Parshuram Jayanti 2023: भगवान परशुराम का जन्मोत्सव, जानें परशुराम नाम के पीछे की वजह, इस मौके पर अपनों को दें बधाई
Parshuram Jayanti 2023: हर साल वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को भगवान परशुराम का जन्मोत्सव बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है. परशुराम सात चिरंजीवी में से एक हैं और आज भी धरती पर जीवित मौजूद हैं.
Parshuram Jayanti 2023: हर साल वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को भगवान परशुराम का जन्मोत्सव बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है. भगवान परशुराम महर्षि जमदग्नि और रेणुका की संतान हैं. भगवान परशुराम का जन्म तृतीया को सायंकाल प्रदोष काल में हुआ था. ऐसा कहा जाता है कि परशुराम सात चिरंजीवी में से एक हैं और आज भी धरती पर जीवित मौजूद हैं.
जानें परशुराम नाम के पीछे की वजह भगवान परशुराम के जन्म के बाद माता-पिता ने भगवान परशुराम का नाम राम रखा था. वे भगवान शंकर के अनन्य भक्त थे, उनके कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने उन्हें कई अस्त्र, शस्त्र प्रदान किए थे. फरसा भी उन्हीं में से एक था. फरसा को परशु कहा जाता है इसलिए परशु मिलने के बाद उनका नाम परशुराम हुआ. प्रदोष काल में होगा पूजन भगवान परशुराम का जन्म सायंकाल प्रदोष काल में हुआ था. इसलिए प्रदोष काल सायं 6 बजकर 49 मिनट से 7 बजकर 11 मिनट तक रहेगा.इस दौरान भगवान परशुराम की मूर्ति को दूध और गंगाजल से स्नान करवाकर मंत्रोच्चार सहित विधि-विधान से पूजन संपन्न करें. इस मौके पर परिजनों और दोस्तों को दें शुभकामनाएं ब्राह्मण बदलते हैँ तो नतीजे बदल जाते हैं, सारे मंजर, सारे अंजाम बदल जाते हैं, कौन कहता है परशुराम फिर नहीं पैदा होते, पैदा तो होते हैं, लेकिन नाम बदल जाते हैं. परशुराम जयंती की शुभकामनाएं. अंतर जाने जन्म और मरण के, नमन करता सारा संसार जिसे, बने जल भी अमृत उनके चरण के। परशुराम जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं! परशुराम है प्रतीक प्यार का राम है प्रतीक सत्य सनातन का इस प्रकार परशुराम का अर्थ है पराक्रम के कारक और सत्य के धारक परशुराम जयंती की हार्दिक बधाई सुन लो दादा परशुराम की ललकारो को उठा लो बंद पड़ी तलवारों को जय परशुराम आओ सब मनाये परशुराम जयंती लेकर प्रभु का नाम करे गुणगान मांगे आशिष परमेश्वर से जप कर उनका नाम जय परशुराम हैप्पी परशुराम जयंती भगवान परशुराम की आरती ओउम जय परशुधारी, स्वामी जय परशुधारी। सुर नर मुनिजन सेवत, श्रीपति अवतारी।। ओउम जय।। जमदग्नी सुत नरसिंह, मां रेणुका जाया। मार्तण्ड भृगु वंशज, त्रिभुवन यश छाया।। ओउम जय।। कांधे सूत्र जनेऊ, गल रुद्राक्ष माला। चरण खड़ाऊँ शोभे, तिलक त्रिपुण्ड भाला।। ओउम जय।। ताम्र श्याम घन केशा, शीश जटा बांधी। सुजन हेतु ऋतु मधुमय, दुष्ट दलन आंधी।। ओउम जय।। मुख रवि तेज विराजत, रक्त वर्ण नैना। दीन-हीन गो विप्रन, रक्षक दिन रैना।। ओउम जय।। कर शोभित बर परशु, निगमागम ज्ञाता। कंध चार-शर वैष्णव, ब्राह्मण कुल त्राता।। ओउम जय।। माता पिता तुम स्वामी, मीत सखा मेरे। मेरी बिरत संभारो, द्वार पड़ा मैं तेरे।। ओउम जय।। अजर-अमर श्री परशुराम की, आरती जो गावे। पूर्णेन्दु शिव साखि, सुख सम्पति पावे।। ओउम जय।।