स्टार्टअप्स (Startup) के इस दौर में आपने कई नाम सुने होंगे. कभी एमबीए चायवाला सुर्खियों में छा जाता है तो कभी बीटेक पानीपुरी वाली सोशल मीडिया पर वायरल होने लगती है. इसी बीच आज हम आपको बताने जा रहे हैं आईआईटी लॉन्ड्रीवाला (IIT Laundrywala) के बारे में. आईआईटी मुंबई से पढ़ाई करने के बाद इस शख्स ने लोगों के गंदे कपड़ों को धोकर अपनी किस्मत चमका ली. हम बात कर रहे हैं Uclean स्टार्टअप के फाउंडर अरुणाभ सिन्हा (Arunabh Sinha) की, जिन्होंने 1 करोड़ के पैकेज वाली नौकरी छोड़ जनवरी 2017 में लॉन्ड्री का बिजनेस शुरू किया. पिछले करीब 8 सालों में जीरो से शुरू हुआ ये स्टार्टअप आज 500 करोड़ रुपये का हो चुका है. कंपनी का दावा है कि यूक्लीन एशिया की सबसे बड़ी ड्राईक्लीनिंग चेन बन गई है.

Uclean से पहले शुरू किया था एक दूसरा स्टार्टअप

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अरुणाभ सिन्हा बताते हैं कि Uclean उनका पहला स्टार्टअप नहीं है. इससे पहले उन्होंने Franglobal नाम का एक स्टार्टअप शुरू किया था, जिसके जरिए वह इंटरनेशनल कंपनियों को भारतीय बाजार में लाते थे. इसके लिए वह पहले उन कंपनियों की मदद करते थे. अरुणाभ उन्हें बताते थे कि भारत का बाजार कैसा है, यहां कॉम्पटीशन क्या है और यहां प्राइसिंग कैसे होती है. उसके बाद उन्हें भारत में एक सही पार्टनर से मिलाते थे. जो भी कंपनियां वह भारत लाते थे, वह फ्रेंचाइजी मॉडल पर काम करती थीं. अरुणाभ भारत में उन्हें एक मास्टर फ्रेंचाइज पार्टनर बनाकर देते थे. इसके बाद ब्रांड इस पूरे काम के लिए उन्हें फीस चुकाते थे.

2015 में ले ली इस स्टार्टअप से एग्जिट

ये स्टार्टअप शुरू करने के बाद 2010 से ही अरुणाभ साउथ ईस्ट एशिया में काफी एक्टिव रहने लगे थे. इंडोनेशिया, मलेशिया और फिलीपीन्स उनका आना-जाना लगा ही रहता था. वहां का कल्चर, खाने-पीने का तरीका और यहां तक कि रहन-सहन भी भारत से काफी मिलता-जुलाता दिखा. उस समय अरुणाभ ने देखा कैसे वहां पर लॉन्ड्री बिजनेस बदल रहा है. अरुणाभ कहते हैं कि पहले वहां भी धोबी कल्चर ही था कपड़े धोने वालों को वहां भी धोबी ही कहा जाता था. 2010 से वहां ट्रांसफॉर्मेशन आया और छोटे-छोटे लॉन्ड्री स्टोर शुरू हो गए. ये सब अरुणाभ देख रहे थे, जो कहीं ना कहीं उनके दिमाग में बसता जा रहा था. 2015 में उनके निवेशकों ने ही कंपनी को खरीद लिया और उन्होंने अपने स्टार्टअप Franglobal से अच्छी एग्जिट ले ली. 

स्टार्टअप छोड़ करने लगे एक करोड़ वाली नौकरी

अपना स्टार्टअप बेचने के बाद अरुणाभ Treebo Hotels के नॉर्थ इंडिया बिजनेस हेड बन गए और कंपनी का सारा काम-काज देखने लगे. यहां पर वह 2-3 स्टार होटल के साथ काम करते थे. वह उन्हें मार्केटिंग में मदद करते थे, सेल्स में मदद करते थे और उम्मीद करते थे कि ये होटल ग्राहकों को अच्छी सेवा देंगे. Treebo Hotels बढ़ने लगा तो देखा गया कि 60 फीसदी शिकायतें लॉन्ड्री से जुड़ी हुई थीं. कभी बेडशीट गंदी होने की शिकायत तो कभी टॉवेल गंदा होने की शिकायत. ये सब देखकर अरुणाभ ने इसका समाधान निकालने की सोची और मार्केट की स्टडी करने लगे. उसके बाद पता चला कि ये करीब 35-40 अरब डॉलर की इंडस्ट्री है, लेकिन पूरी तरह से अनऑर्गेनाइज्ड है. ऐसे में उन्होंने एक बड़ा मौका देखा और करीब 15 महीनों की नौकरी के बाद Treebo Hotels को अलविदा कह दिया. जब उन्होंने नौकरी छोड़ी उस वक्त उनका पैकेज करीब 1 करोड़ रुपये का था. 

