इन दिनों सोशल मीडिया पर Disease X की चर्चा है. डिजीज X की तुलना स्‍पैनिश फ्लू (Spanish Flu) से की जा रही है. कहा जा रहा है कि आने वाले समय में डिजीज X  से स्‍पैनिश फ्लू जैसी तबाही मच सकती है. 1918 में स्‍पेनिश फ्लू नाम की महामारी ने इतने लोगों की जान ली थी कि सटीक गिनती आज तक नहीं हो सकी है. लेकिन अनुमान है क‍ि इस महामारी के कारण करीब 5 करोड़ लोगों की जान गई थी. तब दुनिया की आबादी करीब 180 करोड़ थी. दो साल के अंदर करीब 60 करोड़ लोग इसकी चपेट में आ गए थे.

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भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नानी की मौत भी स्‍पैनिश फ्लू के कारण हुई थी. जब पीएम की नानी की मौत हुई, तब पीएम की मां हीराबा इतनी छोटी थीं कि उन्हें अपनी मां की शक्ल तक याद नहीं थी. इस बात का जिक्र पीएम नरेंद्र मोदी ने उस चिट्ठी में किया था, जो उन्‍होंने कोरोना काल में उन बच्‍चों को लिखी थी, जिन्‍होंने कोरोना के कारण अपने माता-पिता को खोया था. उस समय भी स्‍पैनिश फ्लू चर्चा में आया था और आज Disease X से तुलना किए जाने के कारण फिर से चर्चा में है. आइए आपको बताते हैं कि कितनी खतरनाक थी वो महामारी.

दो साल तक चला था प्रकोप

स्‍पैनिश फ्लू का प्रकोप उस समय करीब दो साल तक चला था. दूसरे साल के आखिरी तीन महीने बेहद घातक बताए जाते हैं. उसमें सबसे ज्‍यादा लोगों की मौत हुई थीं. स्‍पैनिश फ्लू से संक्रमित होने वालों और जान गंवाने वालों के 80 फीसदी मामले आखिरी तीन महीनों के ही माने जाते हैं. माना जाता है कि पहले विश्वयुद्ध के दौरान सैनिकों की आवाजाही की वजह से फ्लू के वायरस में हुए म्यूटेशन के चलते ऐसा हुआ था.

इसलिए नाम दिया गया स्‍पैनिश फ्लू

ऐसा नहीं कि ये बीमारी स्‍पेन से शुरू हुई थी और इसे स्‍पैनिश फ्लू नाम दे दिया गया. दरअसल उस समय पूरा यूरोप पहले विश्वयुद्ध में उलझा था. स्पेन अकेला ऐसा यूरोपीय देश था जो इस दौरान तटस्थ था. उस समय स्‍पेन से ही इस महामारी की खबरें आती थीं. स्‍पेन के अखबारों से ही लोगों को इस फ्लू का पता चला. इसलिए इस फ्लू को स्‍पैनिश फ्लू नाम दे दिया गया. वास्‍तव में स्‍पैनिश फ्लू की शुरुआत कहां से हुई, इसके बारे में किसी को सटीक जानकारी नहीं है. अनुमान के आधार पर तमाम तरह की बातें कही जाती हैं.

भारत में 1 से 2 करोड़ लोगों की मौत

भारत में स्‍पैनिश फ्लू की शुरुआत मुंबई से हुई थी. पहले विश्व युद्ध (1914-18) में तैनात ब्रिटिश सेना में शामिल भारतीय जवान युद्ध के मोर्चे से जब भारत पहुंचे, तो उनके साथ इस बीमारी ने भारत में प्रवेश कर लिया. फ्लू देश में फैल रहा था, लेकिन ब्रिटिश अधिकारी चुप थे. मुंबई में घनी आबादी होने के कारण सबसे ज्‍यादा मार इसी शहर को झेलनी पड़ी. इस कारण भारत में इसे बॉम्‍बे फ्लू के नाम से भी जाना जाता है. कहा जाता है कि भारत में इस फ्लू के चलते करीब एक से दो करोड़ लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी. इस फ्लू की दूसरी लहर इतनी मजबूत थी कि वो उत्तर भारत से श्रीलंका तक जा पहुंची थी.

नहीं थी वैक्‍सीन और एन 95 मास्‍क

उस समय महामारी से निपटने के लिए न तो आज की तरह कोई वैक्‍सीन थी, न एंटीवायरल या एंटीबायोटिक दवाएं, न आईसीयू और न ही एंटीजन किट या आरटीपीसीआर जैसे कोई टेस्‍ट थे और न ही एन 95 मास्‍क थे. तब एस्पिरिन, कुनाइन, अमोनिया, टरपेंटाइन, नमकीन पानी, बाम आदि का इस्‍तेमाल करके इलाज किया जाता था. उस समय लोग सर्जिकल मास्क पहनकर अपना बचाव करते थे जोकि गॉज से बनते थे. कहा जाता है कि स्‍पैनिश फ्लू आज तक खत्‍म नहीं हुआ. स्पेनिश फ्लू का H1N1 स्ट्रेन ही बर्ड फ्लू या स्वाइन फ्लू के साथ मिलकर महामारी के नए स्ट्रेन बनाता रहता है.

 

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