Insurance Samadhan: क्लेम रिजेक्ट होने पर पैसे निकलवाता है ये Startup, 15 हजार लोगों के खातों में जा चुके हैं ₹100 करोड़ से भी ज्यादा
जब इंश्योरेंस क्लेम रिजेक्ट होता है तो जरूरत पड़ती है किसी ऐसे शख्स की या ऐसी संस्था की जो मदद के लिए आगे आए. स्टार्टअप की दुनिया में लगभग हर प्रॉब्लम का एक सॉल्यूशन जरूर है. ऐसे में इंश्योरेंस से जुड़ी इस समस्या का समाधान कर रहा है इंश्योरेंस समाधान (Insurance Samadhan). इंश्योरेंस समाधान लोगों को क्लेम दिलाने में उनकी मदद करता है.
कोई भी शख्स इंश्योरेंस (Insurance) पॉलिसी इसलिए लेता है, ताकि उसके बाद उसके परिवार को परेशान ना होना पड़े. हालांकि, ऐसे कई मामले देखने को मिले हैं, जिनमें इंश्योरेंस पॉलिसी होने के बावजूद व्यक्ति की मौत के बाद उसके परिवार को क्लेम के पैसे नहीं मिलते. अधिकतर मामलों में क्लेम रिजेक्ट होने की जायज वजह होती है, लेकिन कई बार देखने को मिला है कि इंश्योरेंस कंपनियां गलत वजह से भी क्लेम को रिजेक्ट कर देती हैं. हेल्थ इंश्योरेंस के मामलों में भी देखने को मिला है कि जब लोगों को पैसों की जरूरत होती है, उस वक्त इंश्योरेंस कंपनी लोन चुकाने से मना कर देती है. ऐसे में यहां जरूरत पड़ती है किसी ऐसे शख्स की या ऐसी संस्था की जो मदद के लिए आगे आए. स्टार्टअप की दुनिया में लगभग हर प्रॉब्लम का एक सॉल्यूशन जरूर है. ऐसे में इंश्योरेंस से जुड़ी इस समस्या का समाधान कर रहा है इंश्योरेंस समाधान (Insurance Samadhan). इंश्योरेंस समाधान लोगों को क्लेम दिलाने में उनकी मदद करता है.
इंश्योरेंस समाधान की शुरुआत 15 अगस्त 2018 को यूपी के नोएडा में हुई थी. जब कंपनी की शुरुआत हुई उस वक्त कंपनी के चार को फाउंडर्स थे- संजय अग्रवाल, शिल्पा अरोरा, शैलेश कुमार और दीपक भुवनेश्वरी उनियाल. साल 2019 में कंपनी ने रवि माथुर को सीटीओ के तौर पर हायर किया और 2021 में उन्हें भी को-फाउंडर की तरह प्रमोट कर दिया गया. इस स्टार्टअप ने पिछले साल करीब 175 करोड रुपए की वैल्यू की शिकायतें रजिस्टर की हैं. अगर बात करें रेवेन्यू की तो पिछले वित्त वर्ष में कंपनी ने 4.3 करोड़ रुपये का रेवेन्यू हासिल किया है. दिल्ली-एनसीआर का ये स्टार्टअप इस वक्त पूरे देश में अपनी सेवाएं दे रहा है करीब 2 महीने पहले कंपनी ने दुबई में भी अपने ऑपरेशन स्टार्ट कर दिए हैं.
कैसे आया इंश्योरेंस समाधान का आइडिया?
