Chandrayaan-3 की सफल लैंडिंग के बाद पूरे देश में जश्‍न का माहौल है. हर कोई भारतीय होने पर गर्व कर रहा है. इस मिशन के जरिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने वो कर दिखाया है, जो आज तक कोई भी देश नहीं कर सका है. चंद्रयान-3 मिशन के बाद चंद्रमा के साउथ पोल पर सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला पहला देश भारत बन गया है. लेकिन एक सवाल लोगों के मन में है कि जब साउथ पोल पर इतनी सारी चुनौतियां हैं, तो आखिर ने इस हिस्‍से का चुनाव क्‍यों किया? इसका जवाब इसरो प्रमुख एस सोमनाथ ने दिया है. 

क्‍या कहना है इसरो चीफ का

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इसरो प्रमुख एस सोमनाथ ने बताया कि इसरो ने चंद्रयान-3 की लैंडिंग के लिए चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव को क्यों चुना? उन्‍होंने बताया कि 'हम दक्षिणी ध्रुव के करीब पहुंच गए हैं, जो लगभग 70 डिग्री पर है. सूरज की रोशनी कम पहुंचने के कारण दक्षिण ध्रुव में खास तरह के लाभ हैं. वहां पर सबसे ज्‍यादा वैज्ञानिक सामग्री होने की संभावना है. यही वजह है कि चंद्र मिशन पर काम कर रहे वैज्ञानिकों ने इसके साउथ पोल पर विशेष रुचि दिखाई है. अंतत: इंसान वहां जाना चाहता है और वहां निवेश करके आगे की यात्रा करना चाहता है. इसके लिए सबसे अच्‍छी जगह कौन सी है, इसकी हम तलाश कर रहे हैं. दक्षिणी ध्रुव में इस तरह की जगह की संभावना है.'

क्‍यों ये मिशन भारत के लिए बना बेहद खास

सीमित संसाधनों और कम बजट में भारत को मिली इस उपलब्धि ने दुनिया में नए भारत की तस्‍वीर को उजागर किया है. साउथ पोल पर उतरना आसान काम नहीं था, यही वजह है कि आज तक वहां कोई भी देश नहीं उतरा. सबसे बड़ी वजह है साउथ पोल पर गहरे गड्ढों की मौजूदगी. इसी के कारण साल 2019 में चंद्रयान-2 सफल नहीं हो पाया था. ये गड्ढे विक्रम लैंडर की क्रैश लैंडिंग की वजह बने थे. ऊबड़-खाबड़ सतह पर मैन एयरक्राफ्ट के बजाय लैंडर-रोवर को चांद पर उतारना ज्‍यादा कठिन है. इसके अलावा वहां अंधेरा है, जो चुनौतियों को और भी ज्‍यादा बढ़ा देता है. इसके अलावा वहां का तापमान -300 डिग्री फारेनहाइट या इससे भी नीचे जा सकता है. भूकंप के झटके परिस्थितियों को और मुश्किल बनाते हैं.

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