Who is CJI DY Chandrachud: जस्टिस धनजंय वाई चंद्रचूड़ (Justice DY Chandrachud) ने आज 9 नवंबर, 2022 को देश के नए प्रमुख न्यायाधीश या Chief Justice of India के पद पर शपथ ले ली. जस्टिस चंद्रचूड़ ने 50वें सीजेआई के तौर पर जस्टिस यूयू ललित की जगह ली. उनके बारे में सबसे दिलचस्प बात एक ये है कि उनके पिता वाईवी चंद्रचूड़ भी देश के चीफ जस्टिस रह चुके हैं, इतना ही नहीं वो अबतक सबसे लंबे वक्त तक सीजेआई बने रहने वाले पहले और आखिरी जज हैं. जस्टिस वाईवी चंद्रचूड़ देश के 16वें सीजेआई थे और इस पद पर सात सालों तक बने रहे. हालांकि, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ दो सालों यानी 10 नवंबर, 2024 तक इस पद पर रहेंगे.

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बतौर सुप्रीम कोर्ट जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ पिछले कुछ सालों के अहम फैसलों का एक चेहरा रहे हैं. कई फैसले उन्होंने खुद सुनाए हैं, वहीं कुछ फैसलों में वो खिलाफ भी रहे हैं. अपने कार्यकाल में उन्होंने कौन से कुछ अहम मामलों की सुनवाई की है, उनपर हम यहां नजर डाल रहे हैं.

राइट टू प्राइवेसी (Right to Privacy Supreme Court Case)

निजता के अधिकार को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई थी, जिसपर नौ जजों की बेंच ने फैसला दिया था कि हमारा संविधान सबको निजता का मूलभूत अधिकार देता है. जस्टिस चंद्रचूड़ इस बेंच का हिस्सा थे. उन्होंने इससे संबंधित आधार एक्ट मामले की सुनवाई भी की थी, जिसमें उन्होंने असहमति में फैसला दिया था. उन्होंने कहा था कि आधार एक्ट को असंवैधानिक तरीके से मनी बिल की तरह पास किया गया था.

समलैंगिकता पर दिया ऐतिहासिक फैसला (Section 377 Decriminalization)

सेक्शन 377 को डिक्रिमिनलाइज करने में उनका बड़ा रोल रहा. समलैंगिंक रिश्तों को अपराध न घोषित करते हुए उन्होंने आईपीसी की इस धारा को लोगों की समानता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, जीवन और निजता के अधिकार का उल्लंघन करने वाला बताया था.

अविवाहित महिलाओं को गर्भपात का अधिकार (Abortion for Unmarried Women)

हाल ही में आए एक फैसले में जस्टिस चंद्रचूड़ ने फैसला सुनाया था कि अब अविवाहित महिलाओं को भी विवाहित महिलाओं की ही तरह गर्भ धारण करने के अगले 24 हफ्तों के अंदर गर्भपात कराने का अधिकार है. इसके पहले अविवाहित महिलाएं 20 हफ्तों के अंदर ही अबॉर्शन का रास्ता चुन सकती थीं.

वन रैंक वन पेंशन (One Rank, One Pension)

पूर्व सैनिकों बनाम केंद्र सरकार के बीच चले इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सशस्त्र बलों के लिए वन रैंक वन पेंशन स्कीम को बरकरार रखा था. कोर्ट का कहना था कि उसे 7 नवंबर, 2015 को जारी की गई सरकारी अधिसूचना और इसके सिद्धांत में कोई असंवैधानिक कमजोरी नहीं नजर आई थी.

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