Rabindranath Tagore Death Anniversary 2023: रवींद्रनाथ टैगोर ने लिखें कई देशों के राष्ट्रगान, जानें उनसे जुड़ी रोचक बातें
Rabindranath Tagore Death Anniversary 2023: रवींद्रनाथ टैगोर की आज पुण्यतिथि है. तो चलिए जानते हैं उनके जीवन से जुड़ी महत्वपूर्ण और रोचक बातें.
Rabindranath Tagore Death Anniversary 2023: रवींद्रनाथ टैगोर की आज पुण्यतिथि है. टैगोर को कौन नहीं जानता, वे एक बहुत बड़े महान कवि, भारतीय राष्ट्रगान के रचयिता और संगीत-साहित्यिक सम्राट थे. उन्होंने अपने जीवन में 2000 से ज्यादा गीत लिखे. तो चलिए जानते हैं उनके जीवन से जुड़ी महत्वपूर्ण और रोचक बातें.
3 देशों का लिखा राष्ट्रगान रविंद्र नाथ टैगोर ने भारत के साथ-साथ कई और देशों का राष्ट्रगान लिखा था. जिसमें भारत, बांग्लादेश और श्रीलंका है. सिर्फ टैगोर ही ऐसे कवि हैं जिनके द्वारा लिखें राष्ट्रगान को इतना ज्यादा पसंद किया गया कि वहां के देशों ने इसे अपना राष्ट्रगान बना लिया. भारत का राष्ट्रगान ‘जन गण मन’ और बांग्लादेश का राष्ट्रगान ‘आमार सोनार बांग्ला’ टैगोर ने लिखी हैं. वहीं बात श्रीलंका की करें तो वहां के राष्ट्रगान का एक हिस्सा भी टैगोर की कविता से लिया गया है. रवींद्रनाथ टैगोर का जन्म टैगोर का जन्म 7 मई 1861 को कोलकाता में हुआ था. उनके बचपन का नाम रबी था. उनके 13 भाई-बहन थे. वे अपने भाई-बहनों में सबसे छोटे थे. उनके घर में ही शुरू से साहित्यिक माहौल था. इसलिए उन्हें बचपन से ही साहित्य में रूची हो गई. आठ वर्ष की उम्र से लिखना किया शुरू बचपन से ही घर में उन्हें साहित्यिक माहौल मिला जिस वजह से उन्होंने आठ साल की उम्र से ही कविता लिखना शुरु कर दिया था. सिर्फ 16 साल की उम्र में ही उनकी पहली कविता संग्रह भानु सिंह जारी किया गया. बैरिस्टर बनना चाहते थे टैगोर टैगोर ने इंग्लैंड के ब्रिजस्टोन पब्लिक स्कूल से पढ़ाई की थी. वे एक बैरिस्टर बनना चाहते थे इसलिए वह स्कूली शिक्षा खत्म करने के बाद कानून की पढ़ाई पढ़ने के लिए लंदन कॉलेज यूनिवर्सिटी गए, लेकिन वहां लॉ में उनका मन नहीं लगा जिस वजह से वह पढ़ाई बीच में ही छोड़कर 1880 में भारत वापस आ गए. टैगोर को मिले कई पुरस्कार टैगोर भारत के पहले व्यक्ति थे जिन्हें साहित्य के लिए 1913 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. यह पुरस्कार उन्हें उनकी रचना गीतांजलि के लिए मिला था. टैगोर को नोबेल पुरस्कार मिला था, लेकिन उन्होंने इसे खुद नहीं लिया था, उनकी जगह ब्रिटेन के एक राजदूत ने यह पुरस्कार लिया था. नोबेल पुरस्कार के अलावा ब्रिटिश सरकार ने टैगोर को ‘नाइट हुड’ यानी 'सर' की उपाधि से भी नवाजा था.