UN में एक बार फिर कश्मीर मुद्दे पर भारत-पाकिस्तान आमने सामने, भारत ने पाकिस्तान को दिए ये जवाब
पाकिस्तान की multilateral forums पर झूठ फ़ैलाने की कोशिशों से ऐसे मंचों की sanctity (पवित्रता) को हानि पहुंचती है. इसका सबको मिलकर विरोध करना चाहिए. साथ ही उन्होंने पाकिस्तान के लिए कहा कि शायद उन्हें सहानुभूति की भी जरुरत है.
गुरुवार, 17 नवंबर को संयुक्त राष्ट्र (United Nation) में भारत ने पाकिस्तान पर कश्मीर मुद्दे में झूठ बोलने का आरोप लगाया. संयुक्त राष्ट्र में भारतीय स्थायी मिशन के राजनयिक प्रतीक माथुर (Diplomat Prateek Mathur) ने बहस के दौरान पाकिस्तान को साफ़ शब्दों में समझाया. माथुर ने कहा - ‘जैसा की हम सब जानते हैं कि हम यहां यूएनएससी (UNSC) के नियमों और सुधारों पर चर्चा करने के लिए मिल रहे हैं. लेकिन इस मौके पर भी पाकिस्तान के एक प्रतिनिधि ने भारत के खिलाफ फिर से जम्मू और कश्मीर का मुद्दा उठाया है. जो की बिलकुल अनुचित है. जम्मू और कश्मीर को लेकर पाकिस्तान के प्रतिनिधि कुछ भी मानते हों लेकिन भारत के लिए जम्मू और कश्मीर हमेशा से उसका अभिन्न और कभी भी ना बदलने वाला आंग है.’
पाकिस्तान को है सहानुभूति की ज़रूरत
प्रतीक माथुर ने आगे कहा कि पाकिस्तान की multilateral forums पर झूठ फ़ैलाने की कोशिशों से ऐसे मंचों की sanctity (पवित्रता) को हानि पहुंचती है. इसका सबको मिलकर विरोध करना चाहिए. साथ ही उन्होंने पाकिस्तान के लिए कहा कि शायद उन्हें सहानुभूति की भी जरुरत है. ऐसा पहली बार नहीं हुआ है की पाकिस्तान ने जम्मू और कश्मीर के मुद्दे को उठाया हो. पाकिस्तान को मौका मिलते ही वह संयुक्त राष्ट्र में कभी भी जम्मू और कश्मीर का मुद्दा उठा ही देता है और फिर इसका विरोध भी उन्हें सहना पड़ता है.
संयुक्त राष्ट में भारत का पक्ष
इससे पहले संयुक्त राष्ट में भारत की प्रतिनिधि, राजदूत रुचिरा कम्बोज (Ambassador Ruchira Kamboj) ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की एक बैठक में हिस्सा लिया था. न्यूज़ एजेंसी ANI ने बताया कि रुचिरा कम्बोज G4 देशों (ब्राज़ील, जर्मनी, जापान और भारत) की ओर से बोल रहीं थी. उन्होंने कहा कि G4 में देशों की सदस्यता बढ़ाये बिना वर्तमान के मुद्दों और वैश्विक चुनौतियों से लड़ा नहीं जा सकता. सुरक्षा परिषद को अपने चार्टर के मुताबिक काम करना चाहिए और अन्य देशों को जोड़ने के लिए सोचना चाहिए. जितने दिनों तक ये सुधार रुके रहेंगे, प्रतिनिधित्व में उतनी कमी बनी रहेगी.