इंश्योरेंस समाधान के को-फाउंडर दीपक बताते हैं कि उन्होंने 2005 में इंश्योरेंस इंडस्ट्री ज्वाइन की थी, शैलेश भी वहीं काम करते थे. वह कनॉट प्लेस में मैक्स इंश्योरेंस के सेल्स ऑफिस में काम करते थे. साल 2006 में शिल्पा अरोड़ा ने भी उस ऑफिस को ज्वाइन कर लिया. वहां पर काम करने के दौरान 2005 से लेकर 2010 तक तीनों ने पाया कि इंश्योरेंस को लेकर काफी मिस-सेलिंग हो रही है यानी गलत तरीके से इंश्योरेंस बेच दिए जा रहे हैं. ऐसा नहीं है कि सिर्फ ग्राहकों को ही इंश्योरेंस की पूरी जानकारी नहीं है, बल्कि कई सारे एंजेंट्स को भी पूरी जानकारी नहीं होती और वह गलत वादों के साथ इंश्योरेंस बेच देते हैं. ऐसे में जब बारी आती है क्लेम की, तो क्लेम रिजेक्ट होने लगते हैं. दीपक ने साल 2010 में नौकरी छोड़ दी और उसी कंपनी के लिए इंश्योरेंस एडवाइजर बनकर सेवाएं देने लगे. वहीं शैलेश और शिल्पा उसी कंपनी में काम करते रहे.
साल 2010 से लेकर 2017 तक काम करने के दौरान दीपक ने देखा कि भले ही कोई कितना भी बड़ा अधिकारी हो या कितना भी पढ़ा-लिखा हो, उसके साथ इंश्योरेंस की मिस-सेलिंग हो रही है. साल 2014 में दीपक को दिल्ली पुलिस के एक अधिकारी से शिकायत मिली. उनके 70 साल के पिता के साथ 6 साल तक मिस-सेलिंग होती रही. उन्हें एफडी के नाम पर 42 पॉलिसी बेच दी गई थीं और 38 लाख रुपये का प्रीमियम ले लिया था. जब उन्हें पता चला कि यह एफडी नहीं है, तो उन्हें दिल का दौरा पड़ गया, जिससे उनकी मौत हो गई. जब उस पुलिस अधिकारी को इसका पता चला उनकी भी तबियत खराब हो गई. उसके बाद सबसे पहले पुलिस में शिकायत की गई, लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद वह एक भी पैसा रिकवर नहीं करवा पाए. जब वह दीपक और शैलेश के पास अपनी शिकायत लेकर आए तो दोनों ने मिलकर करीब साढ़े 5 महीने में उनके सारे के सारे 38 लाख रुपये उन्हें वापस दिला दिए. उस वक्त हमें इस बात का अहसास हुआ कि जब पुलिस खुद भी अपने पैसे नहीं निकलवा पाई तो ये समस्या कितनी बड़ी है.
साल 2014 के इस ट्रिगर प्वाइंट के बाद ही दीपक और शैलेश ने मिलकर ये तय किया कि जब शैलेश रिटायर होंगे तो कुछ ऐसा ही बिजनेस शुरू करेंगे, जिससे लोगों की मदद की जा सके. मिस-सेलिंग का मामला कितना बड़ा है, इसका अंदाजा आप इस बाद से भी लगा सकते हैं कि कंपनी के को-फाउंडर संजय अग्रवाल के साथ भी ऐसा हुआ था. साल 2011 में इनकी मुलाकात संजय के साथ हुई थी, जो हाईकोर्ट के वकील थे. उनकी भी समस्या का दीपक और शैलेश ने समाधान किया था. साल 2017 में इंश्योरेंस समाधान नाम से कंपनी को रजिस्टर किया गया और फिर करीब 8-10 महीने तक होमवर्क किया गया. आखिरकार 15 अगस्त 2018 को कंपनी की शुरुआत कर दी गई. दीपक बताते हैं कि 15 अगस्त का दिन चुने की एक वजह देशभक्ति तो है ही, साथ ही एक बड़ी वजह ये भी है कि वह इंश्योरेंस ना मिलने से दुख से सभी को आजादी दिलाना चाहते थे. यही वजह है कि सभी को-फाउंडर ने मिलकर 15 अगस्त के दिन को स्टार्टअप की शुरुआत करने के लिए चुना.
