आप जब भी कहीं इंवेस्टमेंट करते हैं उस समय फाइनेंशियल एक्सपर्ट आपको हमेशा अलग-अलग स्कीम में निवेश करने की सलाह देते हैं. जिससे रिस्क को कम करने में मदद मिलती है. इसी तरह से अगर आपकी कमाई के एक से ज्यादा सोर्स हैं तो आप फाइनेंशियल तौर पर और ज्यादा स्ट्रॉन्ग रहते हैं. आमतौर पर अर्जित कमाई हमारी इनकम का प्राइमरी सोर्स होती है. इसके तहत वेतन या व्यवसाय से अर्जित फायदा शामिल होता है. आपकी सैलरी  के साथ समस्या ये है कि इसे बढ़ाना मुश्किल हो सकता है. वेतन में बढ़त लगभग एक निश्चित दर से होती है. और अगर कोई इंसान अपनी सैलरी  इनकम बढ़ाना चाहता है. तो उसे अक्सर ज्यादा घंटे काम करना पड़ता है. जैसे-जैसे लोगों की उम्र बढ़ती है, काम के घंटों की संख्या बढ़ने की संभावना भी कम होती जाती है. ऐसा इसलिए है क्योंकि उनकी फिजिकल फिटनेस का लेवल कम हो जाता है. इसलिए एक समय के बाद इंसान की इनकम एक जगह आकर ठहर जाती है. इसके साथ ही वेतनभोगी की कमाई पर दुनिया में सबसे ज्यादा टैक्स लगता है. इसका मतलब ये है कि एक बार जब कोई व्यक्ति एक तय इनकम की सीमा को पार करता है, तो कमाई करने की मोटीवेशन भी कम हो जाती है. आइये जानते हैं इनकम के बाकि टाइप्स. 

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इंवेस्टमेंट से होने वाली कमाई

आपने जो इनवेस्टमेंट पहले किया था. उस इनवेस्टमेंट को बेचकर जो कमाई होती है उसे इनवेस्टमेंट इनकम कहते हैं. ये इनवेस्टमेंट कैपिटल गैन के प्राइस में बढ़त के ऊपर डिपेंड करता है. अगर कोई इंसान शेयर खरीदता है और हाई रेट पर बेचता है. या फिर एक घर को खरीदकर इसे फायदे के लिए बेचता है, तो इसे कैपिटल गैन कहा जाता है. इस आय का काम में दिए गए घंटों की संख्या से कोई संबंध नहीं है. साथ ही ये इनकम समय-समय पर नहीं मिलती है. लेकिन ये समय-समय पर अर्जित होता रहता है. जब इनवेस्टर इसे खत्म करता है तो इसका पेमेंट किया जाता है. 

पैसिव इनकम

पैसिव इनकम या निष्क्रिय इनकम भी कमाई का एक अच्छा सोर्स होता है. इस तरह की कमाई के लिए आपको एक्टिव रहकर काम नहीं करना होता. ये कमाई भी एक तरह से इनवेस्टमेंट या अर्जित इनकम की तरह ही होती है. अर्जित इनकम की तरह ही पैसिव इनकम में भी एक तय पीरियड पर पैसा मिलता है. लेकिन इसके लिए आपको घंटों काम नहीं करना पड़ता. ये एक तरह से आपके कैपिटल इनवेस्टमेंट पर डिपेंड होती है. पैसिव इनकम कई तरह की हो सकती है. जैसे कि घर को रेंट पर देने से होने वाली कमाई, इंट्रेस्ट या डिविडेंट जो शेयर डिबेंचर के माध्यम से मिलता है. इस तरह की कमाई पर टैक्स भी अर्जित कमाई की तुलना में कम लगता है.

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