पुरुषों का अंडरवियर और महिलाओं की लिपस्टिक, इनसे मिलती है मंदी की झलक, खुल जाते हैं अर्थव्यवस्था के राज
आज हम आपको मंदी (Recession) की पहचान करने वाले कुछ ऐसे इंडेक्स के बारे में बताएंगे, जिनके बारे में आपने पहले शायद ही सुना होगा. क्या आप जानते हैं कि पुरुषों के अंडरवियर (Men's underwear index) और महिलाओं की लिपस्टिक (Lipstick index) से भी अर्थव्यवस्था को समझा जाता है?
शुक्रवार को ग्लोबल मार्केट (Global Share Market) में भूचाल से हालात देखने को मिले. अमेरिका से लेकर जापान तक के इंडेक्स में भारी गिरावट आई. चिपमेकर Intel के शेयर में 40 सालों की सबसे बड़ी गिरावट दर्ज की गई. ये सब देखकर अब इस बात की चर्चा शुरू हो गई है कि क्या मंदी का दौर शुरू हो रहा है? ऐसे में आज हम आपको मंदी (Recession) की पहचान करने वाले कुछ ऐसे इंडेक्स के बारे में बताएंगे, जिनके बारे में आपने पहले शायद ही सुना होगा. क्या आप जानते हैं कि पुरुषों के अंडरवियर (Men's underwear index) और महिलाओं की लिपस्टिक (Lipstick index) से भी अर्थव्यवस्था को समझा जाता है? आइए जानते हैं कैसे होता है ये.
अंडरवियर की सेल बताती है अर्थव्यवस्था का हाल
अमेरिका के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व के पूर्व प्रमुख एलन ग्रींसपैन (Alan Greenspan) मंदी पर कुछ इसी तरह नजर रखते थे. वह देखते थे कि पुरुषों के अंडरवियर की ब्रिक्री कैसी रही है और मंदी का अनुमान लगाते थे. अगर आप एलन ग्रींसपैन की इस थ्योरी को बेतुका समझ रहे हैं तो आप ये भी जान लीजिए कि उनकी गिनती बड़े अर्थशास्त्रियों में होती है. वह 1987 से लेकर 2006 तक फेडरल रिजर्व के प्रमुख भी रह चुके हैं. अभी वह करीब 98 साल के हो चुके हैं.
वह मानते हैं कि वैसे तो पूरे साल अंडरवियर की बिक्री समान बनी रहती है, लेकिन अगर मंदी आने लगती है तो इसमें गिरावट देखने को मिलती है. इसके पीछे उनका तर्क ये होता है कि मंदी के दौरान लोग इतना अधिक दबाव महसूस करते हैं कि वह अंडरवियर पर भी कम पैसे खर्च करने लगते हैं. अंडरवियर एक जरूरी चीज है, जिस पर पैसे कम खर्च करने का मतलब है कि शख्स अधिक से अधिक पैसे भविष्य के लिए बचाना चाहता है या फिर उसके पास पैसे ही नहीं हैं. अंडरवियर पर लोग कम खर्च करने लगते हैं, क्योंकि वह कपड़ों के अंदर होता है, तो अगर वह थोड़ा पुराना या अगर थोड़ा फटा हुआ भी होगा तो उससे कोई बड़ा फर्क नहीं पड़ेगा.
लिपस्टिक इंडेक्स के बारे में भी जान लें
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पिछले एक दशक में प्रसिद्ध हुए सूचकांकों में से एक लिपस्टिक इंडेक्स भी है, जिसकी मदद से आर्थिक मंदी का पता लगाया जाता है. इसका इस्तेमाल सबसे पहले एसटी लाउडर के चेयरमैन Leonard Lauder ने किया था, जिन्होंने 2000 की मंदी में देखा कि महिलाओं की लिपस्टिक की सेल तेजी से बढ़ गई. कई रिसर्च में यह बात सामने आई है कि आर्थिक हालात बेहतर होने पर महिलाएं ज्यादा कपड़े खरीदती हैं, जबकि इसकी तुलना में मंदी में महिलाएं लिपस्टिक ज्यादा खरीदती हैं.
किसी अर्थव्यवस्था में लिपस्टिक की बिक्री के माध्यम से लंबे समय की मंदी का अनुमान लगाया जा सकता है. मुश्किल हालात में महिलाएं ज्यादा आकर्षक दिखने के लिए लिपस्टिक पर अधिक पैसे खर्च करने लगती हैं. यह देखा गया है कि ऐसे वक्त में महिलाओं की दिलचस्पी कपड़े, जूते, पर्स जैसी मंहगी चीजों से घटकर लिपस्टिक की तरफ मुड़ जाती है. मंदी की स्थिति में जहां एक ओर हर प्रोडक्ट की सेल घटती है, वहीं दूसरी ओर लिपस्टिक की सेल बढ़ने लगती है.
मंदी से क्यों डरते हैं लोग?
मंदी का मतलब है आर्थिक गतिविधियों में कमी आ जाना. इसका नतीजा ये होता है कि सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी में निगेटिव ग्रोथ रेट देखने को मिलने लगती है. लोग यूं ही मंदी से नहीं डरते है, बल्कि जब मंदी आती है तो उसका असर हर किसी पर पड़ता है. सबसे पहले तो निवेश का माहौल बिगड़ जाता है. वहीं मंदी की वजह से लोगों का खर्च करने का पैटर्न भी बदल जाता है. लोग अपने खाने-पीने या इस्तेमाल की कई चीजों पर लोग अंकुश लगा देते हैं. इसकी वजह से मांग बहुत ज्यादा घट जाती है और कई बार तो कुछ कंपनियां बंद तक हो जाती हैं.
कंपनियां बंद होने या डिमांड तेजी से घटने की वजह से लोगों की नौकरियों पर संकट पैदा हो जाता है. मंदी आते ही एक बड़ी छंटनी का दौर चल पड़ता है, जिससे बहुत सारे लोगों की जिंदगी प्रभावित होती है. मंदी के दौर में ना केवल गरीब और मिडिल क्लास लोग दिक्कत में पड़ते हैं, बल्कि अमीरों की भी हालत खराब हो जाती है. कई बिजनेसमैन कर्ज चुकाने में डिफॉल्ट कर देते हैं. वहीं कई कंपनियों का नुकसान इतना ज्यादा हो जाता है कि उनकी कंपनी ही दिवालिया हो जाती है.
12:36 PM IST