भारत में ऐसी कई जगह हैं जहां के चमत्‍कारों के किस्‍से दूर-दूर तक मशहूर हैं. ऐसी ही एक जगह है कामाख्‍या देवी मंदिर. कामाख्या माता का मंदिर (Kamakhya Mata Temple). ये मंदिर असम की राजधानी दिसपुर से करीब 7 किलोमीटर की दूरी पर स्थि​त है. कहा जाता है कि यहां माता की योनि का भाग गिरा था. इसे शक्तिपीठों में से एक माना जाता है. ये शक्ति पीठ तांत्रिक साधनाओं के लिए मशहूर है. कहा जाता है कि यहां माता रजस्‍वला होती हैं. चैत्र नवरात्रि के मौके पर आइए आपको बताते हैं इस शक्तिपीठ की महिमा. 

रजस्‍वला होती हैं माता

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कहा जाता है कि जब माता कामाख्‍या रजस्वला होती हैं, तब यहां अम्बुवाची मेले का आयोजन होता है. कहा जाता है कि जब मां रजस्‍वला होती हैं तो मंदिर के कपाट खुद बंद हो जाते हैं. इन तीन दिनों तक गुवाहाटी में कोई मंगल कार्य नहीं होता है. इस बीच ब्रह्मपुत्र नदी का जल लाल रहता है. चौथे दिन कामाख्या देवी की मूर्ति को स्नान कराकर, वैदिक अनुष्ठान आदि करके मंदिर को जन-मानस के दर्शन के लिए दोबारा खोल दिया जाता है. ये एक ऐसा चमत्‍कार है जो पूरी दुनिया में कहीं भी सुनने को नहीं मिलेगा.

प्रसाद में दिया जाता है लाल कपड़ा

जिस समय मां रजस्‍वला होती हैं, उस समय मंदिर में एक सफेद वस्‍त्र रखा जाता है. ये वस्‍त्र लाल रंग का हो जाता है. अम्बुवाची मेले के दौरान जो लोग भी मातारानी के दर्शन के लिए आते हैं, उन्‍हें प्रसाद में लाल वस्‍त्र‍ दिया जाता है. इस वस्‍त्र को अम्‍बुवाची वस्‍त्र कहा जाता है.

मंदिर में है कुंड

कामाख्‍या मंदिर तीन हिस्‍सों में बंटा हुआ है. पहला हिस्‍सा सबसे बड़ा है, लेकिन इसमें हर किसी को जाने की अनुमति नहीं होती है. मंदिर के दूसरे हिस्‍से में मातारानी के दर्शन होते हैं. माता के दर्शन किसी मूर्ति के रूप में नहीं, बल्कि कुंड के रूप में होते हैं. ये कुंड फूलों से ढका जाता है. 

बेहद प्राचीन है मंदिर

कामाख्या मंदिर देश के बेहद पुराने मंदिरों में से एक है. इस मंदिर का निर्माण 8वीं और 9वीं शताब्दी के बीच किया गया था. लेकिन हुसैन शाह ने आक्रमण कर मंदिर को नष्ट कर दिया था. 1500 ईसवी के दौरान राजा विश्वसिंह ने मंदिर को पूजा स्थल के रूप में पुनर्जीवित किया. इसके बाद सन 1565 में राजा के बेटे ने इस मंदिर का पुन: निर्माण कराया.

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