कंपनी ने बनाया पॉलिसी पढ़ने वाला ऐप
इस स्टार्टअप ने एक बहुत ही शानदार ऐप बनाया है, जिसका नाम रखा है पॉलीफिक्स. इस ऐप में कई शानदार फीचर हैं. आप इसके तहत अपने किसी फैमिली मेंबर को भी इसमें जोड़ सकते हैं. इस तरह आपकी पॉलिसी को लेकर उनके पास भी नोटिफिकेशन जाएगा, जिससे उन्हें पता चल सकेगा कि आपने कौन-कौन सी पॉलिसी ली हुई हैं. साथ ही इस ऐप में आप अपनी पॉलिसी अपलोड कर सकते हैं और वह इसे रीड कर के बता देगा कि पॉलिसी में कोई एरर है या नहीं. इसके लिए कंपनी ने भारत में पहली बार ऐसा ओसीआर बनाया है, जो इंश्योरेंस से जुड़े मुश्किल शब्दों को पढ़ सके.
कंपनी का बिजनेस मॉडल क्या है?
अगर मौजूदा वक्त की बात करें तो पूरे एशिया में इंश्योरेंस समाधान जैसा काम कोई नहीं कर रहा है. इस कंपनी ने अब तक 15 हजार से भी अधिक शिकायतों का निपटारा किया है और ग्राहकों के खाते में 100 करोड़ रुपये से भी अधिक की राशि पहुंचाई है. जब भी किसी ग्राहक को इंश्योरेंस समाधान की सेवाएं लेनी होती हैं तो वह कंपनी को अप्रोच करते हैं. जिन 15 हजार शिकायतों का कंपनी ने निपटारा किया है, वह लोग कंपनी की पब्लिसिटी करते हैं और उन्हीं के जरिए लोग कंपनी तक पहुंचते हैं. बता दें कि कपनी अपने ग्राहकों को वीडियो और टेक्स्ट टेस्टिमोनियल्स को अपनी वेबसाइट पर डालते हैं और सोशल मीडिया पर प्रमोट भी करते हैं. इसके अलावा कंपनी ने कुछ इनहाउस एजुकेशन सीरीज भी बनाई है, जिसके जरिए कंपनी लोगों तक पहुंच रही है.
जब भी कोई ग्राहक कंपनी की वेबसाइट पर आता है तो वहां पर सबसे पहले उससे कुछ सवाल पूछे जाते हैं. इन सवालों के जरिए ये पता लगाने की कोशिश की जाती है कि ग्राहक की शिकायत सही है भी या नहीं. दरअसल, कई बार हमें लगता है कि हमें क्लेम नहीं मिला और गलत हुआ है, लेकिन कई मामलों में ऐसा नहीं होता है. अगर ग्राहक की शिकायत सही लगती है तो ही उसे स्वीकार किया जाता है और फिर उस पर कंपनी काम करती है. इसके बाद पहले शिकायत कंपनी के पास भेजी जाती है, अगर वहां बात नहीं बनती तो इसे आगे ओमबुड्मैन (ombudsman) तक ले जाते हैं और फिर कंज्यूमर कोर्ट का रुख करते हैं.
कई बार क्लेम रिजेक्ट होने की वजह ये होती है कि लोग अपनी समस्या को ठीक से समझा नहीं पाते. जैसे मोटापे की सर्जरी को इंश्योरेंस कंपनियां यह कहकर रिजेक्ट कर देती हैं कि यह तो लाइफस्टाइल का मामला है, जबकि अगर वजन बहुत अधिक हो जाता है तो वह हेल्थ इश्यू होता है और सर्जरी जरूरो ही जाती है. इसी तरह नींद ना आने को लेकर भी होता है. ऐसे में इंश्योरेंस समाधान सही तरीके से ग्राहकों की समस्या को कंपनी को बताता है और फिर ग्राहकों को मदद मुहैया कराई जाती है.
