Chandrayaan-3 से पहले ये चंद्र मिशन रहे हैं चर्चा में, लेकिन भारत ने जो करके दिखाया वो आसान नहीं था…
भारत से पहले तमाम देशों के चंद्र मिशन चर्चा में रहे हैं, लेकिन इन सबमें भारत का चंद्रयान-3 बेहद खास है. यही कारण है कि चांद के साउथ पोल पर जीत का पताका लहराने के बाद विश्वभर में भारत का डंका बज रहा है.
चंद्रयान-3 (Chandrayaan-3) ने बुधवार 23 अगस्त को चांद के साउथ पोल पर सफलतापूर्वक सॉफ्ट लैंडिंग करके एक नया इतिहास रच दिया है. भारत का नाम अब दुनिया के उन चार देशों में जुड़ गया है, जो सॉफ्ट लैंडिंग में एक्सपर्ट हैं. लेकिन भारत के अलावा ऐसा कोई देश नहीं है, जिसने अब तक चांद के साउथ पोल पर सॉफ्ट लैंडिंग कर पाई हो यानी दुनियाभर में भारत अब चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने वाला पहला देश बन गया है. भारत ने जो किया है, वो आसान नहीं था, यही कारण है कि विश्वभर में उसकी इस उपलब्धि का डंका बज रहा है. आइए आपको बताते हैं भारत के चंद्रयान-3 से पहले और कौन से चंद्र मिशन दुनिया में चर्चा में रहे हैं और भारत के लिए ये उपलब्धि इतनी बड़ी क्यों है.
लूना मिशन
2 जनवरी, 1959 को सोवियत संघ (रूस) ने लूना-1 अंतरिक्षयान भेजा था. यहीं से मून मिशन की शुरुआत मानी जाती है. ये चंद्रमा के पास पहुंचने वाला पहला अंतरिक्ष विमान था. लेकिन इस मिशन में रूस को खास कामयाबी नहीं मिल सकी. बड़ी सफलता दूसरी बार लूना 2 मिशन में मिली. इसने चांद की सतह के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी दीं, जिससे पता चला कि वहां कोई चुंबकीय क्षेत्र नहीं है. 3 फरवरी 1966 से 19 अगस्त 1976 के बीच आठ सॉफ्ट लैंडिंग वाले लूना मिशन हुए, जिसमें लूना-9, 13, 16, 17, 20, 21, 23 और 24 शामिल हैं. 47 साल बाद 10 अगस्त 2023 को रूस ने लूना-25 को लॉन्च किया, जिसकी लैंडिंग साउथ पोल पर चंद्रयान-3 से पहले होनी थी, लेकिन वो मिशन सफल नहीं हो सका, जबकि भारत ने ऐसा करके दुनिया के सामने इतिहास रच दिया.
सर्वेयर प्रोग्राम
नासा का सर्वेयर प्रोग्राम भी काफी चर्चा में रहा. नासा ने 1966 से 1968 तक सर्वेयर प्रोग्राम चलाया, जिसमें चंद्रमा की सतह पर सात रोबोटिक अंतरिक्ष यान भेजे गए. इन्हें सॉफ्ट लैंडिंग कराकर चंद्रमा की मिट्टी की यांत्रिकी और थर्मल विशेषताओं का डेटा इकट्ठा किया गया.
अपोलो
अमेरिका का अपोलो मिशन भी काफी चर्चा में रहा. अपोलो 8 को 1968 में लॉन्च किया गया था. चंद्रमा की कक्षा में पहुंचने वाला ये पहला मानवयुक्त मिशन था. इस मिशन में शामिल ऐस्ट्रोनॉट फ्रैंक बोरमैन, जिम लॉवेल और बिल एंडर्स ने चांद की कक्षा से लाइव ब्रॉडकास्ट किया. इसके बाद हुए सभी मिशनों के लिए इसी ने एक आधार तैयार किया.
