Shadow Banking क्या है? समझें इससे जुड़े फायदे और नुकसान- चेक करें डीटेल्स
ऐसे फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशन जो बैंक न होते हुए भी बैंक की तरह काम करते हैं. ये शेडो बैंकिंग के तहत आते हैं. ये इंस्टीट्यूशन डिपॅाजिट राशि लेते हैं और कर्ज भी देते हैं. इन संस्थानों को गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी (NBFC) भी कहते हैं.
बैंकिंग सबसे ज्यादा रेगुलेटेड इंडस्ट्री है. बैंकिंग सिस्टम के अंदर और बाहर फंड के मूवमेंट की निगरानी सरकारें करती हैं. सरकार के साथ-साथ नियमों से भी इनको मॅानिटर किया जाता है. मार्केट में बैंको के बीच इंवेस्टमेंट पर हाई इंटरेस्ट रेट देने का दबाव बना रहता है. इस वजह से ही एक अलग फाइनेंशियल सब्स्टिट्यूट खड़ा होता है. जिसे शेडो बैंकिग कहते हैं. आरबीआई के अनुसार शैडो बैंकिंग सिस्टम शब्द का पहली बार 2007 में इस्तेमाल किया गया था. इसने लोकप्रियता वित्तीय संकट के दौरान हासिल की. इसमें बैंक जैसे ही फंक्शन का इस्तेमाल रेगुलर बैंकिंग प्रणाली के बाहर कुछ संस्थाएं करती हैं. क्रेडिट मध्यस्थता रेगुलर बैंकिंग सिस्टम के बाहर संस्थाओं और गतिविधियों को ग्लोबल लेवल पर एक्सेप्टेंस मिली है. शैडो बैंकिंग दो तरह से हो सकती है. पहली, नॅान बैंक फाइनेंशियल संस्थाएं. जो बैंकिंग प्रणाली से बाहर की वित्तीय संस्थाएं या बैंक जैसी ही सर्विसेज देती हैं. जैसे कि मेच्योरिटी चेंज, क्रेडिट रिस्क ट्रांसफर का काम करना आदि. इसी तरह दूसरे तरह की शैडो बैंकिंग मे ऐसी संस्थाएं आती हैं जो सीधे वित्तीय मध्यस्थता करती हैं. जैसे फाइनेंस कंपनियां या एनबीएफसी और म्युचुअल फंड.
क्या हैं शैडो बैंकिंग के काम
शैडो बैंक शॅार्ट टर्म सिक्योरिटी जारी करते हैं. जिनका इस्तेमाल लंबी ड्यूरेशन के लिए एसेट खरीदने के लिए कर सकते हैं. ज्यादातर शैडो बैंक डायरेक्ट या इन्डायरेक्ट रुप से फाइनेंशियल बैंकों पर निर्भर रहते हैं. शैडो बैंकिंग संस्था के पास लिक्विड लाएबबिलिटी होनी चाहिए. लेकिन एसेट इलिक्वड होने चाहिए. इसके साथ ही बैंक को इंवेस्ट करते समय ज्यादा लेवरेज का इस्तेमाल करना चाहिए. ये इंवेस्टमेंट दूसरे इंस्टीट्यूट से पैसा जुटाकर किया जा सकता है.
शैडो बैंकिंग के क्या हैं फायदे
शैडो बैंकिंग फाइनेंशियल सिस्टम का एक बहुत ही जरुरी हिस्सा है. इसके इस्तेमाल से ट्रांजेक्शन में लगने वाला कॅास्ट कम लगता है. साथ ही इनकी तुरंत डिसीजन लेने की क्षमता और ग्राहक उन्मुखीकरण भी इसके फायदों में आते हैं. भारत में गैर-बैंकिंग वित्त कंपनियां (NBFC) एक तरह से शैडो बैंकिंग सिस्टम का जरुरी हिस्सा है. इसका काम फाइनेंशियल सर्विस को लोगों की ज्यादा पहुंच तक लाना होता है. एनबीएफसी को कभी-कभी उनके प्रोडक्ट और सर्विस के कारण बैंकों के समान देखा जाता है. इसके साथ ही सिक्योरिटी को बेचकर जुटाए गए फंड पर कोई रेगुलेशन नहीं होता है. जिससे शैडो बैंक बिना किसी ऑब्लिगेशन के ज्यादा से ज्यादा रिस्क ले सकते हैं.
शैडो बैंकिंग के नुकसान
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शैडो बैंक, बैंकिंग के लिए एक प्रमुख रोल तो निभाते हैं. लेकिन उनकी प्रणाली और गतिविधियां रिस्क भी पैदा करती हैं. इनकी पेंचीदगी, क्रॅास ज्यूरीडिक्शनल नेचर के साथ-साथ इनका बैंकिंग सिस्टम के साथ इंटरकनेक्शन रिस्क का खतरा बनाता है. शैडो बैंक के पास किसी भी तरह का फंड बैकअप नहीं होता है. जो जमाकर्ताओं को अचानक अपने पैसे निकालने की इच्छा होने पर उन्हें परेशानी से बचा सके. ये सच है कि कर्मशियल बैंक इन्डायरेक्टली शैडों बैंकिंग संस्थानों का मदद करते हैं. लेकिन वे शैडो बैंकों को केश डिपॅाजिट करने का हक नहीं देते. ऐसे में इमरजेंसी के समय पैसों की जरुरत पड़ने पर परेशानी हो सकती है. इसके साथ ही लेवरेज रिस्क, रेगुलेटरी आरबिट्रेज और कंटेजियन रिस्क भी प्रमुख हैं.
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11:06 AM IST