देश के 10 बड़े डिस्टिक सेंट्रल कोऑपरेटिव बैंकों का प्रबंधन बीजेपी, कांग्रेस, एनसीपी और शिव सेना के नेताओं के हाथ में है. वहीं अंग्रेजी के अखबार इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी एक रिपोर्ट में दावा किया है कि आरटीआई से मिली जानकारी के अनुसार इन कोऑपरेटिव बैंकों में नोटबंदी के दौरान बड़े पैमाने पर 500 और 1000 रुपये के नोट बदले गए.

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नोटबंदी के दौरान 370 कोऑपरेटिव बैंकों में नोट बदले गए

रिपोर्ट के अनुसार नेशनल बैंक ऑफ एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंड (नाबार्ड) से आरटीआई के तहत मिली जानकारी के अनुसार नोटबंदी के दौरान देश में 370 डिस्टिक सेंट्रल को ऑपरेटिव बैंकों में नोट बदले गए. इन बैंकों में 22270 करोड़ रुपये कीमत के 500 और 1000 के नोट बदले गए. इसमें से 18.82 फीसदी (4191.39 करोड़) रुपया मात्र 10 बड़े बैंकों में बदला गया. प्राप्त जानकारी के अनुसार इन 10 बड़े बैंकों में से 04 बैंक गुजरात में स्थित हैं वहीं 04 महाराष्ट्र में स्थित हैं. एक बैंक हिमांचल प्रदेश व एक कर्नाटक में स्थित है.

बैंको का नियंत्रण नेताओं के हाथ में है

आरटीआई में मिली जानकारी के अनुसार 745.59 रुपये कीमत के नोट अहमदाबाद डिस्ट्रिक कोऑपरेटिव बैंक में बदले गए. इस बैंक के निर्देशकों में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह शामिल हैं. वहीं इस बैंक के चेयरमैन भाजपा के नेता अजय भाई पटेल हैं. वहीं गुजरात में मौजूद दूसरा कोऑपरेटिव बैंक राजकोट में स्थित है. इसका नाम राजकोट डिस्ट्रिक कोऑपरेटिव बैंक है. इस बैंक के प्रमुख भाजपा के नेता गुजरात सरकार में जयेशभाई रडाडिया हैं. इस बैंक में 693.19 करोड़ रुपये बदले गए.

नाबार्ड ने कई नोट बदलने वालों के कागजात जांचें

तीसरा कोऑपरेटिव बैंक जिसमें सबसे अधिक नोट बदले गए वो पुणे में स्थित है. इस बैंक का नाम पुणे डिस्ट्रिक कोऑपरेटिव बैंक है. यहां पर कुल 551.62 करोड़ रुपये कीमत के नोट बदले गए. इस बैंक के अध्यक्ष एनसीपी के पूर्व विधायक रमेश थोराट हैं. कांग्रेस की नेता अर्चना गारे इस बैंक की उपाध्यक्ष हैं. इस बैंक में एनसीपी प्रमुख शरद पवार के भतीने अजीत पवार भी  निदेशक हैं. आरटीआई में मिली जानकारी के अनुसार नाबार्ड ने इन सभी 370 डिस्टिक सेंट्रल को ऑपरेटिव बैंकों में नोट बदलने वाले लगभग 3115964 लोगों के कागजों की जांच की है. वहीं यह भी जानकारी मिली की ज्यादातर राज्यों में इस तरह के डिस्टिक सेंट्रल को ऑपरेटिव बैंकों का नियंत्रण स्थानीय पार्टियों विशेष तौर पर सत्ता में मौजूद पार्टियों के नेताओं के हाथ में है.