दहेज के खिलाफ कानून बनाने के लिए सरकार ने की थी कड़ी मशक्कत, पहली बार साथ बैठी थी लोकसभा-राज्यसभा
Parliament Special Session: संसद का विशेष सत्र शुरू हो गया है. पहले दिन पीएम नरेंद्र मोदी ने भारत की संसदीय इतिहास की यात्रा के बारे में विस्तार से बात की है. संसद के इतिहास में कई पड़ाव ऐसे थे जो देश के लिए मील का पत्थर साबित हुआ है. पहला मौका जब बुलाया गया था संसद का संयुक्त सत्र.
Parliament Special Session: संसद का विशेष सत्र आज से शुरू हो गया है. ये सत्र अगले पांच दिन यानी 22 सितंबर 2023 तक चलेगा. संसद के विशेष सत्र में पीएम नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में पिछले 75 साल के संसदीय सफर पर विस्तार से बात की थी. साथ ही ये पुरानी संसद भवन में आखिरी सत्र भी है. संसदीय इतिहास में कई ऐसे पड़ाव आए हैं, जो देश के लिए मील का पत्थर साबित हुआ है. साल 1961 में भारतीय संसद का पहली बार संयुक्त सत्र हुआ था. दहेज निरोधक एक्ट को पास करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 108 के अनुसार संसद का संयुक्त सत्र बुलाया गया था.
Parliament Special Session: 1961 में संसद का पहला संयुक्त सत्र
प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के कार्यकाल में पहली बार संसद का संयुक्त सत्र बुलाया गया था. उस वक्त दोनों ही सदनों में कांग्रेस बहुमत में थी. हालांकि, पंडित नेहरू एक्ट के विवादित प्रावधानों पर दोनों सदनों में एकसाथ चर्चा कराना चाहते थे. दहेज निरोधक विधेयक, 1959 सबसे पहले लोकसभा में पेश किया गया था. यहां से ये बिल पारित किया गया. राज्य सभा ने इसके बाद इसमें कुछ संशोधनों पर जोर दिया था, जिस पर लोकसभा सहमत नहीं हुई. आखिरी में इस विधेयक को 09.05.1961 को संयुक्त बैठक में पारित किया गया.
Parliament Special Session: तीन बार हुआ संसद का संयुक्त सत्र
दहजे निरोधक विधेयक के बाद संसद का संयुक्त सत्र दो बार बुलाया गया था. बैंकिंग सेवा आयोग (निरसन) विधेयक, 1978 सबसे पहले लोकसभा में पेश किया गया और पारित किया गया, जिसे राज्य सभा ने अस्वीकार कर दिया. इसे 16.05.1978 को संयुक्त बैठक में पारित किया गया. आतंकवाद निरोधक विधेयक 2002 लोकसभा द्वारा पारित किया गया, लेकिन राज्य सभा ने इसे अस्वीकार कर दिया. इसे बाद में 26.03.2002 को संयुक्त बैठक में पारित किया गया.
Parliament Special Session: संसद में क्या बोले पीएम नरेंद्र मोदी
पीएम मोदी ने संसद के विशेष सत्र को संबोधित करते हुए कहा,' देश की 75 वर्षों की संसदीय यात्रा इसका एक बार पुनः स्मरण करने के लिए और नए सदन में जाने से पहले उन प्रेरक पलों को, इतिहास की महत्वपूर्ण घड़ी को स्मरण करते हुए आगे बढ़ने का यह अवसर है. हम सब इस ऐतिहासिक भवन से विदा ले रहे हैं. आज़ादी के पहले यह सदन इंपीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल का स्थान हुआ करता था. आज़ादी के बाद इसे संसद भवन के रूप में पहचान मिली।यह सही है कि इस इमारत(पुराने संसद भवन) के निर्माण करने का निर्णय विदेश शासकों का था लेकिन यह बात हम न कभी भूल सकते हैं और हम गर्व से कह सकते हैं इस भवन के निर्माण में पसीना मेरे देशवासियों का लगा था, परिश्रम मेरे देशवासियों का लगा था और पैसे भी मेरे देश के लोगों के थे.'
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बकौल पीएम मोदी, 'इसी भवन में दो साल 11 महीने तक संविधान सभा की बैठकें हुईं और देश के लिए एक मार्ग दर्शक जो आज भी हमें चलाते हैं उन्होंने हमें संविधान दिया. हमारा संविधान लागू हुआ, इन 75 वर्षों में सबसे बड़ी उपलब्धि देश के सामान्य मानवीय का इस संसद पर विश्वास बढ़ना रहा है.'