नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली सरकार अगले साल होने वाले आम चुनाव से पहले समग्र या चुनिंदा कर्ज माफी की घोषणा कर सकती है. हालांकि यह किसानों की समस्याओं के समाधान के लिये खराब उपाय हो सकता है. एसबीआई रिसर्च के अर्थशास्त्रियों ने एक रिपोर्ट में यह बात कही. इसके बजाय किसानों की आय बढ़ाने वाली योजनाएं अधिक प्रभावी विकल्प हो सकती हैं. इसके अलावा ग्रामीण समस्याओं को दूर करने के लिये साहसिक कदम उठाने की जरूरत है.

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एसबीआई रिसर्च ने केंद्र में सत्तारूढ़ बीजेपी को तीन प्रमुख राज्यों में विधानसभा चुनावों में हार के बाद यह बात कही है. इन राज्यों में किसान उपज के कम भाव और कच्चे माल की ऊंची लागत से प्रभावित हैं.

बृहस्पतिवार को जारी रिपोर्ट में कहा गया है, 'कृषि क्षेत्र में समस्या और खाद्य मुद्रास्फीति में कमी के कारण कृषक समुदाय की कम आय होने की आशंका को देखते हुए केंद्र सरकार समग्र रूप से या चुनिंदा रूप से कुछ राज्यों में कृषि कर्ज माफी योजना पर विचार कर सकती है.'

कुछ मीडिया में इसी प्रकार की खबरों के बीच यह रिपोर्ट आयी है. खबरों में कहा गया है कि संसदीय चुनाव के साथ सात राज्यों में चुनाव होने जा रहे हैं, ऐसे में कृषि कर्ज माफी जैसे निर्णय किये जा सकते हैं. बैंक तथा रिजर्व बैंक हमेशा से इस बात को लेकर चिंता जताते रहे हैं कि कर्ज माफी से ऋण लौटाने की संस्कृति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा.

रिपोर्ट के अनुसार अगर सरकार मई, 2019 तक कृषि कर्ज माफी योजना लाती है तो इस पर 70,000 करोड़ रुपये तक खर्च हो सकता है. यह बैंकों के लिये एक बड़ी चुनौती होगी. हालांकि रिपोर्ट में विकल्प के तौर पर आय समर्थन योजना की वकालत की गयी है. इस पर 50,000 करोड़ रुपये के खर्च के साथ लक्षित समूह को ज्यादा लाभ पहुंचाया जा सकता है.

इसमें कहा गया है, 'कृषि ऋण माफी समस्या का समाधान नहीं है. हमें किसानों की आय बढ़ानी है. इसीलिए अखिल भारतीय स्तर पर आय बढ़ाने वाली योजना पेश करने की काफी जरूरत है.'

रिपोर्ट के अनुसार देश में 21.6 करोड़ लघु एवं सीमांत किसान हैं और इस प्रकार की योजना किसानों के समर्थन का एकमात्र रास्ता है. इसके अलावा उनके उपज का वाजिब मूल्य सुनिश्चित किया जाना चाहिए. इसमें सुझाव दिया गया है कि दो किस्तों में प्रति परिवार अगर 12,000 रुपये उपलब्ध कराया जाता है, इससे राष्ट्रीय स्तर पर 50,000 करोड़ रुपये का खर्च आएगा.