1 करोड़ की नौकरी छोड़ी और बन गए 'धोबी'

बाजार में मौका देखते ही अरुणाभ ने खुद का लॉन्ड्री बिजनेस Uclean शुरू कर दिया. इसमें उनकी मदद की उनकी पत्नी गुंजन सिन्हा ने और वह बन गईं कंपनी की को-फाउंडर. कंपनी ने पहला स्टोर दिल्ली के वसंत कुंज में खोला था. जब शुरुआत की गई तो मदर डेयरी के बूथ के पास में ही स्टोर खोला गया, ताकि अधिक से अधिक लोग उसे देख सकें. कंपनी ने अपने स्टोर में शीशे का दरवाजा लगाया, जिसके अंदर बड़ी-बड़ी लॉन्ड्री की मशीनें दिखती थीं. बहुत सारे लोग उत्सुकतावश मशीन देखने स्टोर जाने लगे और फिर धीरे-धीरे ऑर्डर आने शुरू हो गए. पैसे कम थे तो शीशे का दरवाजा लगाया और उस पर विज्ञापन भी नहीं किया, लेकिन पारदर्शी शीशे की वजह से ही लोग मशीनें देखने गए और फिर धीरे-धीरे दुकान में आने लगे. इसके बाद अरुणाभ ने हर स्टोर को ऐसा ही बनाना शुरू कर दिया, क्योंकि इससे उनके बिजनेस के बारे में लोगों को पता चलना शुरू हो गया.

'चुपके-चुपके रात दिन आंसू बहाना याद है'

ये कहानी 1990 के दशक की है, जो इस गाने से जुड़ी है. अरुणाभ सिन्हा के पिता पुराने गानों के बहुत शौकीन थे. हालांकि, एक बीमारी की वजह से उनकी सुनने की ताकत बहुत कम हो गई थी. अरुणाभ बताते हैं कि वह जहां रहते थे, पास में ही एक बड़े डॉक्टर का घर था. डॉक्टर साहब हर शाम टेप रिकॉर्डर पर एक गाना बजाते थे- 'चुपके-चुपके रात दिन आंसू बहाना याद है'. जैसे ही गाना बजना शुरू होता था, अरुणाभ की मां उनके पिता को बता देती थीं कि डॉक्टर साहब ने गाना बजा दिया है. पिता तुरंत दौड़कर डॉक्टर साहब की खिड़की के नीचे चले जाते थे और वहां खड़े होकर पूरा गाना सुनते थे. हर रोज ऐसा ही होता देख एक दिन अरुणाभ ने अपनी मां से कहा था कि हम एक टेप रिकॉर्डर क्यों नहीं खरीद लेते. उस वक्त उन्हें पता चला कि परिवार की आर्थिक हालत इतनी खराब थी कि वह एक टेप रिकॉर्डर भी नहीं खरीद सकते थे. 

उन दिनों आईआईटी की काफी बात होती थी. जमशेदपुर के ही एक शख्स ने आईआईटी निकाला था, जिसके बाद पेपर से लेकर नेताओं तक हर कोई उसकी बात करता था. तब अरुणाभ ने ठान लिया था कि उन्हें भी आईआईटी निकालना है. अरुणाभ बताते हैं कि वह जमशेदपुर से करीब 10 किलोमीटर दूर एक गांव डिम्ना में रहते थे. जहां एक ओर जमशेदपुर में अच्छी सड़क, पानी-बिजली सब था, वहीं डिम्ना में कुछ भी नहीं था. जमशेदपुर में ही टाटा स्टील भी था, जहां पहुंच जाने का मतलब था कि जिंदगी बन जाएगी. अरुणाभ उस वक्त बस यही सोचा करते थे कि कैसे वह अपने परिवार को डिम्ना से निकाल कर जमशेदपुर ले जाएं. हालांकि, जब वह आईआईटी बॉम्बे से पढ़ाई कर रहे थे, तब उन्हें अहसास हुआ कि दुनिया टाटा स्टील और जमशेदपुर से काफी बड़ी है.

कैसे काम करती है ये कंपनी?

Uclean का ऐप है, वेबसाइट है और कॉल सेंटर भी है, जहां से आप अपना ऑर्डर प्लेस कर सकते हैं. यहां तक कि तमाम स्टोर का नंबर भी है, जिन्हें सीधे फोन कर के भी ऑर्डर दे सकते हैं. वॉट्सऐप पर चैटबोट भी बनाया गया है, जिससे ऑर्डर प्लेस हो सकता है. ऑर्डर देने के बाद आपके घर डिलीवरी ब्वॉय आएगा और कपड़े ले जाएगा. कपड़े किलो के हिसाब से चार्ज होते हैं. करीब 24 घंटे बाद आपके कपड़े आपको वापस मिल जाएंगे. कपड़ों के अलावा ये कंपनी आपके घर का कार्पेट, सोफा, सॉफ्ट टॉय, बैग, शूट, कार जैसी चीजें भी क्लीन करनी है. सोफा, कार्पेट और कार जैसी जो चीजें स्टोर पर नहीं लाई जा सकतीं, उन्हें लोगों के घर जाकर क्लीन किया जाता है.

