Maha Shivratri 2023: देवों के देव भगवान भोले नाथ के भक्तों के लिये महाशिवरात्रि का व्रत विशेष महत्व रखता हैं. यह पर्व फाल्गुन कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन मनाया जाता है. इस वर्ष यह उपवास 18 फरवरी 2023 शनिवार के दिन का रहेगा. इस दिन का व्रत रखने से भगवान भोले नाथ शीघ्र प्रसन्न होकर, उपवासक की मनोकामना पूरी करते हैं. इस व्रत को सभी स्त्री-पुरुष, बच्चे, युवा, वृद्धों के द्वारा किया जा सकता हैं. आइए श्री गुरु ज्योतिष शोध संस्थान के अध्यक्ष प्रसिद्ध (ज्योतिषाचार्य ) गुरूदेव पंडित ह्रदय रंजन शर्मा से जानते महाशिवरात्रि की पूजा से जुड़ी सभी जरूरी बातें, पूजन विधि और शुभ मुहूर्त.

चार प्रहर पूजन अभिषेक विधान

  • प्रथम प्रहर- सायं 6:48 से रात्रि 9:58 तक
  • द्वितीय प्रहर- रात्रि 9:58 से रात्रि 1:08 तक
  • तृतीय प्रहर- रात्रि 1:08 से रात्रि 4:18 तक
  • चतुर्थ प्रहर- रात्रि 4:18 से प्रातः 7:28 बजे तक पहर की गणना अपने स्थानीय सूर्योदय से करना विधि सम्मत है.

महाशिवरात्रि का शुभ मुहूर्त एवं शिवरात्रि पूजा विधि

  • महाशिवरात्रि 2023 तिथि : 18 फरवरी 2023
  • चतुर्दशी तिथि आरंभ :शनिवार 18 फरवरी रात्रि 08:02बजे से
  • चतुर्दशी तिथि समाप्त :रविवार19 फरवरी सायंकाल 04:18 पर
  • निशिथ काल पूजा : 18 फरवरी दिन शनिवार की रात्रि, 24:07 से 24:57
  • पारण का समय : 06:46 से 10:26 (19 फरवरी 2023)

पूजन सामग्री 

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शिव की मूर्ति या शिवलिंगम, अबीर- गुलाल, चन्दन ( सफ़ेद ) अगरबत्ती धुप ( गुग्गुल ) बिलिपत्र बिल्व फल, तुलसी, दूर्वा, चावल, पुष्प, फल,मिठाई, पान-सुपारी,जनेऊ, पंचामृत, आसन, कलश, दीपक, शंख, घंट, आरती यह सब चीजो का होना आवश्यक है

महाशिवरात्रि व्रत पूजन विधि

  • महाशिवरात्रि के दिन गंगा स्नान कर भगवान शिव की आराधना करने वाले भक्तों महाशिवरात्रि व्रत पूजन विधि के अनुसार करने से इच्छित फल, धन, सौभाग्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है.
  • महाशिवरात्रि व्रत का सबसे प्रमुख भाग उपवास होता है. सबसे पहले पानी में गंगाजल डाल कर स्नान करें.
  • स्नान आदि ने निवृत्त होने के बाद हाथ में अक्षत और गंगाजल लेकर महाशिवरात्रि व्रत का संकल्प लें.
  • संकल्प लेने के बाद सफेद वस्त्र धारण करें और किसी भी शिव मंदिर में जाकर शिवजी का पंचामृत से अभिषेक कराएं.
  • शंकर जी का अभिषके करने के लिए पंचामृत में दूध, दही, शहद, गंगाजल और काले तिल का उपयोग करें.
  • पंचामृत से अभिषेक के बाद शिवलिंग का विधि पूर्वक पूजन करें शिवलिंग बेल-पत्र, गाजर, बेर, धतूरा, भांग, सेंगरी और जनेव जरूर चढ़ाएं.
  • भगवान शिव जी का अभिषेक करने के पश्च्यात शिवपरिवार को केसर का तिलक करें और सफेद फूल की माला अर्पित करें.
  • महाशिवरात्रि पर भगवान का तिलक करने के बाद उन्हें स्वच्छ वस्त्र अर्पित करें और धूप-दीप शिवजी की पूजा करें.
  • शिव चालीसा का पाठ करने के बाद शिव जी की आरती करना ना भूलें.
  • आरती करने के बाद उत्तर दिशा की तरफ मुख करके ॐ नमः शिवाय मंत्र का 108 बार जाप करें. रात्रि में शिव जी का जागरण करना अनिवार्य है.
  • शिव आराधना में लीन रहते हुए अगली सुबह शिवजी को फल का भोग लगा कर स्वयं भी फल का सेवन कर व्रत खोलें.

शिवपूजन में ध्यान रखने जैसे कुछ खास बातें

  • स्नान कर के ही पूजा में बेठे.
  • साफ सुथरा वस्त्र धारण करे ( हो सके तो बिना सिलाई वस्त्र हो.).
  • आसन एकदम स्वच्छ चाहिए ( दर्भासन हो तो उत्तम ).
  • पूर्व या उत्तर दिशा में मुह कर के ही पूजा करें.
  • बिल्व पत्र पर जो चिकनाहट वाला भाग होता हे वाही शिवलिंग पर चढ़ाये ( कृपया खंडित बिल्व पत्र न चढ़ाएं ).
  • संपूर्ण परिक्रमा कभी भी मत करे ( जहा से जल पसार हो रहा हे वहां से वापस आ जाए ).
  • पूजन में चंपा के पुष्प का प्रयोग ना करें.
  • बिल्व पत्र के उपरांत आक के फुल, धतुरा पुष्प या नील कमल का प्रयोग अवश्य कर सकते हैं.
  • शिव प्रसाद का कभी भी इंकार मत करे ( ये सब के लिए पवित्र है ).

महाशिवरात्री व्रत की विधि 

महाशिवरात्री व्रत को रखने वालों को उपवास के पूरे दिन, भगवान भोले नाथ का ध्यान करना चाहिए. प्रात: स्नान करने के बाद भस्म का तिलक कर रुद्राक्ष की माला धारण की जाती है. इसके ईशान कोण दिशा की ओर मुख कर शिव का पूजन धूप, पुष्पादि व अन्य पूजन सामग्री से पूजन करना चाहिए. इस व्रत में चारों पहर में पूजन किया जाता है. प्रत्येक पहर की पूजा में "उँ नम: शिवाय" व " शिवाय नम:" का जाप करते रहना चाहिए. अगर शिव मंदिर में यह जाप करना संभव न हों, तो घर की पूर्व दिशा में, किसी शान्त स्थान पर जाकर इस मंत्र का जाप किया जा सकता हैं. चारों पहर में किये जाने वाले इन मंत्र जापों से विशेष पुन्य प्राप्त होता है. इसके अतिरिक्त उपावस की अवधि में 4 पहर का रुद्राभिषेक करने से भगवान शंकर अत्यन्त प्रसन्न होते है

शिवरात्री व्रत की महिमा 

इस व्रत के विषय में यह मान्यता है कि इस व्रत को जो जन करता है, उसे सभी भोगों की प्राप्ति के बाद, मोक्ष की प्राप्ति होती है. यह व्रत सभी पापों का क्षय करने वाला है, व इस व्रत को लगातार 14 वर्षो तक करने के बाद विधि-विधान के अनुसार इसका उद्यापन कर देना चाहिए.

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