Success Story: पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले के एक छोटे से गांव का एक युवक अपना बिजनेस शुरू करने के लिए एक अच्छे मार्गदर्शक की तलाश कर रहा था. अपने सीमित कंप्यूटर नॉलेज के साथ, वह एक नाम ढूंढने में सफल रहे- महात्मा गांधी ग्रामीण औद्योगीकरण संस्थान (MGIRI) और तुरंत उन्होंने अपने एंटरप्यूनरियल डेवलपमेंट के लिए MGIRI से संपर्क किया. मोबाइल के माध्यम से MGIRI से पर्याप्त जानकारी हासिल करने के बाद, वह खुद MGIRI गए और खादी और टेक्सटाइल डिविजन की वैज्ञानिक टीम से मिले और अपने इलाके में अपना खुद का बिजनेस शुरू करने की इच्छा के बारे में बताया. 

MGIRI से ली ट्रेनिंग

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जब उससे पूछा गया तो पता चला कि वह स्नातक भी नहीं है, वह एक ऐसे परिवार से है जो पिछले 20 वर्षों से रंगाई का काम कर रहा है. वह इसी क्षेत्र में और आगे बढ़ना चाहते थे और अपना खुद का बिजनेस शुरू करना चाहते थे.  उन्हें अपनी पहली यात्रा के दौरान MGIRI  में अपना बिजनेस शुरू करने के लिए बुनियादी जरूरतों और स्टेज बाय स्टेड उद्यम के विकास के बारे में बताया गया. MGIRI के मार्गदर्शन प्राप्त करते हुए, वह 9 जून 2016 से 29 जून 2016 तक प्राकृतिक रंगों के साथ खादी की रंगाई पर कौशल विकास प्रशिक्षण में शामिल हुए.

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परिवार की मदद से शुरू किया बिजनेस

MGIRI में ट्रेनिंग पूरा होने के तुरंत बाद, उन्होंने अपने गांव बेनेपुकुर पारा, जिला- बीरभूम, पश्चिम बंगाल में अपना बिजनेस शुरू करने की तैयारी शुरू कर दी. चूंकि वह अपना व्यवसाय छोटे स्तर पर शुरू करने की योजना बना रहे थे, इसके लिए जरूरी फंड की व्यवस्था उनके परिवार ने की. अगस्त, 2016 में "करुंगन" (KARUANGAN) नाम से अपना उद्यम शुरू किया, जहां सूती और रेशमी कपड़े के मैटेरियल पर बाटिक, प्राकृतिक रंगाई, टाई एंड डाई, शिबोरी लहरिया का काम किया जाता है. उन्होंने 5 लोगों को रोजगार दिया है और अपनी पारंपरिक रंगाई इकाई शुरू की है. 

मंथली 50 हजार रुपये की कमाई

वर्तमान में प्रतिदिन 100 मीटर कपड़े पर रंगाई की जाती है या प्रिंटिंग की जाती है. रंगे हुए या प्रिंटेड मैटेरियल का विपणन स्थानीय बाजार में बिक्री आउटलेट के माध्यम से किया जा रहा है. वह अपने मैटेरियल के विपणन के लिए देश भर में स्थानीय, जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर की सभी प्रदर्शनियों में भी भाग लेते हैं और उनकी मासिक आय लगभग 50,000 रुपये हैं.

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वह MGIRI के खादी और वस्त्र प्रभाग के साथ लगातार संपर्क में हैं और पारंपरिक रंगाई और छपाई तकनीकों, डिजाइन और विपणन रणनीति के बारे में तकनीकी मार्गदर्शन प्राप्त करते हैं. फिलहाल वह अपनी इकाई को निर्यात के लिए पंजीकृत कराने में सफल रहे हैं.