बुलेट ट्रेन पर भीषण गर्मी का भी नहीं होगा असर, जलवायु परिवर्तन को ध्यान रख किया गया डिजाइन
भारत में मुम्बई से अहमदाबाद के बीच बुलेट ट्रेन चलाए जाने की परियोजना पर काम चल रहा है. वहीं कुछ और रूटों पर बुलेट ट्रेन परियोजना के तहत चलाई जाने वाली ट्रेनें जापान की अति आधुनिक तकनीक शिंकसेन से लैस है. इस तकनीक का फायदा जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से यात्रियों बचाने में मदद करेगा.
भारत में मुम्बई से अहमदाबाद के बीच बुलेट ट्रेन चलाए जाने की परियोजना पर काम चल रहा है. वहीं कुछ और रूटों पर बुलेट ट्रेन परियोजना के तहत चलाई जाने वाली ट्रेनें जापान की अति आधुनिक तकनीक शिंकसेन से लैस है. इस तकनीक का फायदा जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से यात्रियों बचाने में मदद करेगा. देश की जलवायु को ध्यान में रखते हुए इस ट्रेन में खास बदलाव किए गए हैं. उदाहरण के तौर पर लगातार बढ़ती गर्मी को देखते हुए इसमें ऐसे बदलाव किए गए हैं कि बाहरी तापमान 55 डिग्री तक भी जाता है तो ट्रेन में बैठे यात्रियों पर इसका जरा भी प्रभाव नही पड़ेगा.
रास्तें में पेड़ों की जगह बदली जा रही है
नेशनल हाई स्पीड रेल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (HSRCL ) अहमदाबाद से मुम्बई के बीच बुलेट ट्रेन चलाने की परियोजना पर काम कर रहा है. इस परियोजना के तहत लगभग 508.17 किलोमीटर लम्बा हाई स्पीड रेलवे ट्रैक बिछाया जाना है. बुलेट ट्रेन परियोजना के तहत मार्ग में आने वाले सभी पेड़ों को काटने की बजाए वृक्ष कुदाल प्रौद्योगिकी के जरिए उन्हें एक जगह से निकाल कर दूसरी जगह पर लगाया जा रहा है. ऐसे में पेड़ जीवित रहते हैं बस उनकी जगह बदल जाती है.
काफी मात्रा में बचेगा डीजल व पेट्रोल
बुलेट ट्रेन को चलाए जाने से पर्यावरण को कई तरह से फायदे होंगे . इस ट्रेन के चलने से मुम्बई से अहमदाबाद के बीच सड़क मार्ग से यात्रा करने वाले लोग की संख्या में काफीक कमी आएगी. इससे गाड़ियों में खर्च होने वाला डीजल व पेट्रोल बचेगा. मांग घटने से कच्चे तेल के आयात में कमी आएगी और देश का पैसा बचेगा.
कार्बन उत्सर्जन में आएगी कमी
बुलेट ट्रेन पूरी तरह से बिजली से चलेगी. ऐसे में इस ट्रेन के चलने से किसी तरह के इंधन के जलने से कार्बन उत्सर्जन नहीं होगा. इससे पर्यावरण पर विपरीत प्रभाव नहीं पड़ेगा. बुलेट ट्रेन को चलाने के लिए ज्यादातर ट्रैक एलिवेटेड बनाया जाना है. ऐसे में जमीन पर पहले से मौजूद इमारतों या अन्य ढांचों में बहुत अधिक बदलाव की जरूरत नहीं होगी. ऐसे में ट्रैक बनाने के लिए कम ऊर्जा खर्च करनी होगी.