'रॉयल एनफील्ड'- कामयाबी की अनसुनी कहानी, 1990 में बंद हो जाती तो कभी नहीं सुनते 'बुलेट' की आवाज़
Royal Enfield success story: पहले ब्रिटिश फर्म रॉयल एनफील्ड 'बुलेट' बनाती थी. साल 1971 में ब्रिटिश कंपनी के बंद होने के बाद इंडियन मैन्युफैक्चरर्स ने 'बुलेट' के राइट्स खरीद लिए.
Royal Enfield success story: आवाज कानों में पड़ते ही जेहन में उसकी पहचान खुद-ब-खुद दस्तक दे जाती है. दीदार के लिए निगाहें दूर तक चली जाती हैं. 'बुलेट' (Royal enfield Bullet) की सवारी की ख्वाहिश रखने वाले हर किसी शख्स के मुंह से ये ही लाइनें निकलती हैं. इसके चाहने वाले कहते हैं बाइक हो तो 'बुलेट' जैसी वरना पैदल ही ठीक. शायद बुलेट को देखकर हम में से ज्यादातर लोगों के दिल से यही आवाज निकलती होगी. आज रॉयल एनफील्ड (Royal Enfield) की बाइक्स रोड के साथ लोगों के दिमाग में 'बुलेट' की तरह दौड़ रही हैं. एक समय था जब बुलेट की पेरेंट कंपनी (Bullet Parent company) इसे बंद करना चाहती थी. लेकिन, एक शख्स ने इसे फिर से शान की सवारी बनाने का बीड़ा उठाया और ऐसा करके दिखा दिया... रॉयल एनफील्ड की बाइक्स आज लोगों के दिलों पर राज करती हैं.
सबसे ज्यादा बिकने वाली बाइक बनी
रॉयल एनफील्ड ने 1 सितंबर को बाजार में Classic 350 लॉन्च की है. नई क्लासिक 350 J प्लेटफॉर्म पर बेस्ड दूसरा मॉडल है. इससे पहले रॉयल एनफील्ड meteor 350 को इसी प्लेटफॉर्म पर पिछले साल लॉन्च किया गया था. टूबाइक के इंजन और डिजाइन को अपग्रेड किया गया है. इस बाइक की कीमत 1.84 लाख रुपए से लेकर 2.51 लाख रुपए है. इसे 5 वेरिएंट में लॉन्च किया गया है. 11 कलर ऑप्शन के साथ मिलेगी.
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कब शुरू हुई बुलेट की सवारी
रॉयल एनफील्ड की बाइक्स 1949 से इंडिया में बिक रही हैं. भारतीय सरकार ने 1954 में पाकिस्तान बॉर्डर पर पुलिस कर्मियों और आर्मी की पेट्रोलिंग ड्यूटी के लिए 800 मोटरसाइकिल का ऑर्डर दिया था. यह ऑर्डर ब्रिटेन की एनफील्ड साइकिल कंपनी (Enfield Cycle Company) को 'बुलेट 350' के लिए दिया गया था. उस जमाने का यह बड़ा बल्क ऑर्डर था. इन बाइक्स को कंपनी के रेडिच प्लांट में तैयार किया गया था. सही मायने में इंडिया में 'बुलेट' (Indian Bullet motorcycle) का सफर यहां से शुरू हुआ. इस बल्क ऑर्डर के बाद ब्रिटेन की रेडिच कंपनी ने 1955 में इंडिया की मद्रास मोटर्स के साथ मिलकर 350 cc बुलेट की एसेंबलिंग के लिए कंपनी बनाई- 'एनफील्ड इंडिया'.
इंडियन बुलेट
पहले ब्रिटिश फर्म रॉयल एनफील्ड 'बुलेट' बनाती थी. साल 1971 में ब्रिटिश कंपनी के बंद होने के बाद इंडियन मैन्युफैक्चरर्स ने 'बुलेट' के राइट्स खरीद लिए. लेकिन, 1970 से 1980 के बीच रॉयल एनफील्ड के मैनेजमेंट की तरफ से कई ऐसे फैसले लिए गए, जिससे कंपनी भारी बोझ के तले दब गई. वहीं, 1990 में सीडी 100 के आने से भी रॉयल एनफील्ड को झटका लगा. बुलेट बाजार से तकरीबन बाहर हो चुकी थी. 1994 में आयशर ने बुलेट पर भरोसा जताते हुए इसे कंपनी को खरीद लिया.
