इन दिनों पितृ पक्ष चल रहे हैं, जो 25 सितंबर तक चलेंगे. पितृ पक्ष के दौरान पितरों के निमित्‍त श्राद्ध और तर्पण किया जाता है. श्राद्ध कर्म के दौरान पंच ग्रास निकाला जाता है. इसे पंचबलि भोग भी कहा जाता है. कहा जाता है कि पंचबलि भोग के बिना पूर्वज असंतुष्‍ट रहते हैं और श्राद्ध कर्म को स्‍वीकार नहीं करते हैं. इसलिए पंचबलि भोग के बगैर श्राद्ध पूरा नहीं माना जाता है. आइए ज्‍योतिषाचार्य डॉ. अरविंद मिश्र से जानते हैं क्‍या होता है पंचबलि भोग और इसका क्‍या महत्‍व है !

पंचबलि का महत्‍व

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ज्‍योतिषाचार्य का कहना है कि श्राद्ध के समय पंचबलि भोग लगाने का जिक्र गरुड़ पुराण में भी किया गया है और बताया गया है कि इससे पितरों की आत्‍मा तृप्‍त होती है और वे प्रसन्‍न होते हैं. इससे आपको और परिवार को उनका आशीष मिलता है. अगर आप श्राद्ध पक्ष में रोजाना पंचग्रास निकाल सकें, तो बहुत ही अच्‍छा है. लेकिन अगर रोज नहीं निकाल सकें, तो कम से कम श्राद्ध वाले दिन जरूर निकालें.

क्‍या होता है पंचबलि भोग

पंचबलि भोग में पांच तरह के जीवों को भोग लगाने की बात शास्‍त्रों में कही गई है. पहला भोग गाय के लिए निकाला जाता है. इसे गो बलि कहा जाता है. दूसरा कुत्‍तों के लिए निकाला जाता है, इसे कुक्कुर बलि कहा जाता है. तीसरा कौए के लिए निकाला जाता है, जिसे काक बलि कहा जाता है. चौथा देवताओं के लिए निकाला जाता है, जिसे देव बलि कहा जाता है. देव बलि के समय देव ग्रास को जल में प्रवाहित कर दें  पांचवां चीटियों के लिए निकाला जाता है जिसे पिपीलिकादि बलि कहा जाता है.

हर बलि के समय बोलना चाहिए अलग मंत्र

गो बलि के लिए: ॐ सौरभेयः सर्वहिताः, पवित्राः पुण्यराशयः, प्रतिगृह्णन्तु में ग्रासं, गावस्त्रैलोक्यमातरः, इदं गोभ्यः इदं न मम्.

कुक्कुर बलि के लिए: ॐ द्वौ श्वानौ श्यामशबलौ, वैवस्वतकुलोद्भवौ, ताभ्यामन्नं प्रदास्यामि, स्यातामेतावहिंसकौ, इदं श्वभ्यां इदं न मम.

काक बलि के लिए: ॐ ऐन्द्रवारुणवायव्या, याम्या वै नैऋर्तास्तथा, वायसाः प्रतिगृह्णन्तु, भुमौ पिण्डं मयोज्झतम्, इदं वायसेभ्यः इदं न मम.

देव बलि के लिए: ॐ देवाः मनुष्याः पशवो वयांसि, सिद्धाः सयक्षोरगदैत्यसंघाः, प्रेताः पिशाचास्तरवः समस्ता, ये चान्नमिच्छन्ति मया प्रदत्तम्, इदं अन्नं देवादिभ्यः इदं न मम्.

पिपीलिकादि बलि के लिए: ॐ पिपीलिकाः कीटपतंगकाद्याः, बुभुक्षिताः कमर्निबन्धबद्धाः, तेषां हि तृप्त्यथर्मिदं मयान्नं, तेभ्यो विसृष्टं सुखिनो भवन्तु, इदं अन्नं पिपीलिकादिभ्यः इदं न मम.