कैसे होती है कंपनी की कमाई?
कंपनी की कमाई तब होती है, जब वह किसी शिकायत का निपटारा कर देती है और फिर ग्राहक के खाते में पैसे आ जाते हैं. कंपनी की तरफ से कुल अमाउंट का 12 फीसदी जीएसटी के साथ ग्राहक से चार्ज किया जाता है. अगर कोई ग्राहक कंपनी के किसी पार्टनर के जरिए कंपनी के पास आता है तो उससे कोई भी अतिरिक्त चार्ज नहीं लिया जाता है. वहीं अगर कोई ग्राहक सीधे कंपनी से संपर्क करता है तो उसे 500 रुपये की रजिस्ट्रेशन फीस भी देनी होती है. दीपक बताते हैं कि यह फीस सिर्फ इसलिए ली जाती है ताकि शिकायत करने वाला सिर्फ शिकायत रजिस्टर करवाकर कहीं और व्यस्त ना हो जाए, क्योंकि कंपनी तो अपनी फीस पैसे निकलवाने के बाद चार्ज करती है. ऐसे में जब कोई ग्राहक पैसे देकर रजिस्टर होने के बाद सेवा लेता है तो वह भी पूरी गंभीरता के साथ अपने मुद्दे पर काम करता है. अगर बात की जाए कंपनी की यूनिट इकनॉमिक्स को कंपनी पिछले करीब साढ़े 3 साल से यूनिट इकनॉमिक्स पॉजिटिव है.
चुनौतियां भी कम नहीं
जिस तरह हर बिजनेस में कुछ ना कुछ चुनौतियां रहती हैं, वैसे ही इस बिजनेस में भी चुनौतियां देखने को मिलीं. शुरुआत में जब इंश्योरेंस समाधान की शुरुआत हुई तो इंडस्ट्री का रिएक्शन काफी अजीब था. वह सोच रहे थे कि कहीं ये कंपनी उनके ग्राहकों को भड़काने का काम तो नहीं करेगी. कहीं ऐसा तो नहीं कि इससे उनका बिजनेस खराब हो जाएगा. हालांकि, धीरे-धीरे इंडस्ट्री को समझ आया कि हम ऐसा कुछ नहीं करते हैं. दीपक बताते हैं कि इंश्योरेंस समाधान खुद से किसी को फोन कर के उसे किसी तरह का ऑफर नहीं देती है, बल्कि जब लोग अपनी शिकायत लेकर कंपनी के पास आते हैं तो वह उन्हें सुविधा देती है. दीपक बताते हैं कि इंश्योरेंस समाधान का सक्सेस रेट 70 फीसदी से भी अधिक है. इन सबके बावजूद इस स्टार्टअप के लिए अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचा एक बड़ी चुनौती बनी हुई है. यह स्टार्टअप विज्ञापन और ब्रांडिंग पर बहुत ज्यादा पैसे नहीं खर्च करता है.
फंडिंग और फ्यूचर प्लान
इंश्योरेंस समाधान ने अब तक कुल 35 करोड़ रुपये की फंडिंग उठाई है. आने वाले दिनों में कंपनी का प्लान मिडिल ईस्ट और अफ्रीका के बाजार तक पहुंच बनाना है. इंश्योरेंस रिजेक्ट होने की दिक्कत सिर्फ भारत की नहीं है, बल्कि पूरी दुनिया में ऐसा होता है. ऐसे में अगले 9-10 महीनों में कंपनी अपना बिजनेस मिडिल ईस्ट और अफ्रीका तक ले जाने का प्लान कर रही है. साथ ही कंपनी अपने पार्टनर्स की संख्या बढ़ाना चाहती है. कंपनी कई बैंकों के साथ भी बात कर रही है, जो इंश्योरेंस समाधान को एक एडेड एडवांटेज की तरह अपने प्रोडक्ट के साथ ऑफर कर सकते हैं.