अब नर्स या डॉक्टर नहीं, AI चेक करेगा मरीज का ब्लड प्रेशर, ECG और हार्ट रेट
IIT के इंजीनियर ने एक ऐसा डिवाइस बनाया है, जिससे नर्सों और डॉक्टरों की कमी होने पर भी मरीजों की जान बचाई जा सकेगी. ये एक ऐस डिवाइस है जिसकी मदद से ब्लड प्रेशर, ईसीजी और हार्ट रेट की आसानी से जांच की जा सकेगी.
IIT के इंजीनियर ने एक ऐसा डिवाइस बनाया है, जिससे नर्सों और डॉक्टरों की कमी होने पर भी मरीजों की जान बचाई जा सकेगी. ये एक ऐसा डिवाइस है जिसकी मदद से ब्लड प्रेशर, ईसीजी और हार्ट रेट की आसानी से जांच की जा सकेगी. इस डिवाइस को आईआईटी गोरखपुर से पढ़े गौरव परचानी ने बनाया है.
अस्पतालों में हर जगह है स्टाफ की कमी
सरकारी अस्पताल से लेकर प्राइवेट अस्पताल तक हर जगह पैरामैडिकल स्टाफ यानी नर्स, वॉर्ड ब्वाय, लैब टेक्नीशियन की भारी कमी है. लेकिन अब मरीज के वाइटल पैरामीटर्स जैसे कि उसका पल पल का ब्लड प्रेशर इन सब कामों को एक मशीन के भरोसे छोड़ा जा सकता है. ये सब काम एक नई AI technique के ज़रिए किया जा सकता है.
AI मॉनिटर करेगा मरीजों के डेटा
इसके लिए अस्पताल के बेड में एक सेंसर लगाना होगा. ये सेंसर मरीज के तमाम टेस्ट करता रहेगा और उसका डाटा मरीज के पास रखे मॉनिटर में डिस्पले होता रहेगा. ये डाटा लगातार नर्सिंग स्टेशन पर मौजूद नर्स के सिस्टम में भी अपडेट होता रहेगा. इतना ही नहीं – किसी मरीज के लेवल अगर असामान्य हो रहे हैं जैसे उसका ब्लड प्रेशर जरुरत से ज्यादा उपर नीचे हो या फिर उसके इसीजी से हार्ट अटैक का खतरा सामने आ रहा हो तो ऐसे मरीज के डाटा के साथ वॉर्निंग अलर्ट भी आने लगेगा. ब्लड प्रेशर, हार्ट रेट और और हार्ट रेट बेड के नीचे लगे सेंसर से पता चल सकती है जबकि ऑक्सीजन, ईसीजी और टेम्परपेचर के लिए मरीज को तीन डिवाइस लगाए जाते हैं लेकिन ये सभी वायरलेस डिवाइस हैं. अस्पताल में भर्ती मरीज को अगर चलना फिरना हो तो उसे बार बार तारें हटवाने के लिए किसी को बुलाना नहीं पड़ता.
IIT गोरखपुर के स्टूडेंट्स का कारनामा
इस सिस्टम को आईआईटी गोरखपुर से पढ़े गौरव परचानी ने बनाया है. इंदौर के रहने वाले गौरव ने 2013 में आईआईटी से इंजीनियरिंग की. जिसके बाद गौरव रेसिंग कारों की स्पीड और उससे जुड़ी मशीनों पर काम कर रहे थे – लेकिन वो कुछ ऐसा करना चाहते थे जिसका फायदा ज्यादा से ज्यादा लोगों को मिले. गौरव के मुताबिक हेल्थ टेक्नोलॉजी की मशीनों और रेसिंग कार की टेक्नोलॉजी में ज्यादा फर्क नहीं है. इसके बाद कई सुधार करने के बाद गौरव ने Dozee (डोज़ी) मशीन की टेक्नोलॉजी को बनाया.
हॉस्पीटल में हर जगह नर्स की कमी
एक अनुमान के मुताबिक देश में प्राइवेट और सरकारी अस्पतालों के पास कुल 20 लाख बेड्स हैं. इनमें से आईसीयू बेड्स की संख्या 1 लाख 25 हज़ार के लगभग है. केवल इन बेड्स पर मौजूद मरीजों के लिए एक मरीज पर एक नर्स की व्यवस्था संभव है – जबकि बाकी 18 लाख से ज्यादा बेड्स में कहीं 5 तो कहीं - कहीं 20 मरीजों पर एक नर्स होती है.
8 हज़ार बेड्स पर सिस्टम लगाया गया
ऐसे में बहुत बार इन अस्पतालों में कई मरीज इसीलिए आईसीयू तक पहुंच जाते हैं क्योंकि उनकी बिगड़ती हालत पर अस्पताल में होने के बावजूद ध्यान नहीं दिया जा सका. लेकिन AI तकनीक के इस्तेमाल से कई मरीजों की हालत बिगड़ने से पहले उनके पैरामीटर्स पर ध्यान दिया जा सकता है और समय रहते इलाज किया जा सकता है. हाल ही में लॉन्च हुई ये टेक्नोलॉजी देश के कुछ सरकारी और कुछ प्राइवेट अस्पतालों तक पहुंच चुकी है. इस वक्त देश के 300 से ज्यादा अस्पतालों में तकरीबन 8 हज़ार बेड्स पर ये सिस्टम लगाया जा चुका है.
कई अस्पतालों में बेड्स में लगी सेंसर
लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल कालेज, चंडीगढ़ में पीजीआई समेत कई प्राइवेट अस्पतालों ने अपने अस्पतालों में बेड्स में सेंसर वाली ये व्यवस्था चालू की है. चेन्नई के अपोलो अस्पताल और लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज के डाटा के मुताबिक इस टेक्निक की मदद से वो 80 प्रतिशत मरीजों को समय रहते बचा पाए हैं क्योंकि मशीन ने उन मरीजों की हालत बिगड़ने से 8 घंटे पहले ही शरीर में हो रहे बदलावों का संकेत पैरामीटर्स की रीडिंग की मदद से दे दिया.
5 साल काम करेगा सेंसर
एक बार बेड में सेंसर लगाने से वो 5 साल तक काम कर सकता है. पूरी तरह मेड इन इंडिया इस तकनीक को 15 से ज्यादा सर्टिफिकेट और 8 पेटेंट हासिल हैं. हालांकि ये सिस्टम फिलहाल खर्चीला है. लेकिन सिस्टम बनाने वालों का दावा है कि इस टेक्नीक की मदद से हर साल नर्सों के काम के 10 हज़ार घंटे बचाए जा सकते हैं. नर्स और डॉक्टरों के समय के साथ साथ कई मरीजों की जान भी बचाई जा सकती है.