पिछले कुछ महीनों से बैंक डिपॉजिट (Bank Deposit) कम होने को लेकर चिंता बढ़ रही है. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) से लेकर रिजर्व बैंक (RBI) के गवर्नर शक्तिकांत दास (Shaktikanta Das) तक टेंशन में हैं. तमाम कोशिशें की जा रही हैं कि कैसे बैंक डिपॉजिट बढ़ाया जाए, क्योंकि इससे बैंकिंग सेक्टर पर बड़ा असर पड़ रहा है. वहीं देश के सबसे बड़े बैंक भारतीय स्टेट बैंक (SBI) का इस मामले को लेकर कुछ और ही सोचना है.

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जमा और ऋण वृद्धि के बीच बढ़ते फासले को लेकर फैली चिंताओं के बीच भारतीय स्टेट बैंक के चेयरमैन दिनेश खारा (Dinesh Khara) ने शुक्रवार को कहा कि यह देश के सबसे बड़े ऋणदाता के लिए कोई चुनौती नहीं है क्योंकि वह अग्रिमों में वृद्धि का समर्थन करने में सक्षम है. खारा ने यहां संवाददाताओं से कहा कि बैंक ऋण वृद्धि का समर्थन करने के लिए जरूरी संसाधन की व्यवस्था करने के लिए सरकारी प्रतिभूतियों में अपने अतिरिक्त निवेश का एक हिस्सा निकाल रहा है. 

लगभग दो वर्षों से जमा वृद्धि बैंकिंग प्रणाली के लिए ऋण वृद्धि से पीछे चल रही है. सार्वजनिक क्षेत्र का सबसे बड़ा बैंक एसबीआई भी अपने कारोबार में समान रुझान देख रहा है. कुछ विशेषज्ञों का मानना ​​है कि यह बचत के उच्च उपज वाले पूंजी बाजार विकल्पों में प्रवाह के कारण है, जबकि एसबीआई के अपने शोधकर्ताओं ने इन चिंताओं को ‘सांख्यिकीय मिथक’ कहा है. 

इस बारे में पूछे जाने पर एसबीआई चेयरमैन ने कहा, ‘‘हम अपने कर्ज बही-खाते में वृद्धि का अच्छी तरह से समर्थन करने की स्थिति में हैं. जबतक हम ऋण वृद्धि का अच्छी तरह से समर्थन कर सकते हैं, मुझे नहीं लगता कि हमारे सामने कोई चुनौती है.’’ उन्होंने कहा कि बैंक के पास 16 लाख करोड़ रुपये से अधिक का निवेश है, और ऋण वृद्धि का समर्थन करने के लिए अतिरिक्त वैधानिक तरलता अनुपात (एसएलआर) का एक हिस्सा हटा रहा है.

(भाषा से इनपुट के साथ)