अगर दुनिया की बात करें तो स्टार्टअप (Startup) ईकोसिस्टम के मामले में अमेरिका और चीन के बाद भारत का स्टार्टअप ईकोसिस्टम तीसरा सबसे बड़ा है. हालांकि, जैसे ही 2022 में ग्लोबल मंदी (Global Recession) की शुरुआत हुई, उसी के साथ स्टार्टअप ईकोसिस्टम पर बहुत ही बुरा असर देखने को मिला. तमाम स्टार्टअप्स की फंडिंग (Funding) रुक गई. नतीजा ये हुआ कि फंडिंग की कमी के चलते इन स्टार्टअप्स को कॉस्ट कटिंग करनी पड़ी. ऐसे में बार-बार कॉकरोच स्टार्टअप (Cockroach Startup) का जिक्र हो रहा है, जो डायनासोर से भी ताकतवर होते हैं. आइए जानते हैं इसके बारे में सब कुछ.

क्या होते हैं कॉकरोच स्टार्टअप?

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इन स्टार्टअप का नाम कॉकरोच पर पड़ा है. जिस तरह कॉकरोच में हर मौसम में जिंदा रह पाने की काबिलियत होती है, वैसे ही कॉकरोच स्टार्टअप में हर तरह के हालात से लड़ने की क्षमता होती है. यह स्टार्टअप अर्थव्यवस्था में बदलाव से बेपरवाह होते हैं. यह स्टार्टअप समझते हैं कि कहां पैसा खर्च करना है और कहां नहीं और कब पैसा खर्च करना है. विपरीत हालात में भी ये स्टार्टअप खर्च में कटौती कर के अपने बिजनेस को बनाए रखते हैं और धीरे-धीरे बढ़ाते रहते हैं.

'कॉकरोच स्टार्टअप' की बढ़ी मांग

अभी तक तमाम निवेशक यूनिकॉर्न स्टार्टअप्स (1 अरब डॉलर से ज्यादा वैल्युएशन वाले) को पैसा लगाने की पहली पसंद मानते थे. हालांकि, फंडिंग विंटर के इस दौर में, जब स्टार्टअप्स के हालात खराब हैं, निवेशकों के लिए पैसा लगाने का पहला विकल्प कॉकरोच स्टार्टअप बन गए हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि निवेशकों को अपने पैसों पर अच्छा रिटर्न चाहिए होता है और कॉकरोच स्टार्टअप इन खराब हालात में भी अच्छा बिजनेस करते हुए शानदार रिटर्न देने की काबिलियत रखते हैं. 

थोड़ा कॉकरोच के बारे में भी जान लीजिए

तमाम वैज्ञानिकों का मानना है कि डायनासोर से भी 32 करोड़ साल पहले से कॉकरोच धरती पर हैं. इनकी खूबी ये होती है कि ये किसी भी मौसम और परिस्थिति में जिंदा रह सकते हैं. अगर एक कॉकरोच का सिर धड़ से अलग हो जाए तो भी वह चंद मिनटों या घंटों नहीं, बल्कि 7 दिनों तक जिंदा रह सकता है. अगर उसके बाद भी इन्हें पानी मिलता रहे तो यह और दिनों तक जिंदा रह सकता है. अगर कॉकरोच को कुछ खाने को ना मिले तो भी यह 30 दिन तक जिंदा रह सकता है. ये कितना बर्दास्त कर सकते हैं, इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा लें कि परमाणु विस्फोट में भी यह अपनी जान बचाने में कामयाब हो जाते हैं

एक कॉकरोच की तरह ही कॉकरोच स्टार्टअप लंबे वक्त तक जिंदा रहते हैं. बिना खाने के यानी बिना पैसों या बहुत कम पैसों में भी अपना गुजारा कर लेते हैं. जैसे कॉकरोच परमाणु युद्ध में भी जिंदा बच जाते हैं, वैसे ही कॉकरोच स्टार्टअप परमाणु युद्द जैसे हालात में भी अपने बिजनेस को नुकसान से बचाते हुए धीरे-धीरे आगे बढ़ते रहते हैं. इन स्टार्टअप का रेवेन्यू मॉडल बहुत मजबूत होता है और साथ ही मैनेजमेंट बहुत खास होता है.

कैसे काम करते हैं कॉकरोच स्टार्टअप?

कॉकरोच स्टार्टअप सबसे पहले तो फिक्स्ड असेट में पैसा लगाने से बचते हैं. वह ऑफिस खरीदने या किराए पर ऑफिस लेने के बजाय को-वर्किंग स्पेस से काम करते हैं. वह अपने पैसों का सबसे ज्यादा इस्तेमाल टैलेंट हायर करने में करते हैं और मुनाफा बढ़ाते हैं. यह स्टार्टअप तेजी से पैसे बर्न करते हुए बड़ा बनने के चक्कर में नहीं पड़ते. इसी वजह से यह हड़बड़ी में पैसे बर्बाद कर के जगह-जगह असेट नहीं बनाते, जिससे इनकी जिम्मेदारियां बढ़ जाएं. वह इंतजार करते हैं सही समय का, जब वह किसी फिक्स्ड असेट में बेहद किफायदी दरों पर पैसों लगा सकें. ये स्टार्टअप वैल्युएशन पर फोकस नहीं करते, बल्कि इनका मुख्य फोकस रेवेन्यू को बढ़ाते रहने पर होता है.