देश से लेकर विदेश तक कंपनी के हैं कुल 570 स्टोर 

अभी ये बिजनेस 155 शहरों में है, जो करीब 30 लाख ग्राहकों को सेवा देते हैं. आज की तारीख में यह कंपनी देश के हर राज्य में है. कम से कम एक स्टोर तो हर राज्य में है ही. कंपनी का बिजनेस सिर्फ देश में ही नहीं, बल्कि विदेश में भी है. नेपाल में कंपनी के 2 स्टोर हैं, बांग्लादेश में भी एक स्टोर खोला है. कंपनी का अपना खुद का सिर्फ एक स्टोर है, बाकी सभी फ्रेंचाइजी स्टोर हैं. कंपनी का स्टोर फरीदाबाद में ऑफिस के पास ही है, जो कंपनी का ट्रेनिंग सेंटर भी है. बता दें कि आज की तारीख में कंपनी के कुल 570 स्टोर हैं.

क्या है कंपनी का बिजनेस मॉडल?

कंपनी का बिजनेस मॉडल पूरी तरह से फ्रेंचाइजी पर आधारित है. भारत के अलग-अलग हिस्सों में फ्रेंचाइज पार्टनर बनाए जाते हैं. हालांकि, इसके लिए आपका उसी इलाके से होना जरूरी है, तभी आपको फ्रेंचाइजी मिलेगी. शुरुआत में 18-20 लाख रुपये का निवेश होता है, जिसमें मशीनरी, फ्रेंचाइजी फीस और स्टोर का पूरा सेटअप होता है. उसके बाद कंपनी की तरफ से टीम रिक्रूटमेंट और ट्रेनिंग दी जाती है, उसके बाद फ्रेंचाइजी के पेरोल पर ये टीम काम करती है. कंपनी की तरफ से फ्रेंचाइजी के लिए ऑनलाइन लीड जनरेट की जाती है. 

फ्रेंचाइजी लेने में किस चीज के लिए कितना खर्च?

हर फ्रेंचाइजी 6 लाख की फ्रेंचाइजी फीस देता है. ये पैसे ब्रांड नेम को इस्तेमाल करने के लिए चुकाए जाते हैं. कंपनी की तरफ से लोगों में जागरुकता फैलाने, मार्केटिंग, प्रमोशन और फेसबुक-गूगल पर ऑप्टिमाइजेशन यूक्लीन की जिम्मेदारी होती है. उसके बाद जितनी भी स्टोर की सेल होती है, उसका 7 फीसदी रॉयल्टी के रूप में कंपनी को मिलता है. यूक्लीन की फ्रेंचाइजी लेने के लिए आपके पास करीब 250-300 स्कवायर फुट की जगह होनी चाहिए. लॉन्ड्री, ड्राई क्लीनिंग, आयरन आदि की तमाम मशीनें लेने में आपको लगभग 9 लाख रुपये कंपनी को चुकाने होंगे. वहीं 4-5 लाख रुपये का खर्च स्टोर को बनाने में आएगा. यानी आपकी जेब से करीब 20 लाख रुपये खर्च होंगे. यूक्लीन की वेबसाइट से सीधे कंपनी की फ्रेंचाइजी के लिए अप्लाई किया जा सकता है. कंपनी का दावा है कि स्टोर लेवल पर करीब 3 महीने में स्टोर मुनाफे में आ जाता है और 18-20 महीने में आपका पूरा इन्वेस्टमेंट रिकवर हो जाता है.

कितनी मिली फंडिंग? कौन हैं निवेशक?

कंपनी के शुरुआती निवेशकों में कुणाल खेमू और सोहा अली खान हैं. वहीं फ्रेंचाइज इंडिया के साथ-साथ राजीव जालान और अनुभव चोपड़ा जैसे एंजेल निवेशकों ने कंपनी में करीब 12 करोड़ रुपये का निवेश किया है. कंपनी के बिजनेस मॉडल में अच्छी बात ये है कि फ्रेंचाइजी मॉडल होने की वजह से कंपनी को लगातार पैसे मिलते रहते हैं, ऐसे में कंपनी का कैश फ्लो पॉजिटिव बना रहता है.

यूक्लीन पाठशाला से दूसरों को दे रहे रोजगार

कंपनी का दावा है कि वह बहुत सारे लोगों को रोजगार भी मुहैया कराती है. अरुणाभ ने बताया कि बिहार, झारखंड, ओडिशा और पश्चिम बंगाल के कई एनजीओ के साथ कंपनी ने पार्टनरशिप की है. उनके जरिए लोगों को हायर किया जाता है, उनके रहने-खाने का पूरा खर्चा उठाया जाता है और ट्रेनिंग दी जाती है. ट्रेनिंग के बाद उन्हें किसी ना किसी स्टोर पर कम से कम 15 हजार रुपये की सैलरी पर नौकरी लगवा दी जाती है. कंपनी ने पिछले दो सालों में 250 से ज्यादा लोगों को नौकरी दिलाई है और अगले 4-5 साल में 10 हजार लोगों तक को नौकरी दिलाने की कंपनी की योजना है.