कर्ज के जाल में फंस चुके हैं और Loan Settlement करना चाहते हैं? ध्यान से समझ लें ये 5 बातें, फायदे में रहेंगे
Written By: सुचिता मिश्रा
Fri, Nov 29, 2024 08:30 AM IST
बैंक से लोन लेने के बाद व्यक्ति जब उसे चुकाने में पूरी तरह से असमर्थ हो जाता है, तब वो लोन सेटलमेंट का सहारा लेता है. बैंकिंग भाषा में इसे One Time Settlement (OTS) कहा जाता है. OTS बैंक और उधारकर्ता के बीच एक समझौता होता है जिसमें एक बार में निश्चित अमाउंट पर लोन सेटलमेंट किया जाता है. अगर आप भी लोन सेटल करने के बारे में सोच रहे हैं, तो पहले कुछ बातों को जरूर समझ लें, इससे आपका ही फायदा होगा.
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इस तरह रखें लोन सेटलमेंट का प्रस्ताव
बैंक आपको लोन सेटलमेंट की अनुमति क्यों प्रदान करे, इसके लिए आपको स्पष्टीकरण तैयार करना होगा. ऐसे में आपके पास लोन सेटलमेंट के लिए ठोस वजह होनी चाहिए, जिससे बैंक को आश्वस्त किया जा सके. इसके बाद बैंक में जाकर बात करें और बताएं कि आप लोन नहीं दे पा रहे हैं, इसे निपटाने के इच्छुक हैं. इसके बाद लोन सेटलमेंट का प्रस्ताव दें.
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सेटलमेंट के लिए कम रकम पेश करें
लेनदार हमेशा ये चाहता है कि आपसे सेटलमेंट के दौरान भी ज्यादा से ज्यादा राशि ली जा सके, इसलिए आप सेटलमेंट के लिए अपनी तरफ से बहुत कम पेशकश करें. आप अपनी बकाया राशि का 30% से बातचीत करके शुरू करें. हालांकि बैंक आपको इसके लिए इनकार कर सकता है. बैंक की ओर से आपको लोन सेटलमेंट के लिए 80 प्रतिशत तक राशि का भुगतान करने का प्रस्ताव दिया जा सकता है, लेकिन आपको अपनी परेशानियां बताकर किसी तरह से बैंक के सेटलमेंट के अमाउंट को 50 प्रतिशत पर लाने का प्रयास करना है. अगर बात बन जाती है, तो लोन को 50% पर फाइनल करें. इससे आपको काफी राहत मिल जाएगी.
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बैंक से करें ये अनुरोध
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ध्यान रखें कि लोन सेटलमेंट से लोन क्लोज नहीं होता
लोन सेटलमेंट से लोन क्लोज नहीं होता, सेटल्ड लोन बीच का एक रास्ता होता है, जिस पर उधारकर्ता और बैंक दोनों की सहमति होती है. लोन सेटलमेंट के समय डिफॉल्टर को बकाया प्रिंसिपल अमाउंट तो पूरा देना पड़ता है, लेकिन इंटरेस्ट अमाउंट के साथ-साथ पेनल्टी और अन्य चार्ज को आंशिक या पूर्ण रूप से माफ किया जा सकता है. लेकिन सेटलमेंट करने पर बैंक के पास वो पूरी रकम नहीं पहुंचती जो उधारकर्ता को अपने लोन टेन्योर के बीच लौटानी होती है. इसलिए बैंक उधारकर्ता की क्रेडिट हिस्ट्री में सेटल्ड लिख देते हैं. इससे ये पता चलता है कि उधार लेने वाले के पास लोन को चुकाने के पैसे नहीं थे.
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