आप फंड मैनेजर में किस तरह की क्वालिटी तलाश करते हैं. आप अपने पैसों के मामले में किस तरह के व्यक्ति पर भरोसा करेंगे. क्वांट ग्रुप के फाउंडर और चीफ इन्वेस्टमेंट ऑफिसर संदीप टंडन का करीब तीन दशक का लंबा करियर है. एक फंड मैनेजकर की तलाश के लिए ये काफी प्रॉमिसिंग दिखता है. लेकिन, सेबी की चेयरपर्सन गंभीर आरोपों के बावजूद में भी अपने पद पर बनी रहती है- जिसमें पेशेवर दुर्व्यवहार, शक्ति का दुरुपयोग और हितों के टकराव जैसे गंभीर आरोप शामिल हैं- ऐसे में किसी भी फंड मैनेजर की ईमानदारी के बारे में निश्चित होना मुश्किल है.

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अपने फाइनेंशियल गोल्स के लिए जब आप किसी सही फंड मैनेजर की तलाश करते हैं तो निश्चित रूप से 'इनसाइडर ट्रेडिंग', 'रैंडम स्टॉक सेलेक्शन' या रिटेल निवेशकों के पैसे को किसी बड़े कॉर्पोरेट घराने की तरफ मोड़ने जैसे शब्दों को सुनना नहीं चाहेंगे, जो खुद पर किसी अमेरिकी बेस्ड रिसर्च फर्म की तरफ से गंभीर आरोपों का सामना कर रहा है. और ये नहीं भूलना चाहिए कि कि इन बड़े समूह के स्टॉक्स तब उठाए गए थे, जब ज्यादातर मनी मैनेजर्स इनसे दूर भाग रहे थे.

लेकिन क्वांट म्यूचुअल फंड के संदीप टंडन के मामले में, ऐसे कई उदाहरण और घटनाएं हैं, और ये महज आरोप नहीं हैं.

बुच के नेतृत्व में SEBI की भूमिका

इस स्पेशल सीरीज के जरिए, ज़ी मीडिया एक-एक करके भारत के टॉप फाइनेंशियल इंस्टीट्यूट के अध्यक्ष के रूप में बुच के नवजात और संकटग्रस्त नेतृत्व के पीछे की बदसूरत सच्चाई को उजागर करेगा, जिसकी पहली जिम्मेदारी निवेशकों के लिए एक पारदर्शी और निष्पक्ष कैपिटल मार्केट सुनिश्चित करना है.

बता दें, हाल ही तक सेबी क्वांट म्यूचुअल फंड की संदिग्ध 'फ्रंट-रनिंग', 'इनसाइडर ट्रेडिंग' और 'शक्ति के दुरुपयोग जैसे गंभीर आरोप की जांच की जा रही थी. 21 जून को SEBI अधिकारियों ने फंड हाउस के मुंबई मुख्यालय और हैदराबाद स्थित स्थानों पर छापेमारी की. यह सबकुछ बुच के नेतृत्व में हो रहा था, जिन्होंने मार्च 2022 में अजय त्यागी से लेकर सेबी की कमान संभाली थी.

सेबी की जांच में देरी

सेबी के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि चेयरपर्सन की दखलअंदाजी के कारण इस जांच में देरी हुई, कथित तौर पर इसके पीछे नई दिल्ली और एक बड़े उद्योगपति और उसके 'फिक्सर' के इशारे पर किया गया है. देशभर के 10 लाख से ज्यादा निवेशकों, प्रतिष्ठित मंदिर ट्रस्ट और पब्लिक कॉरपोरेशन के लगभग एक लाख करोड़ रुपए की बचत और निवेश की सुरक्षा के लिए निष्पक्ष और पारदर्शी जांच की जानी चाहिए.

इस बात के पर्याप्त सबूत हैं कि सेबी अध्यक्ष ने राजनीतिक हस्तक्षेप और एक उद्योगपति के हस्तक्षेप के कारण कार्रवाई रोक दी है. इसके अलावा सीईओ को रेगुलेटर बॉडी और राजनीतिक/औद्योगिक नेटवर्क दोनों से संरक्षण मिल रहा है.

रिपोर्ट के लिखे जाने तक, कैप्री ग्लोबल और क्वांट म्यूचुअल फंड को भेजे गए ईमेल प्रश्नों का जवाब नहीं मिला.