इन्होंने लिया चैलेंज
साल 2000 में आयशर ग्रुप को घाटा हुआ. ग्रुप के सीनियर एग्जीक्यूटिव्स की राय में रॉयल एनफील्ड को बेचना या बंद करना सही फैसला था. ग्रुप के इस डिवीजन को 20 करोड़ का घाटा हुआ था. विक्रम लाल के बेटे सिद्धार्थ लाल ने डिवीजन को नेट प्रॉफिट में लाने के लिए 24 महीने का समय मांगा. सिद्धार्थ डिवीजन के हेड बने और सबसे पहले उन्होंने जयपुर का नया एनफील्ड प्लांट बंद किया. फिर डीलर डिस्काउंट खत्म किया, जिससे कंपनी पर हर महीने 80 लाख रुपए का भार पड़ रहा था. सिद्धार्थ लाल ने कुछ साल पहले कहा था 'डू ऑर डाई डेडलाइन के चलते मुझे कड़े फैसले लेने पड़े थे.'
फिर से बनी रॉयल सवारी
उस समय सिद्धार्थ लाल और उनकी टीम ने पाया कि मोटरसाइकिल का मतलब है लंबी दूरी को एंजॉय करना है. सिद्धार्थ ने तय किया कि दूसरे मार्केट या सेगमेंट में उतरने से अच्छा है कि मौजूदा ब्रांड को मजबूत करने की कोशिश की जाए. सिद्धार्थ ने उस समय कहा था कि 'इन बाइक्स का कोई मार्केट न भी हो, तो भी हम इसे आगे बढ़ाएंगे. भले ही हमें मार्केट खड़ा करने में 10 साल और लग जाएं.' सिद्धार्थ ने शहर के 18-35 साल के युवाओं को टारगेट करते हुए साल 2001 में 350 सीसी बुलेट इलेक्ट्रा उतारी. इसे कई कलर्स और इलेक्ट्रॉनिक इग्नीशन के साथ लांच किया गया. इसकी मार्केटिंग यंग मोटरसाइकिल के तौर पर की गई.
2002 में उतारी थंडरबर्ड
इलेक्ट्रा से मिली कामयाबी के बाद 2002 में कंपनी थंडरबर्ड पेश की. इसे सीरियस मोटरसाइकलिंग सेगमेंट के लिए लाया गया. ब्रेक्स और गियर की पोजीशनिंग नॉर्मल मोटरसाइकिल की तरह दी गई. पहले बुलेट के ब्रेक दाएं और गियर बाएं पैर में होते थे. इनमें कुछ बदलाव किए गए और फिर 2002 से सफर चलता गया. कंपनी मुनाफे में पहुंची और एक के बाद एक भारतीय बाजार में रॉयल एनफील्ड की नई बाइक्स पेश की जाती रहीं. इससे ठीक पहले सिद्धार्थ ने 150 करोड़ के निवेश से चेन्नई में एक नया प्लांट खोला था, जिसकी क्षमता सालाना 3 लाख मोटरसाइकिल बनाने की थी. 2009 में क्लासिक 350 और 500 उतारी गई. 2013 के आखिर में कैफे रेसर 535 सीसी 'कॉन्टिनेंटल जीटी' को लॉन्च किया गया.
शान से भर रही फर्राटा
सिद्धार्थ ने रीटेल आउटलेट्स और मार्केटिंग पर काफी ध्यान दिया. उन्होंने ऐसे आउटलेट्स शुरू किए जहां बाइक खरीदने वालों को बेहतर एक्सपीरियंस दिया जा सके. रॉयल एनफील्ड बाइकर्स के लिए अलग-अलग राइड भी ऑर्गेनाइज करती रहती है. 2012 में कंपनी की 81,464 मोटरसाइकिलें बिकीं, जबकि 2013 के दौरान 1,23,018 यानी 51 फीसदी की ग्रोथ. रॉयल एनफील्ड ने 2018 में अब तक 354,740 यूनिट बेची हैं. यह पिछले साल के मुकाबले काफी ज्यादा है. सिद्धार्थ लाल कहते हैं, 'कंपटीशन से मैं परेशान नहीं होता. हमने ही 250 सीसी+ मोटरसाइकिल का मार्केट बनाया है'.