आमतौर पर नींद लेने के लिए आपको सुकून, शांति वाली जगह और आरामदायक बिस्‍तर की तलाश होती है. लेकिन जब आप ट्रेन, बस या कार में सफर करते हैं, तो कुछ ही देर में नींद के झोंके आने लगते हैं. बैठे-बैठे ही गर्दन नीचे झुक जाती है, कई लोग तो खर्राटे तक लेने लग जाते हैं. ऐसे में न आपको शोर-शराबे का फर्क पड़ता है और न ही कोई आरामदायक जगह की तलाश होती है. कभी सोचा है आपने कि आखिर ऐसा क्‍यों होता है? आइए आपको बताते हैं इसके बारे में.

दिमाग और शरीर हो जाते हैं रिलैक्‍स

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दरअसल सफर से पहले कहीं भी आने जाने की तैयारी की टेंशन, समय से जागने, ट्रेन या बस न मिलने की टेंशन वगैरह इंसान को सताती रहती है. इसके कारण दिमाग अलर्ट मोड पर रहता है और नींद ठीक से पूरी नहीं होती. लेकिन जब एक बार सफर की शुरुआत हो जाती है, तो लंबे समय तक व्‍यक्ति के पास करने के लिए कोई काम नहीं होता. ऐसे में व्‍यक्ति का दिमाग और शरीर रिलैक्‍स हो जाते हैं और नींद के झोंके आने लगते हैं. वहीं अगर आप यात्रा के दौरान किसी एक्टिविटी में खुद को इंगेज करके दिमाग को व्‍यस्‍त रखें तो आपको नींद नहीं आएगी.

रॉकिंग सेंसेशन 

इसके अलावा जब बस, ट्रेन या कार चलती है शरीर हिलता रहता है, जिसकी वजह से नींद के झोंके आने शुरू हो जाते हैं. ठीक वैसे ही जैसे बचपन में माता-पिता की गोद में बच्‍चे को लेकर हिलाते हैं और कुछ देर में बच्‍चा रिलैक्‍स होकर सो जाता है.यानी जब आप एक फ्लो में हिलते रहते हैं तो आपको नींद आने लगती है. इस स्थिति को साइंस की भाषा में रॉकिंग सेंसेशन कहा जाता है. 

ये है तीसरी वजह

सफर में इस तरह नींद आने की तीसरी वजह है व्‍हाइट नॉइज. व्‍हाइट नॉइज मन को सुकून देने वाली और शांत करने वाली ध्वनि होती है, जो नींद आने में मदद करती है. व्‍हाइट नॉइज ध्वनि होती है जो किसी शोर-शराबे जैसी धुन के ऊपर ओवरलैप करती है और सुकून देती है. सफर के दौरान व्‍हाइट नॉइज इंजन की आवाज, हवा की सरसराहट और गाड़ी में बजने वाले संगीत से पैदा होता है. 

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