घूमने के शौकीन लोग जब कहीं पर जाते हैं, तो सिर्फ नजारा ही नहीं देखते, बल्कि वहां की विशेषताएं और इतिहास पर भी गौर करते हैं. लेकिन अगर आपको किसी जगह की थोड़ी बहुत जानकारी पहले से हो और उसके बाद वहां पर घूमने के लिए जाया जाए, तो घूमने का मजा दोगुना हो जाता है. संगम नगरी के नाम से मशहूर प्रयागराज भी ऐसा ही एक खूबसूरत शहर है, जिससे मुगलों से लेकर ब्रिटिश काल तक के कई दिलचस्‍प पहलू जुड़े हुए हैं. अगर आप इस शहर में घूमने का प्‍लान बना रहे हैं, तो पहले यहां से जुड़ी कुछ बातें जरूर जान लें.

इस शहर को किसने दिया था इलाहाबाद नाम

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प्रयागराज को पहले इलाहाबाद के नाम से जाना जाता था, आज भी तमाम लोग इस शहर को इलाहाबाद ही कहते हैं. इस शहर को मुगल सम्राट अकबर ने बसाया था और उन्‍होंने ने इसे इलाहाबाद नाम दिया था. अकबर ने इस शहर का नाम इलाहबास रखा था, जिसका मतलब है 'अल्‍लाह का शहर'. बाद में इस शहर को इलाहाबाद कहा जाने लगा. मुगल साम्राज्य के दौरान ये शहर एक प्रांतीय राजधानी बन गया था और 1599 से 1604 तक यह सम्राट जहांगीर का मुख्यालय था. 

ब्रिटिश काल में बना था एक दिन की राजधानी

मुगलों के पतन के बाद ब्रिटिश दौर आया. अंग्रेजों के जमाने में इस शहर को एक दिन की राजधानी बनने का गौरव प्राप्‍त हुआ. साल 1858 में इलाहाबाद को एक दिन के लिए भारत की राजधानी घोषित किया गया था. जिस समय इलाहाबाद को भारत की राजधानी बना, उस समय ये शहर उत्तर पश्चिम प्रांत की राजधानी भी था. ब्रिटिश काल में ये शहर ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीय विद्रोह का सबसे बड़ा केंद्र रहा है. 

अब पर्यटन नगरी के रूप में मशहूर

प्रयागराज लंबे समय से एक प्रशासनिक और शैक्षिक केंद्र रहा है. वहीं अब प्रयागराज पर्यटन नगरी के रूप में मशहूर हो रहा है. शहर के अंदर और आसपास तमाम ऐतिहासिक और धार्मिक स्‍थल हैं, जहां लोग घूमने के लिए आते हैं. सबसे पहला स्‍थान है त्रिवेणी संगम. प्रयागराज एक ऐसी जगह है, जहां पर तीन पवित्र नदियों गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम होता है. ये जगह दुनियाभर में मशहूर है. इस जगह के कारण तमाम लोग प्रयागराज को संगम नगरी भी कहते हैं. हर 12 साल में इस स्थान पर कुंभ मेला और हर छह साल में अर्ध कुंभ का आयोजन किया जाता है.

इसके अलावा घूमने के लिहाज से इलाहाबाद में खुसरो बाग जा सकते हैं, यहां मुगल वास्‍तुकला को देख सकते हैं. इसके अलावा यहां का आनंद भवन पर्यटकों के बीच आकर्षण का केंद्र है. ये कभी नेहरू परिवार की हवेली हुआ करता था. 1970 में इंदिरा गांधी ने इस हवेली को भारत सरकार को दान कर दिया था. अब ये जगह आनंद भवन के नाम से मशहूर है. इसकी देखरेख का जिम्‍मा भी सरकार का है. आनंद भवन एक ऐतिहासिक गृह संग्रहालय है जिसमें जवाहर तारामंडल भी है.

 

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