भारत इलेक्ट्रिक मोबिलिटी की दिशा में किस तरफ बढ़ रहा है? इस सवाल के जवाब में भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन और प्राधिकरण केंद्र (IN-SPACe) के अध्यक्ष डॉ. पवन गोयनका का कहना है कि इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) के मामले में भारत के लिए चमकने का वक्त अब आ गया है. आपको बता दें कि IN-SPACe निजी संस्थाओं की सभी अंतरिक्ष क्षेत्र गतिविधियों के लिए सिंगल विंडो एजेंसी है. एक अनुभवी ऑटोमोबाइल स्पेशलिस्ट डॉ. गोयनका का मानना है कि ईवी न केवल जीरो एमिशन पर गतिशीलता को संभव बनाते हैं बल्कि देश के ऑयल इंपोर्ट बिल को भी कम करने में मदद करते हैं. गौरतलब है कि भारत अपनी तेल जरूरतों का चार-पांचवां हिस्सा आयात से पूरा करता है.

भारत के पास ग्लोबल पहचान बनाने का मौका, हाइब्रिड की जगह ईवी पर हो फोकस

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डॉ. गोयनका के मुताबिक इलेक्ट्रिक मोबिलिटी के क्षेत्र में भारत के पास एक ग्लोबल पहचान बनाने का महत्वपूर्ण अवसर है. हालांकि, वह ईवी और हाइब्रिड वाहनों की तुलना को सही नहीं मानते हैं. उनका तर्क है कि हाइब्रिड वाहन एमिशन को केवल 10 प्रतिशत तक कम कर सकते हैं, लेकिन वे इसे जीरो तक लाने में समर्थ नहीं हैं. डॉ. गोयनका के अनुसार, भारत के ऑटोमोबाइल क्षेत्र को हाइब्रिड जैसे सेक्टर के बजाय पूरी तरह से ईवी पर अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिए, साथ ही चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर को बेहतर बनाने पर खास जोर देना चाहिए.

चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर पर होना चाहिए काम, ईवी की कीमत पर भी देना होगा ध्यान 

बकौल डॉ. गोयनका, 'चाहे वह केंद्र सरकार हो या फिर प्राइवेट सेक्टर के प्लेयर्स, सभी का लक्ष्य होना चाहिए कि आने वाले सालों में ईवी के लिए एक विश्वसनीय चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर सुनिश्चित करने की दिशा में काम हो. साथ ही भारत को ईवी के मौकों का फायदा उठाने के लिए ईवी की ज्यादा कीमत पर भी ध्यान देने की सख्त जरूरत है.' वह बताते हैं कि आज देश में ईवी की कीमत हाइब्रिड या फिर ICI-संचालित गाड़ियों की तुलना में बहुत ज्यादा है. भले ही ईवी पर पांच फीसदी की रियायती जीएसटी दर लागू है लेकिन, ये हाइब्रिड की दरों का महज अंश मात्र है.