TDS or TCS: केंद्र सरकार ने इकोनॉमी को बूस्ट करने के लिए आर्थिक पैकेज दिया. कई मामलों में राहत दी गई है. इनकम टैक्स रिटर्न भरने की तारीख को बढ़ा दिया है. वहीं, TDS और TCS में भी छूट है. सरकार ने पिछले वित्त वर्ष में देश के अंदर किए जाने वाले व्यावसायिक भुगतान पर टैक्स डिडक्टेड ऐट सोर्स (TDS) और टैक्स कलेक्शन ऐट सोर्स (TCS) की दर में 25 फीसदी की कटौती की. यह कटौती सभी पेमेंट पर लागू है, चाहे वह कमीशन हो, ब्रोकरेज हो या कोई दूसरा पेमेंट.

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क्या है TDS और TCS?

टैक्स डिडक्शन ऐट सोर्स (TDS) और टैक्स कलेक्शन ऐट सोर्स (TCS) टैक्स वसूल करने के दो तरीके हैं. TDS का मतलब स्रोत पर कटौती है. TCS का मतलब स्रोत पर टैक्स कलेक्शन से है. दोनों ही मामलों में रिटर्न फाइल करने की जरूरत होती है. कई लोग इन दोनों के बीच फर्क नहीं समझते हैं. 

क्या है टैक्स डिडक्शन ऐट सोर्स (TDS)?

यह आपकी इनकम के स्रोत (Source of Income) मतलब आपकी सैलरी से कटता है. TDS इनकम टैक्स का ही एक हिस्सा है, जिसका भुगतान टैक्सपेयर पहले ही कर चुका होता है. इसका सेटलमेंट इनकम टैक्स रिटर्न (Income tax return) में किया जाता है. अगर आपकी सैलरी से कटा TDS आपकी कुल टैक्स देनदारी से ज्यादा है तो वह ITR Filing के जरिए वापस कर दिया जाता है. कुल मिलाकर यह एक ऐसी प्रक्रिया होती है जिसके जरिए सरकार टैक्स को तुरंत इकट्ठा करती है. TDS आपकी सैलरी, निवेश पर मिले ब्याज, प्रोफेशनल फीस, कमीशन और ब्रोकरेज पर कटता है. कोई भी संस्थान (जो TDS के दायरे में आता है) जो TDS भुगतान कर रहा है, वह एक निश्चित रकम TDS के रूप में काटता है.

कौन देता है TDS?

पेमेंट करने वाले व्‍यक्ति या संस्था (कंपनी) पर टीडीएस भरने की जिम्‍मेदारी होती है. इन्हें डिडक्टर कहा जाता है. वहीं, टैक्स काटकर भुगतान हासिल करने वाले को डिडक्टी कहते हैं. टीडीएस के रूप में काटी गई रकम को सरकार के खाते में जमा करना जरूरी है. हर डिडक्टर को टीडीएस सर्टिफिकेट जारी करके बताना होता है कि उसने कितना टीडीएस काटा और सरकार को जमा किया .

क्या है टैक्स कलेक्शन ऐट सोर्स (TCS)?

TCS- टैक्स कलेक्टेड ऐट सोर्स होता है. इसका मतलब स्रोत पर एकत्रित टैक्स (इनकम से इकट्ठा किया गया टैक्स) होता है. TCS का भुगतान सेलर, डीलर, वेंडर, दुकानदार की तरफ से किया जाता है. हालांकि, वह कोई भी सामान बेचते हुए खरीदार या ग्राहक से वो वसूलता है. वसूलने के बाद इसे जमा करने का काम सेलर या दुकानदार का ही होता है. इनकम टैक्स एक्ट की धारा 206C में इसे कंट्रोल किया जाता है. कुछ खास तरह की वस्‍तुओं के विक्रेता ही इसे कलेक्‍ट करते हैं. इन वस्‍तुओं में टिंबर वुड, स्‍क्रैप, मिनरल, तेंदु पत्‍ते शामिल हैं. इस तरह का टैक्‍स तभी काटा जाता है जब पेमेंट एक सीमा से ज्‍यादा होता है.

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क्या है TDS और TCS में अंतर?

TDS- पेमेंट देने वाला टैक्स काटकर पैसा देता है

TCS- पेमेंट लेने वाला टैक्स जोड़कर पैसा मांगता है

उदाहरण के लिए-

रमेश ने किसी फर्म को 1 लाख रुपए का स्क्रैप बेचा. स्क्रैप पर 1% का टीसीएस लेने का नियम है. 1 लाख का 1 प्रतिशत होगा 1000 रुपए. तो फिर फर्म से कुल 1 लाख 1 हजार रुपए लिए जाएंगे. 1000 रुपए के टीसीएस को इनकम टैक्स विभाग के पास जमा करना होगा, खरीदार फर्म के नाम.

बिजनेस उद्देश्य से कुछ चीजों की बिक्री पर ही TCS काटने का नियम है.

खरीद पर TCS लगने वाली कुछ चीजों की लिस्ट और उन पर TCS की दर

  • शराब- 1%
  • तेंदू पत्ता- 5%
  • इमारती लकडी- 2.5%
  • कोयला/लोहा/लिग्नाइट- 1%
  • 10 लाख से ज्यादा के वाहन पर- 1%