इसके बाद अपोलो 11 चर्चा में रहा. 1969 में लॉन्च हुआ ये मिशन अमेरिका का पहला अंतरिक्ष मिशन था जिसमें इंसानों ने चंद्रमा की सतह पर कदम रखा. नील आर्मस्ट्रांग और बज एल्ड्रिन इस मिशन का हिस्सा थे. ये मिशन इतिहास का खास हिस्सा है. इसके बाद अपोलो 15 काफी चर्चा में रहा क्योंकि ये यह नासा का खास मिशन था. 1971 में लॉन्च इस मिशन के जरिए नासा ने अपना लूनर रोवर चंद्रमा पर उतारा. इससे चंद्रमा की सतह के बारे में वैज्ञानिक जानकारी जुटाने में मदद मिली. 1972 में लॉन्च अपोलो 17, अपोलो कार्यक्रम का आखिरी मिशन था.
चांग'ई
चीन ने 2019 में चांग'ई 4 मिशन को लॉन्च किया था, जो काफी चर्चा में रहा. चांग-ई-4 ने चांद की सतह पर लैंडर और यूटू-2 रोवर के साथ लैंड किया था. इससे पहले चांग-ई-3 नाम का स्पेसक्राफ्ट 2013 में चांद के सतह पर पहुंचा था. चांग-ई-3 अभी भी एक्टिव मोड में है. इसके अलावा चीन का चांग ई-5 भी चांद की सतह से नमूने इकट्ठे कर धरती पर सुरक्षित लौटकर इतिहास रचा था.
भारत का चंद्रयान-3 सबसे खास
इन सभी चंद्र मिशन के बावजूद भारत का चंद्रयान-3 मिशन सबसे खास रहा, उसका कारण है कि भारत ने इस मिशन से जो कर दिखाया, वो पूरी दुनिया में आज तक कोई देश नहीं कर पाया. सीमित संसाधनों और कम बजट में भारत को मिली इस उपलब्धि ने दुनिया में नए भारत की तस्वीर को उजागर किया है. साउथ पोल पर उतरना आसान काम नहीं था, यही वजह है कि आज तक वहां कोई भी देश नहीं उतरा. सबसे बड़ी वजह है साउथ पोल पर गहरे गड्ढों की मौजूदगी. इसी के कारण साल 2019 में चंद्रयान-2 सफल नहीं हो पाया था. ये गड्ढे विक्रम लैंडर की क्रैश लैंडिंग की वजह बने थे. ऊबड़-खाबड़ सतह पर मैन एयरक्राफ्ट के बजाय लैंडर-रोवर को चांद पर उतारना ज्यादा कठिन है. इसके अलावा वहां अंधेरा है, जो चुनौतियों को और भी ज्यादा बढ़ा देता है. इसके अलावा वहां का तापमान -300 डिग्री फारेनहाइट या इससे भी नीचे जा सकता है. भूकंप के झटके परिस्थितियों को और मुश्किल बनाते हैं.
भारत ने क्यों किया साउथ पोल का चुनाव
जाहिर है जब साउथ पोल पर उतरना इतना मुश्किल था, तो भारत ने इस जगह का चुनाव क्यों किया, ये सवाल भी आपके जेहन में होगा. इसका कारण है कि चंद्रमा के पोलर रीजन दूसरे रीजन्स से काफी अलग हैं. यहां कई हिस्से ऐसे हैं जहां सूरज की रोशनी कभी नहीं पहुंचती और तापमान -200 डिग्री सेल्सियस से नीचे तक चला जाता है. भारत के वैज्ञानिकों का अनुमान है कि इन जगहों पर बर्फ के रूप में पानी मौजूद हो सकता है. भारत के 2008 के चंद्रयान-1 मिशन ने चंद्रमा की सतह पर पानी की मौजूदगी का संकेत दिया था. भारत इन सभी पहलुओं पर स्टडी करना चाहता है, इसलिए तमाम चुनौतियों के बावजूद उसने साउथ पोल पर लैंडिंग का फैसला किया.
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