सरकार के 500 और 1,000 के नोटों को बंद करने के प्रस्ताव को भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के डिप्टी गवर्नर रामा सुब्रमण्यम गांधी ने केंद्रीय बैंक के बोर्ड के समक्ष रखा था, जिसने ‘व्यापक जनहित’ में प्रस्ताव का समर्थन किया था. आधिकारिक सूत्रों ने कहा कि इस मामले में हालांकि कुछ निदेशकों ने नोटबंदी का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) पर कुछ समय के लिये नकारात्मक प्रभाव और समाज के कुछ वर्गों को आने वाली मुश्किलों को लेकर चिंता जताई थी. कुछ निदेशकों का मानना था कि कालाधन नकद धन के रूप में नहीं बल्कि सोना और रीयल एस्टेट के रूप में व्याप्त है, इसलिये नोटबंदी का इस तरह की संपत्तियों पर ज्यादा असर नहीं होगा.

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आर गांधी की ओर से रिजर्व बैंक के बोर्ड को 8 नवंबर, 2016 को दिए गए प्रस्ताव में कहा गया था कि यह कदम इसलिए जरूरी है क्योंकि एक दिन पहले आए वित्त मंत्रालय के पत्र में केंद्रीय बैंक को सलाह दी गई थी कि अधिक नकदी की वजह से ‘कालाधन’ बढ़ रहा है. 

सूचना के अधिकार (आरटीआई) के आधार पर मीडिया में इस तरह की खबरें आई थीं कि रिजर्व बैंक बोर्ड नोटबंदी की जरूरत को लेकर सरकार की दलील से सहमत नहीं था. इन्हीं खबरों के बाद आधिकारिक सूत्रों ने यह स्पष्टीकरण दिया है. 

सूत्रों ने दावा किया कि केंद्रीय बैंक ने इस प्रस्ताव को सरकार को 8 नवंबर, 2016 को ही भेज दिया था. बैठक के ब्योरे का जिक्र करते हुए सूत्रों ने कहा कि कुछ निदेशकों का कहना था कि नोटबंदी हालांकि, एक सराहनीय कदम है लेकिन इससे मौजूदा वित्त वर्ष में जीडीपी पर कुछ समय के लिये नकारात्मक असर पड़ेगा. 

सूत्रों ने कहा कि सदस्य अपनी बात रखते हैं जो ब्योरे में दर्ज होते हैं. लेकिन सदस्यों के मत समूचे रिजर्व बैंक के विचारों का प्रतिनिधित्व नहीं करते. सदस्यों के उनके विचार किसी सदस्य को प्रस्ताव को पूरी तरह स्वीकार करने के रास्ते में अड़ंगा नहीं बनते हैं.