Investment Tips: पहली बार निवेश करने वाले बहुत से निवेशक जो इक्विटी-ओरिएंटेड म्यूचुअल फंड (Mutual Fund) के जरिए इक्विटी बाजारों में निवेश करते हैं, अक्सर बाजार में भारी उतार-चढ़ाव से डर जाते हैं. इसी वजह से इक्विटी मार्केट में उनकी भागीदारी कम रहती है. हालांकि,  यह और किसी कारण से ज्यादा एक व्यवहारिक चुनौती है और इसे हल करना भी आसान है. हालांकि इसके लिए बाजार में मौजूद जोखिम और अनुमानित रिटर्न पर ध्यान केंद्रित करना होगा. आइए जानते हैं फर्स्ट टाइम इन्‍वेस्‍टर्स को निवेश के पहले किन बातों का ध्यान रखना चाहिए, वे किस तरह से बाजार से ज्यादा रिटर्न हासिल कर सकते हैं, कंपाउंडिंग का कैसे लाभ ले सकते हैं?

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रिस्क लेने से बचते हैं निवेशक

PGIM इंडिया म्यूचुअल फंड के सीईओ अजीत मेनन ने कहा, भारत में पहली बार निवेश करने वाले बहुत से निवेशकों ने बचपन से ही एक निश्चित तरीके से निवेश करना देखा है, जिससे वे भी उसी तरह से निवेश करने के बारे में सोचते हैं. फिक्स्ड इंटरेस्ट वाले पारंपरिक निवेश का मतलब है कि यहां रिटर्न साल दर साल बहुत अनुमानित है और इसी के परिणामस्वरूप इस तरह के निवेश वाले प्रोडक्ट में जोखिम नहीं के बराबर है. कई निवेशक परंपरागत रूप से इंफ्लेशन एडजस्टेड रिटर्न के बारे में नहीं सोचते हैं. इस वजह से भले ही रिटर्न की दर कम हो, इन विकल्पों में जोखिम भी बहुत कम होती है. इसी वजह से पहली बार निवेश करने वाले बहुत से निवेशक मार्केट लिंक वाले विकल्पों में निवेश को भी फिक्‍स्‍ड इनकम वाले निवेश की तरह देखते हैं और अनुमानित रिटर्न और किसी भी निवेश में मौजूद जोखिम के बीच संबंधों को पूरी तरह से नहीं समझ सकते हैं. इसलिए गोल बनाकर निवेश करें और रिटर्न भी देख लें.

समझें कंपाउंडिंग का महत्व

उन्होंने कहा, अभी बहुत से पारंपरिक निवेशक ऐसे हैं जो फिक्‍स्‍ड इनकम वाले विकल्पों से हटकर कहीं और पैसा लगाने के अबतक आदि नहीं हैं. इसी वजह से वे लंबी अवधि के कंपाउंडिंग के फायदे को पूरी तरह से समझ नहीं पाते हैं. वे बाजार में निगेटिव रिटर्न और बढ़ी हुई अस्थिरता के बारे में सुनकर मार्केट लिंक वाले निवेश विकल्पों से दूर रहते हैं. ऐसे निवेशकों के लिए Mutual Fund सेक्टर में दो बेहतर विकल्प सामने आए हैं. पहला है बैलेंस्ड एडवांटेज फंड (Balance Advantage Fund) कैटेगरी, जो अपने प्रोडक्ट डिजाइन के आधार पर इस बाजार की अस्थिरता को दूर करने का प्रयास करता है. साथ ही निवेशकों को रिस्क रिवॉर्ड के मामले में सहज होने का मौका देता है. दूसरा विकल्प है लक्ष्य-आधारित निवेश और एसेट अलोकेशन पर फोकस करना.

बाय एंड होल्ड की स्‍ट्रैटेजी है बेहतर

निवेशक बाजार में निवेश को लेकर कनफ्यूजन में न रहे और न ही लालच के चक्कर में पड़ें. निवेशक को बाय एंड होल्ड की स्ट्रैटेजी की अपनानी चाहिए. तभी लॉन्ग टर्म बेहतर रिटर्न पा सकेंगे.