पिछले कई सालों में भारत में स्टार्टअप (Startup) कल्चर तेजी से बढ़ा है. इसी के चलते मोदी सरकार ने साल 2016 में स्टार्टअप इंडिया (Startup India) की भी शुरुआत की थी. स्टार्टअप इंडिया के अनुसार इस वक्त देश में करीब 1 लाख रजिस्टर्ड स्टार्टअप हैं. आप भी आए दिन कई स्टार्टअप की खबरें सुनते होंगे, तो आपको पता चलता होगा कि उसे नुकसान हो रहा है. यह भी देखने को मिला है कि कई स्टार्टअप तो ऐसे हैं जो बहुत बड़े हैं, लेकिन आज तक उन्हें फायदा नहीं हुआ. पेटीएम, जोमैटो, बायजूज़, क्रेड कुछ ऐसे ही नाम हैं, जो हैं तो बहुत बड़े, लेकिन वह नुकसान झेल रहे हैं. हालांकि, इनमें निवेशक लगातार निवेश (Investment in Startups) भी करते रहते हैं. सवाल ये उठता है कि आखिर निवेशकों को ऐसी कंपनियों में क्या दिखता है?

नुकसान क्यों उठाते हैं स्टार्टअप?

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स्टार्टअप एक ऐसा बिजनेस होता है, जो किसी बड़ी समस्या के समाधान के लिए शुरू होता है. यानी स्टार्टअप किसी ना किसी समस्या के समाधान के लिए शुरू होता है. स्टार्टअप का आइडिया बहुत ही यूनीक होता है, तो हर स्टार्टअप चाहता है कि उसे कोई दूसरा चुरा ले, उससे पहले ही पूरे मार्केट पर कब्जा कर लिया जाए. उनका डर होता भी लाजमी है. यूनीक आइडिया चोरी करने के लिए बहुत से लोग तैयार बैठे रहते हैं. ऐसे में अपना बिजनेस तेजी से बढ़ाने के लिए वह खूब सारा पैसा खर्च करते हैं, जिसके चलते वह मुनाफा नहीं कमा पाते और नुकसान उठाते हैं.

नुकसान के बावजूद कैसे मिल जाते हैं निवेशक?

जिस स्टार्टअप को तगड़ा नुकसान होने की खबर आती है, उसी के बारे में आपको ये भी सुननो को मिलता होगा कि उसमें किसी ने निवेश कर दिया. ये निवेश भी लगा रहता है. बहुत सारे निवेशक उन स्टार्टअप में पैसा लगाते रहते हैं. दरअसल, निवेशकों को इन स्टार्टअप्स का आइडिया इतना पसंद आता है कि उन्हें भविष्य में उस बिजनेस का स्कोप दिखने लगता है. उन्हें ये समझ आ जाता है कि भले ही स्टार्टअप को तगड़ा मुनाफा हो या ना हो, लेकिन वह स्टार्टअप तेजी से मार्केट पर कब्जा करने की ताकत रखता है. इसी के चलते निवेशक पैसा लगाते चले जाते हैं और नुकसान होने के बावजूद स्टार्टअप बढ़ता चला जाता है.

तो कैसे मिलता है निवेशकों को रिटर्न?

निवेशकों को रिटर्न मिलता है स्टार्टअप की वैल्युएशन बढ़ने पर अपनी हिस्सेदारी बेचकर. कुछ निवेशक शुरुआती चरण में पैसे लगाते हैं और फिर किसी बड़े निवेशक को अपनी हिस्सेदारी बेच देते हैं. वहीं कई निवेशक ऐसे होते हैं जो स्टार्टअप में ढेर सारा पैसा लगाकर उसके बड़े होने और आईपीओ आने का इंतजार करते हैं. जैसे ही आईपीओ आता है तो उसमें ये निवेशक अपनी हिस्सेदारी बेचकर एग्जिट ले लेते हैं और उनके पैसों पर कई गुना रिटर्न मिल जाता है. कई निवेशकों को तो उसके बाद भी कंपनी के बहुत आगे जाने का स्कोप दिखता है तो वह अपने पैसे स्टार्टअप में लगाए रखते हैं और फिर एक सही मौका देखकर किसी बहुत बड़े निवेशक को सारी हिस्सेदारी मोटे दाम पर बेच देते हैं.

स्टार्टअप में सबकुछ है वैल्युएशन का खेल

स्टार्टअप में वैल्युएशन सिस्टम एक आम बिजनेस के वैल्युएशन से काफी अलग होता है. आम बिजनेस में वैल्युएशन निकालने के लिए कंपनी का रेवेन्यू, उसके असेट आदि को देखा जाता है, जबकि स्टार्टअप में ऐसा नहीं होता. स्टार्टअप में एक तरह वैल्युएशन का खेल मोल-भाव यानी नेगोसिएशन के हिसाब से चलता है. मान लीजिए एक स्टार्टअप शुरू होता है जो कुछ लाख रुपये लगाता है और फिर किसी को अपना आइडिया सुनाता है. निवेशक को आइडिया पसंद आता है और उसे यह बिजनेस करोड़ों का लगता है. मान लीजिए उस निवेशक ने इस बिजनेस को एक करोड़ का वैल्युएशन दे दिया. इसके कुछ समय बाद जब फाउंडर किसी दूसरे निवेशक के पास जाता है और अगर वह उसी बिजनेस को 10 करोड़ के वैल्युएशन पर कुछ हिस्सेदारी लेकर निवेश दे दे, तो अब बिजनेस की वैल्यू बैठे-बिठाए 10 करोड़ हो जाती है. इसी तरह ये प्रक्रिया चलती जाती है और जितनी बार फंड रेज किया जाता है, उनमें से अधिकतर बार वैल्युएशन बढ़ती जाती है.

वैसे वैल्युएशन देते वक्त तमाम निवेशक पूरी कैलकुलेशन करते हैं. वह ये भी देखते हैं कि कंपनी का रेवेन्यू क्या है, मुनाफा है या नहीं, कर्ज कितना है, टीम कैसी है और भी बहुत कुछ देखते हैं. लेकिन इन सब के बावजूद उनका वैल्युएशन देने का तरीका नेगोसिएशन ही रहता है. अगर आपने शार्क टैंक देखा होगा तो आपको पता ही होगा कि उसमें कैसे तमाम फाउंडर अपने स्टार्टअप के लिए एक वैल्युएशन तय कर के पैसे मांगते थे. इस तरह देखा जाए तो आपको पता चलेगा कि निवेशकों की असली कमाई कम वैल्युएशन पर हिस्सेदारी खरीदकर उसे ऊंचे वैल्युएशन पर बेचने से होती है.