Success Story: पारंपरिक खेती के साथ-साथ किसान अब फल-फूल की खेती कर रहे हैं. मधुबनी के किसान बिंदेश्वर रावत एक प्रगतिशील किसान हैं. यह जिला बिहार का सबसे अधिक बाढ़ प्रभावित क्षेत्र है. इसके कुछ इलाकों में कम से कम 6 महीने तक जलभराव की समस्या रहती है. इनके खेत में जलभराव की समस्या थी. इसमें इन्होंने सिंघाड़े की प्राकृतिक खेती शुरू की. सिंघाड़े की खेती से वो एक हेक्टेयर में 6 से 7 महीने में 1.50 लाख रुपये कमा लेते हैं.

पोषक तत्वों का खजाना है सिंघाड़ा

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सिंघाड़ा, एक जलीय फसल है. इसकी खेती कच्चे फल के रूप में की जाती है. इीलों, तालाबों और जिस जगह पर 3 फीट तक जलभराव हो, इसे आसानी से उगा सकते हैं. यह पोषक तत्वों से भरपूर होता है और इसका सेवन अलग-अलग तरीके से किया जा सकता है. इसके आटे का व्रत-त्योहारों में खूब इस्तेमाल किया जाता है. इसके ताजे और हरे फलों के छिलके की स्वादिष्ट सब्जी भी बनाई जाती है. सिंघाड़े के फल के सेवन से अस्थमा, मधुमेह और बवासीर के रोगियों को काफी फायदा मिलता है. इसमें कैल्शियम, विटामिन्स और अन्य खनिज पदार्थ भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं.

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सिंघाड़े की दो प्रकार की प्रजातियां होती हैं. इसमें एक कांटेदार होती है और कुछ बिना कांटे वाली प्रजातियां होती है. किसान ज्यादातर बिना कांटे वाली किस्मों का चयन करते हैं क्योंकि कांटेदार प्रजातियों में तुड़ाई के समय बहुत ही कठिनाई होती है.

जनवरी से फरवरी में तैयार करें नर्सरी

बिंदेश्वर रावत के मुताबिक, सिंघाड़े की फसल के लिए नर्सरी को जनवरी से फरवरी के महीने में तैयार करना होता है. इसकी एक मीटर लंबी बेल की जून-जुलाई के महीने में तालाब में रोपाई की जा सकती है. नर्सरी तैयार करते समय एक बात ध्यान रखें कि फलों को जनवरी के महीने तक भिगोकर रखें और अंकुरण से पहले फरवरी में इसे तालाब या फिर खेत में डाल दें. इसमें पानी कम से कम 2-3 फीट तक बना रहे. इसकी रोपाई जुलाई में मानसून के समय में पौधे से पौधे की दूरी 1 मीटर पर वर्गाकार विधि में की जानी चाहिए. तालाब और खेत, किसी में भी रोपाई करते  समय पानी की मात्रा पर्याप्त होनी चाहिए.

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आईसीएआर के मुताबिक, फसल चक्र में सिंघाड़े का समावेश होना चाहिए. बिन्देश्वर के अनुसार, उनके जिले में नवंबर-दिसंबर तक खेतों में पानी भरा रहता है. जनवरी-फरवरी के महीने में खेत में पानी नहीं होता है उस समय ये गर्मी के समय वाली उड़द और मूंग की बुवाई करते हैं. उड़द और मूंग की तुड़ाई के बाद जुलाई-अगस्त महीने में सिंघाड़े की रोपाई करते हैं. दलहनी फसलों से खेत में नाइट्रोजन की उपलब्धता बढ़ जाती है. इससे अगली फसल में रासायनिक पोषक तत्व देने की जरूरत नहीं होती है.

इन्होंने बताया कि सुखेत मॉडल का वर्मी-कम्पोस्ट खेत की तैयारी के समय 10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से डालते हैं और निरंतर कृषि विज्ञान केंद्र, सुखेत वैज्ञानिकों से तकनीकी सहायता प्राप्त करते हैं.

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6-7 महीनों में लाखों की कमाई

बिंदेश्वर रावत के मुताबिक, सिघाड़े की फसल में एक हेक्टेयर के तालाब से लगभग 10 से 100 क्विंटल उत्पादन मिलता है. 6 से 7 महीनों में इसकी प्राकृतिक खेती से 1.50 लाख रुपये कमाए जा सकते हैं.