदि काम करते हैं. अक्षय तृतीया के दिन सोना खरीदने (Gold Purchasing on Akshaya Tritiya) का भी चलन है. इस साल अक्षय तृतीया का पर्व 22 अप्रैल को मनाया जाएगा. आइए आपको बताते हैं कि अक्षय तृतीया के दिन सोना क्‍यों खरीदा जाता है और सोने की खरीददारी का शुभ मुहूर्त क्‍या है.

लक्ष्‍मी-नारायण की पूजा का दिन (Lakshmi Narayan Puja on Akshaya Tritiya)

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अक्षय तृतीया को देवी लक्ष्‍मी और नारायण की पूजा का दिन माना जाता है. इसी दिन बद्रीनाथ के कपाट खुलते हैं. माना जाता है कि इस दिन लक्ष्‍मी नारायण की पूजा करने से घर में सुख-शांति और बरकत आती है. तमाम पाप कटते हैं और घर में समृद्धि आती है. इसके अलावा इस दिन व्‍यक्ति जो भी पूजा, दान और शुभ काम करता है, उसका पुण्‍य कभी क्षीण नहीं होता.

क्‍यों खरीदा जाता है सोना (Why gold is bought on Akshaya Tritiya)

ज्‍योतिषाचार्य डॉ. अरविंद मिश्र का कहना है कि धरती पर धन-दौलत, सोना-चांदी वगैरह को माता लक्ष्‍मी का स्‍वरूप माना गया है. ऐसे में माना जाता है कि अगर अक्षय तृतीया के दिन सोना-चांदी खरीदा जाए तो उसका कभी क्षय नहीं होता. घर में हमेशा माता लक्ष्‍मी की कृपा बनी रहती है और घर धन-धान्‍य से भरा रहता है. इससे आपके जीवन में सौभाग्य और समृद्धि आती है. ऐसा माना जाता है कि इस दिन ब्रह्म देव के पुत्र अक्षय कुमार की उत्पत्ति भी हुई थी. इसलिए इस दिन को अक्षय तृतीया कहा जाता है. इस दिन परशुराम जयंती भी मनाई जाती है.

पूजा और स्‍वर्ण खरीददारी का शुभ मुहूर्त (Akshaya Tritiya Puja and God Purchasing Shubh Muhurat)

वैशाख के महीने की शुक्‍ल पक्ष की तृतीया तिथि 22 अप्रैल 2023 सुबह 07:49 बजे से शुरू होगी और 23 अप्रैल 2023 को सुबह 07:47 बजे समाप्‍त होगी. इस दिन पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 07:49 से दोपहर 12:20 तक है. वहीं सोने की खरीददारी के लिए शुभ मुहूर्त सुबह 07 बजकर 49 मिनट से शुरू होकर 23 अप्रैल को सुबह 05 बजकर 48 मिनट तक रहेगा. 

अक्षय तृतीया पूजा विधि (Akshaya Tritiya Worship Method)

अक्षय तृतीया के दिन सुबह स्नान आदि से निवृत्त होने के बाद स्वच्छ वस्त्र पहनें. एक चौकी पर नारायण और माता लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करें. उनको पंचामृत और गंगाजल से स्नान कराएं. इसके बाद चंदन और इत्र लगाएं. पुष्प, तुलसी, हल्दी या रोली लगे चावल, दीपक, धूप आदि अर्पित करें. संभव हो तो सत्यनारायण की कथा का पाठ करें या गीता पढ़ें. पंचामृत, पंजीरी और खीर आदि का भोग लगाएं. अंत में आरती करके अपनी भूल की क्षमा याचना करें. इसके बाद दान आदि शुभ काम करें.

 

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