पितृ पक्ष 10 सितंबर से शुरू हो चुका है और इसका समापन 25 सितंबर को होगा. पितृ पक्ष अपने पूर्वजों को याद करने और उनके उपकार का आभार व्‍यक्‍त करने के दिन माने जाते हैं. मान्‍यता है कि इस बीच हमारे पूर्वज हमारे आसपास धरती लोक पर ही होते हैं. इन दिनों में पितरों के निमित्‍त तर्पण और श्राद्ध किया जाता है. व्‍यक्ति की मृत्‍यु जिस तिथि पर हुई है, उसी तिथि पर उसकी श्राद्ध की जाती है. अगर आपको तिथि याद नहीं, तो अमावस्‍या के दिन श्राद्ध कर सकते हैं. श्राद्ध का भोजन दोपहर में कराया जाता है. लेकिन क्‍या आप इसकी वजह जानते हैं ? अगर नहीं, तो आइए हम आपको बताते हैं.

दोपहर को माना गया है पितरों का समय

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इस मामले में पंडित राम नरेश शर्मा बताते हैं कि शास्त्रों में सुबह और शाम का समय देव कार्य के लिए, घोर अंधेरे का समय आसुरी और नकारात्‍मक शक्तियों की प्रबलता का और दोपहर का समय पितरों का बताया गया है. इसके अलावा पितृ लोक मृत्युलोक और देवलोक के बीच और चंद्रमा के ऊपर स्थित बताया गया है. मध्‍य समय पितरों को समर्पित होने के कारण श्राद्ध का भोज दोपहर में खिलाकर उन्‍हें समर्पित किया जाता है.

सूरज की किरणों से ग्रहण करते हैं भोज

दूसरी वजह ये मानी जाती है कि सूरज पूर्व दिशा से निकलता है, जो कि देवों की दिशा है और दोपहर के समय वो मध्‍य में पहुंच जाता है. मान्यता है कि धरती पर पधारने वाले हमारे पितर सूरज की किरणों के जरिए ही श्राद्ध का भोजन ग्रहण करते हैं. चूंकि दोपहर तक सूर्य अपने पूरे प्रभाव में आ चुका होता है, इसलिए दोपहर के समय पूर्वज उनके निमित्‍त किए गए पिंड, पूजन और भोजन को आसानी से ग्रहण कर लेते हैं. इस कारण श्राद्ध का सबसे श्रेष्ठ समय दोपहर का है. पंडित राम नरेश शर्मा कहते हैं कि श्राद्ध कभी सूर्य के अस्‍त होने के समय या अस्‍त होने के बाद नहीं करनी चाहिए.

इस तरह करें श्राद्ध

पंडित राम नरेश कहते हैं कि श्राद्ध को पूरे नियम और समर्पण से करना चाहिए, इससे पितरों का आशीष प्राप्‍त होता है. श्राद्ध वाले दिन आप घर की दक्षिण दिशा में सफेद वस्त्र पर पितृ यंत्र स्थापित कर उनके निमित, तिल के तेल का दीप व सुगंधित धूप करें. इसके बाद तिल मिले जल से तर्पण दें. कुश आसन पर बैठकर गीता के 16वें अध्याय का पाठ करें और भगवान से अपने पितरों की मुक्ति की प्रार्थना करें. इसके बाद ब्राह्मण को पूरे आदर और श्रद्धा के साथ भोजन कराएं. उन्‍हें भोजन कराने तक स्‍वयं व्रत रखें. उनका भोजन पूरी साफ सफाई से बनवाएं और प्‍याज लहसुन का इस्‍तेमाल न करें. भोजन के बाद उन्‍हें वस्त्र-दक्षिणा दें और पैर छूकर आशीर्वाद लें और अपने पितरों से गलती की क्षमायाचना करें. शाम के समय दक्षिण दिशा में सरसों के तेल का दीपक जलाकर रखें.