फ्रंट-रनिंग और इनसाइडर ट्रेडिंग के आरोप

एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए, सेबी ने पहली बार देश के पूंजी बाजार में नया मानक स्थापित करते हुए मुंबई के काला घोड़ा स्थित सक्षम अदालत से तलाशी और जब्ती का वारंट हासिल किया. यह वारंट क्वांट म्यूचुअल फंड, इसके सीईओ और सीआईओ संदीप टंडन और हैदराबाद के एक क्लाइंट के परिसरों पर छापेमारी के लिए था. इनपर इनसाइडर ट्रेडिंग और फ्रंट-रनिंग जैसे गंभीर आरोप लगे हैं. सेबी को इसके अलावा कई अन्य अनियमितताओं का भी संदेह था, जिनमें निवेशकों के खातों में केवाईसी की कमी, निवेश निर्णयों में उचित प्रक्रियाओं का पालन न करना और बोगस निवेश पोर्टफोलियो चलाने जैसे गंभीर मुद्दे शामिल थे.

फंड के सीईओ पर हैदराबाद की एक महिला का पक्ष लेने का आरोप है, जो कथित तौर पर शहर की पुलिस, राजनेताओं और नौकरशाहों के शीर्ष पदों से जुड़ी हुई है. सेबी को संदेह है कि फंड के सीईओ ने हैदराबाद स्थित एक महिला के साथ मिलकर गोपनीय सूचनाओं का दुरुपयोग किया. 21 जून को छापेमारी के दौरान इस महिला के घर से कई आपत्तिजनक दस्तावेज़, सामग्री और अघोषित संपत्ति बरामद की गई. इस महिला ने फंड के सीईओ के साथ मिलकर लगभग 10-15 शेयरों में इनसाइडर ट्रेडिंग की.

ये ट्रेड सीईओ या फंड की तरफ से अपने ऑर्डर को एग्जिक्यूट करने से ठीक पहले किए गए, जो एक संगठित धोखाधड़ी के प्रयास का संकेत देते हैं. तलाशी में सेबी की तरफ से उसके बैंकरों को जांच सामग्री की मांग करने के लिए शीर्ष-गुप्त पत्राचार का भी पता चला, जो सेबी और बैंक अधिकारियों के बीच आसन्न कार्रवाई के बारे में जानकारी लीक करने में स्पष्ट मिलीभगत का संकेत देता है.

फिक्सर की एंट्री

मौजूदा सेबी में यह साफ हो चुका है कि यह मुद्दा एक 'फिक्सर' की मदद से दबाया जा रहा है. क्वांट एमएफ के सीईओ ने मुंबई स्थित एक फिक्सर राजेश शर्मा की मदद ली, जो कैपरी ग्लोबल के प्रमुख शेयरधारक हैं. रिपोर्ट्स के मुताबिक, फंड ने कई संदिग्ध निवेश किए हैं, जिसमें लांसर कंटेनर्स, ओम इंफ्रा, प्राइमो केमिकल्स और आईआरबी इंफ्रा जैसी कंपनियों में निवेश शामिल है. इन कंपनियों में कोई अन्य फंड या संस्था निवेश नहीं कर रही है, और निवेश के लिए इसे उचित नहीं ठहराया जा सकता.

कई विश्लेषकों का कहना है कि चुने गए शेयरों की सूची ने निवेशकों की मेहनत की कमाई के हज़ारों करोड़ रुपए खर्च कर दिए हैं.

चौंकाने वाली बात यह है कि फंड के प्रबंधन के तहत परिसंपत्तियां (AUM) - जो म्यूचुअल फंड के आकार का एक प्रमुख माप है- बहुत ही कम समय में 100 करोड़ रुपए से बढ़कर 1 लाख करोड़ रुपए हो गई, जिससे इस बात पर संदेह बढ़ गया कि क्या ये फंड वास्तविक निवेशकों के थे या सिस्टम को धोखा देने की कोशिश कर रहे बदमाशों के थे.

पिछले एक साल में, हैदराबाद की रहने वाली महिला ने CEO/CIO के लिए प्रमोटरों के साथ कई मीटिंग कराई. फंड के CEO पर आरोप है कि उन्होंने साइलेंट पीरियड के दौरान उपलब्ध मूल्य-संवेदनशील जानकारी के आधार पर ट्रेड किया और महिला ने CEO के साथ कंपनी के प्रमोटरों से मिलने के दौरान भी इस जानकारी के आधार पर ट्रेड किया. ये कंपनियाँ फार्मास्यूटिकल, ऊर्जा और उपभोग क्षेत्रों में प्रमुख खिलाड़ी हैं.

