अक्षय तृतीया पर बाल विवाह का अभिशाप, NCPCR ने राज्यों को किया अलर्ट; भारत में हैं सबसे ज्यादा 'बालवधुएं'
Akshaya Tritiya Child Marriages: अक्षय तृतीया के पहले देश में बाल अधिकार संरक्षण के लिए काम करने वाली सर्वोच्च संस्था एनसीपीसीआर ने सभी राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों से कहा है कि वे अक्षय तृतीया और ईद से पहले बाल विवाह के खिलाफ निर्देश जारी करें.
Akshaya Tritiya Child Marriages: अक्षय तृतीया पर बाल विवाह एक बड़ी समस्या है. देश के कई राज्यों में अक्षय तृतीया के मौके पर बच्चों की शादियों का चलन अभी भी देखा जाता है. ऐसे में इस त्योहार के एक दिन पहले देश में बाल अधिकार संरक्षण के लिए काम करने वाली सर्वोच्च संस्था एनसीपीसीआर ने सभी राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों से कहा है कि वे अक्षय तृतीया और ईद से पहले बाल विवाह के खिलाफ निर्देश जारी करें. एनसीपीसीआर ने राज्यों से सतर्क रहने को कहा है. सभी राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को भेजे गए नोटिस में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने कहा कि यह देखा गया है कि हर साल विभिन्न राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों में अक्षय तृतीय या अक्का तीज और ईद के बाद बड़ी संख्या में बाल विवाह होते हैं. इस साल दोनों ही त्योहारों के 22 अप्रैल को मनाए जाने की संभावना है.
एनसीपीसीआर ने कहा, ‘‘इसलिए आयोग आप सभी के कार्यालयों से सभी जिला मजिस्ट्रेट, कलेक्टर, प्रधान सचिवों, कानून एवं न्याय विभाग को उचित निर्देश जारी करने का अनुरोध करता है, ताकि बाल विवाह को रोकने के लिए सक्षम प्राधिकार उचित कदम उठा सके.’’
क्यों अक्षय तृतीया पर होते हैं बाल विवाह?
अक्षय तृतीया को धार्मिक और ज्योतिष के लिहाज से सनातन धर्म में बहुत शुभ माना जाता है. इस दिन लोग अपने ऐसे काम निपटाते हैं, जिनके लिए शुभ मुहूर्त की जरूरत होती है. ऐसी मान्यता है कि अक्षय तृतीया का दिन इतना शुभ होता है कि आपको विवाह के लिए इस दिन पंडित से भी मुहूर्त निकलवाने की भी जरूरत नहीं होती. भारत में इस दिन काफी शादियां होती हैं, लेकिन बाल विवाह की कुरीति भी इस दिन देखने को मिलती है. हालांकि, पिछले कुछ दशकों से इनकी संख्या काफी गिर चुकी है, लेकिन फिर भी देश के कुछ पिछड़े इलाकों में अभी भी कुछ परिवार बाल विवाह कराते दिख जाते हैं.
भारत में हैं सबसे ज्यादा बालवधुएं: UNICEF
यूनिसेफ ने हाल ही में एक रिपोर्ट पब्लिश की है, जिसमें बताया गया है कि अनुमानित तौर पर भारत में प्रत्येक वर्ष, 18 साल से कम उम्र में करीब 15 लाख लड़कियों की शादी होती है जिसके कारण भारत में दुनिया की सबसे अधिक बाल वधुओं की संख्या है, जो विश्व की कुल संख्या का तीसरा भाग है. 15 से 19 साल की उम्र की लगभग 16 प्रतिशत लड़कियां शादीशुदा हैं. हालांकि, साल 2005-2006 से 2015-2016 के दौरान 18 साल से पहले शादी करने वाली लड़कियों की संख्या 47 प्रतिशत से घटकर 27 प्रतिशत रह गई है, पर यह अभी भी बहुत ज्यादा है.
बाल विवाह एक अभिशाप
किसी लड़की या लड़के की शादी 18 साल की उम्र से पहले होना बाल विवाह कहलाता है. बाल विवाह में औपचारिक विवाह और अनौपचारिक संबंध भी आते हैं, जहां 18 साल से कम उम्र के बच्चे शादीशुदा जोड़े की तरह रहते हैं. बाल विवाह, बचपन खत्म कर देता है। बाल विवाह बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य और संरक्षण पर नकारात्मक प्रभाव डालता है. बाल विवाह का सीधा असर न केवल लड़कियों पर, बल्कि उनके परिवार और समुदाय पर भी होता हैं. जिस लड़की की शादी कम उम्र में हो जाती है, उसके स्कूल से निकल जाने की संभावना बढ़ जाती है तथा उसके कमाने और समुदाय में योगदान देने की क्षमता कम हो जाती है। उसे घरेलू हिंसा तथा एचआईवी/एड्स का शिकार होने का खतरा बढ़ जाता है. खुद नाबालिग होते हुए भीउसकी बच्चे पैदा करने की संभावना बढ़ जाती है. गर्भावस्था और प्रसव के दौरान गंभीर समस्याओं के कारण अक्सर नाबालिग लड़कियों की मृत्यु भी हो जाती हैं.
(भाषा से इनपुट के साथ)
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