Jagannath Rath Yatra: भारतीय रेलवे हल साल देश के विभिन्न हिस्सों से स्पेशल ट्रेन चलाकर ओडिशा के विश्व प्रसिद्ध जग    न्नाथ रथ यात्रा (Jagannath Rath Yatra) में श्रद्धालुओं के जाने की व्यवस्था करती है. इसके अलावा रेलवे रथ यात्रा के दौरान पैसेंजर्स को अतिरिक्त सुविधाएं, अतिरिक्त टिकट बुकिंग काउंटर और रिजर्वेशन काउंटर, स्टेशन पर पैसेंजर्स के ठहरने की व्यवस्था और इसके सर्कुलेटिंग एरिया में बाकी पैसेंजर्स के भी व्यवस्था करती है. लेकिन भारतीय रेलवे बस अतिरिक्ट ट्रेनें चलाकर ही रथ यात्रा में भाग नहीं लेती है, बल्कि प्रत्यक्ष रूप से भी इसमें भाग लेती है. जी हां, आपको जानकर आश्चर्य होगा कि   रेलवे डंडों के ऊपर चलने वाली इस विशाल रथों को चलाने के लिए भी एक बुहत ही आवश्यक सहायता करती है. 

ईस्ट कोस्ट के 40 अधिकारियों को मिली जिम्मेदारी

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हर साल रथ यात्रा के समय ईस्ट कोस्ट रेलवे (East Coast Railway) की एक टीम रथों को बनाने के लिए और उनके किसी भी तरह की बाधा को दूर करने के लिए अपने उपकरणों के साथ जाती है. ईस्ट कोस्ट रेलवे के मैकेनिकल विभाग के 40 समर्पित कर्मचारियों की एक टीम को इस साल ये जिम्मेदारी सौंपी गई है.

क्या है इतिहास

बता दें कि 1960 के दशक की शुरुआत में, रथ यात्रा के दौरान एक बिजली का खंभा रथ से उलझ गया था, जिसके चलते इसके पहिए डैमेज हो गए थे. इस हादसे के बाद रथ यात्रा में मौजूद सीनियर अधिकारी इस बात को लेकर कंफ्यूज हो गए थे कि आगे क्या करना है. संयोग से उस वक्त वहां महोत्सव को देखने के लिए एक रेलवे अधिकारी मौजूद थे. उन्होंने इस समस्या के बारे में गंभीरता से विचार किया और रथ को पहिए से उतरने से बचाया. उन्होंने स्क्रू जैक का इस्तेमाल करके हालात काबू में किया. इसके बाद से ही हर साल ईस्ट कोस्ट रेलवे हर साल रथ यात्रा में अपनी सेवा प्रदान कर रहा है.

ये काम करते हैं अधिकारी

रेलवे के 40 कर्मचारियों की एक अनुभवी टीम ट्रैवर्सिंग जैक का उपयोग करके रथों को उठाने और उन्हें चलाने के लिए सक्रिय रूप से भाग लेती है. सभी जैक धुरी के नीचे अलग-अलग स्थानों पर रखे जाते हैं और रथों को उठाने और स्थानांतरित करने के लिए एक साथ संचालित होते हैं. लगभग 30 नग ट्रैवर्सिंग स्क्रू जैक ("नंदी घोष" के 12 नग, "तालध्वज" के लिए 10 नग और "देवदलन" के लिए 08 नग) इस काम में इस्तेमाल किए जाते हैं. 

जगन्नाथ रथ यात्रा के दौरान रेलवे की ये टीम श्री मंदिर से श्री गुंडिचा मंदिर तक की यात्रा के दौरान किसी भी खराबी को दूर करने के लिए अपनी पूरी सेवा देती है. समारोह के 5वें दिन (हेरा पंचमी), सभी 3 रथों को उलट कर वापसी यात्रा की तैयारी के लिए नाक-चना द्वार (श्री गुंडिचा मंदिर का निकास द्वार) पर रखा जाता है. बाहुड़ा के दिन, श्री गुंडिचा मंदिर से श्री मंदिर तक की यात्रा के दौरान टीम रथों की सुरक्षा करती है. सिंह द्वार पर पहुंचने पर, 3 रथों को "सुना बेसा" के लिए उचित स्थिति में अगल-बगल रखा जाता है. हर रथ को ठीक से रखने के लिए 6 फीट से 8 फीट तक शिफ्ट किया जाता है. यह पूरी तरह से पुरी कोचिंग डिपो के यांत्रिक विभाग के एक वरिष्ठ सेक्शन इंजीनियर के नेतृत्व में रेलवे की इस टीम द्वारा किया जाता है. रेलवे की अनुभवी टीम इस काम को बहुत ही सावधानीपूर्वक तरीके से करती है. 

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