आजकल तमाम लोग कबूतरों को दाना डालने के लिए खासतौर पर उन जगहों पर जाते हैं, जहां पर बहुत सारे कबूतर मौजूद हों. इसके अलावा कई बार आपके घर के छज्‍जे और फ्लैट की खिड़कियों पर भी कबूतर आकर बैठ जाते हैं. खिड़कियों पर बीट करते हैं. अगर आपके भी घर की खिड़कियों पर कबूतरों ने कब्‍जा जमा रखा है, तो जरा संभल जाएं क्‍योंकि आप नहीं जानते कि कबूतरों की बीट से कितनी खतरनाक बीमारी हो सकती है. आज वर्ल्‍ड हेल्‍थ डे (World Health Day) पर यहां जानिए कबूतरों से होने वाली इस बीमारी के बारे में.

फेफड़ों की गंभीर बीमारी है आईएलडी

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हम बात कर रहे हैं आईएलडी (Interstitial lung disease) की. चेस्ट कंसल्टेंट व अस्थमा भवन जयपुर की एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर डॉ. निष्ठा सिंह के मुताबिक ये फेफड़ों की गंभीर बीमारी है. इसमें मरीज के फेफड़े सिकुड़ जाते हैं. इसकी वजह से शरीर में आक्सीजन का प्रवाह कम हो जाता है. धीरे-धीरे ये बीमारी बेहद गंभीर रूप ले लेती है और व्‍यक्ति के लिए स्थिति जानलेवा हो जाती है. Acute ILD का इलाज तो फिर भी आसानी से हो सकता है, लेकिन Chronic ILD को पूरी तरह से ठीक नहीं किया जा सकता. अगर समय रहते रोग की पहचान कर ली जाए तो दवाओं के जरिए स्थिति को नियंत्रित किया जा सकता है. 

कबूतर की बीट बड़ा कारण

डॉ. निष्ठा सिंह का कहना है कि वैसे तो आईएलडी के कई कारण हो सकते हैं. लेकिन रिसर्च में सामने आया है कि भारत में ILD Hypersensitivity Pneumonitis के मरीज सबसे ज्यादा पाए जाते हैं. इसे ILD HP कहा जाता है. ये क्रॉनिक आईएलडी की स्थिति है. इसका बड़ा कारण कबूतरों की बीट है. कबूतरों की बीट में ऐसे इंफेक्‍शंस होते हैं. कबूतर की बीट सूखने के बाद पाउडर बन जाती है. ऐसे में जब कबूतर पंख फड़फड़ाते हैं तो उनकी बीट के बारीक कण सांस के जरिए शरीर में प्रवेश कर जाते हैं और इसके बाद बहुत चुपके से आपके फेफड़ों को नुकसान पहुंचाते हैं. कबूतरों के अलावा बंद कमरे की सीलन, कूलर की जालियों की गंदगी व फंगस से भी ये समस्या हो सकती है. वहीं रुमेटॉयड आर्थराइटिस, स्क्लेरोडर्मा और जॉगरेन सिंड्रोम आदि बीमारियां भी कई बार मरीजों में इस रोग की वजह बनती हैं.

ये लक्षण आते सामने 

आईएलडी के दौरान सांस फूलने, थकान, सूखी खांसी, वजन घटना आदि लक्षण सामने आते हैं. कई बार लोग इन लक्षणों को सामान्‍य मानकर नजरअंदाज कर देते हैं. लेकिन ऐसा नहीं करना चाहिए. समय रहते विशेषज्ञ से परामर्श करें, ताकि बीमारी का सही इलाज किया जा सके.

बीमारी का इलाज

रोग की शुरुआती स्थिति में एंटीबायोटिक, एंटीफिब्रोटिक, स्टेयरॉइड्स,  इम्युनोसप्रेसिव दवाओं के साथ बीमारी को नियंत्रित रखने का प्रयास किया जाता है. गंभीर हालात होने पर आजीवन ऑक्सीजन लेने की जरूरत पड़ सकती है. अगर मरीज को बार-बार संक्रमण की शिकायत हो तो फेफड़ों का ट्रांसप्‍लांट भी कराना पड़ सकता है.

बचाव के लिए क्‍या करें

बंद घर में कोई पक्षी न पालें. घर की खिड़कियों में जालियां लगवाएं. किचन में एग्जॉस्ट का प्रयोग करें. 

अगर आप रुमेटॉयड आर्थराइटिस, स्क्लेरोडर्मा और जॉगरेन सिंड्रोम जैसी बीमारी से जूझ रहे हैं, तो उसका ठीक से इलाज करवाएं. योग प्राणायाम नियमित रूप से करें ताकि आपके फेफड़े स्‍वस्‍थ रहें.

 

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