उन्होंने सूचना साझा करने और लेन-देन की व्यवस्था को सुगम बनाने के लिए अपने बेटे को भी इस कोष में नियुक्त कर रखा है. सीईओ ने उचित परिश्रम और गोपनीयता के संबंध में स्थापित मानदंडों और प्रथाओं का उल्लंघन करते हुए यह रोजगार/इंटर्नशिप प्रदान की, जिससे फंड के निवेशकों और सेबी विनियमों के साथ हितों का स्पष्ट टकराव पैदा हुआ.

स्थिति की गंभीरता के बावजूद, कई महीने बीत चुके हैं, और सेबी अध्यक्ष द्वारा फंड के सीईओ को रोकने या निवेशकों, विशेष रूप से छोटे पोर्टफोलियो वाले लाखों लोगों की सुरक्षा के लिए कोई कार्रवाई नहीं की गई है.

बुच के नेतृत्व वाली सेबी... इसमें इतना अजीब क्या है?

आज, जबकि बुच और उनके पति धवल बुच कई गंभीर आरोपों से जूझ रहे हैं, जो सेबी में उनके नेतृत्व को सवालों के घेरे में लाते हैं - दंपति द्वारा आरोपों से इनकार किया गया है - कई प्रसिद्ध वित्तीय विशेषज्ञों ने सेबी की ईमानदारी पर गंभीर सवाल उठाए हैं। साथ ही, सेबी के सैकड़ों वरिष्ठ कर्मियों ने सरासर गैर-पेशेवरता के उदाहरणों को उजागर किया है।

अभी तो ये ट्रेलर है

‘बुच के नेतृत्व वाली सेबी, उसके मित्र और शत्रु’ श्रृंखला में, ज़ी मीडिया के पत्रकार बुच के नेतृत्व वाली सेबी की नाक के नीचे फिक्सर और क्वांट एमएफ के ग्रे पन्नों को उजागर करना जारी रखेंगे, जो चल रहे हिंडनबर्ग बनाम अडानी गाथा का हिस्सा हैं. इस श्रृंखला का अनुसरण करें और देश के विनम्र और परेशान खुदरा निवेशक से संबंधित सभी सवालों के जवाब पाएं.

फंड मैनेजर, फिक्सर और नियामक प्राधिकरणों के संदिग्ध गठजोड़ पर ऐसी और कहानियों के लिए इस स्पेशल सीरीज को फोलो करते रहें.

अब, जब हम इस मामले में गहराई से उतरते हैं, तो कुछ बुनियादी सवालों के जवाब रह जाते हैं:

  • क्या कोई उपलब्ध विवरणों के आधार पर यह अनुमान लगा सकता है कि सेबी अध्यक्ष ने क्वांट म्यूचुअल फंड मामले में निष्पक्ष सुनवाई को दबा दिया?
  • अगर कॉर्पोरेट प्रमोटर्स या अन्य सेबी-विनियमित संस्थाओं के खिलाफ साहसिक आरोप लगाए जाते हैं, और नियामक किसी अन्य कारण से उन्हें पसंद नहीं करता है, तो क्या कानून अलग तरीके से लागू होता है?
  • क्या सेबी के नेतृत्व में मौजूदा व्यवस्था में प्रतिशोध, अन्याय और भ्रष्टाचार की विशेषता है, जिसमें कानून को व्यक्तिगत पक्षपात या लेन-देन के आधार पर चुनिंदा रूप से लागू किया जाता है?
  • क्या लोगों को उनके कनेक्शन या प्रेरणाओं के आधार पर निशाना बनाया जाता है या उन्हें तरजीह दी जाती है?
  • क्या कॉरपोरेट प्रमोटरों या अन्य सेबी-विनियमित संस्थाओं के खिलाफ आरोपों को अलग तरीके से संभाला जाता है, अगर नियामक के पास गुप्त उद्देश्य हैं, जो फिक्सर और निहित स्वार्थी उद्योगपतियों द्वारा प्रभावित प्रणाली का सुझाव देते हैं?

ज़ी मीडिया जल्द ही इस मामले से संबंधित ज्यादा जानकारी भी देगा.