Millet Superfood for Health: जिस तरह रिश्तों के नाम बदल चुके हैं- यानी पहले जो चाचा जी और ताऊ जी थे वो अब अंकल (Uncle) हैं, और चाची और ताई (Aunt) आंट हैं वैसे ही आटे का चोकर अब wheat bran, बाजरा millet और जौ barley है – रिश्तों की ही तरह अब हमारा अपना ही संस्कारी अनाज मॉडर्न अवतार में मार्केट में पहुंच चुका है. सदियों पुराना हमारा अपना जाना पहचाना अनाज हेल्थ फूड, ऑर्गेनिक फूड और फिटनेस डाइट वाले नामों के साथ बिक रहा है. ये वो अनाज है जो कभी भारतीय खाने का अटूट हिस्सा रहा है. बाजरा, ज्वार, जौ, रागी जैसे मोटे अनाज गेंहूं के आटे में मिलाकर या दूसरे अवतारों में पहले खूब खाए जाते थे लेकिन धीरे धीरे इनकी जगह गेंहूं चावल और मैदे ने ले ली. इसकी कई वजहें रहीं – गेंहू और चावल टेस्ट में मोटे अनाज से बेहतर माने गए. भागते-दौड़ते लाइफ स्टाइल में आसानी से पकने वाले चावल और गेंहू के पिसे हुए और पैकेटबंद आटे ने अपनी जगह बना ली. लेकिन कार्बोहाइड्रेट और स्टार्च से भरपूर गेंहू और चावल ने हमें कई जरूरी पोषक तत्वों से दूर कर दिया.

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न्यूट्रिशनिस्ट डॉ शिखा शर्मा के मुताबिक खान पान में बदलाव का नतीजा ये हुआ है कि मोटापे, डायबिटीज़ और दिल की बीमारियों के मामले में देश पहले नंबर पर पहुंच गया. एक बार फिर हेल्थ के जानकारों को मोटे अनाज की खूबियां याद आई. फिटनेस को लेकर जागरूक होने वाले भारतीयों को बाजरा, आटे का चोकर, रागी और ज्वार प्रिस्क्रिप्शन में लिखकर दिए जाने लगे नतीजा ये हुआ कि जो खाना कभी हम बुजुर्गों की सलाह मानकर खाते थे वो अब हाई एंड स्टोर से हेल्थ फूड की पैकिंग में भारी कीमत देकर खरीद रहे हैं. 

जब पीएम ने किया Millet Lunch

प्रधानमंत्री मोदी ने मंगलवार को संसद में मोटे अनाज यानी मिलेट्स यानी बाजरे से बनी चीजों का लंच किया. ये अनाज भारतीय खानपान के साथ ही हमारी संस्कृति और संस्कार में भी शामिल है. कृषि मंत्रालय की ओर से आयोजित मंगलवार को मोटा अनाज से तैयार लंच कायक्रम में पीएम, उपराष्ट्रपति सहित पक्ष-विपक्ष के सभी सांसद शामिल हुए. इस दौरान, रागी से तैयार व्यंजनों में रागी डोसा, रागी रोटी के साथ नारियल की चटनी, कालू हुली, चटनी पाउडर सहित अन्य डिश बनाई गई थी.  संयुक्त राष्ट्र ने मोटे अनाज के फायदों को देखते हुए वर्ष 2023 को अंतरराष्ट्रीय मिलेट वर्ष घोषित किया है.

क्या है मोटा अनाज और क्या हैं इसके फायदे?

आपके लिए ये जानना जरूरी है कि आमतौर पर मोटा अनाज क्या होता है. Oats यानी जई, Barley मतलब जौ, Millet यानी बाजरा और Maize यानी मक्का. ये सभी मोटे अनाज हैं. आप इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि इसमें गेहूं और चावल शामिल नहीं है. देश में एक दौर था जब गेंहू-चावल आसानी से मिलते नहीं थे. गेंहू-चावल की पैदावार भी कम थी. हरित क्रांति के बाद हालात बदले और धीरे-धीरे मोटा अनाज थाली से गायब होने लगे. लेकिन अब जौ, बाजरा और मक्का का पुराना दौर नए स्टाइल में लौट रहा है. लोगों को इसकी अहमियत समझ में आ रही है. सेहत के लिए इसे Diet Plan में शामिल किया जा रहा है. अब ये बड़े बड़े Shoping Mall और Store में शानदार पैकेजिंग के साथ बिक रहा है. बड़ी-बड़ी कंपनियां ORGANIC FOOD और DIET FOOD के नए नामों के साथ पारंपरिक खाने को बेचकर मोटा मुनाफा कमा रही है.

फिर से देश में मोटे अनाज की मांग बढ़ी है और इसकी एक बड़ी वजह सेहत है. इसके कई फायदे हैं. न्यूट्रिशनिस्ट के मुताबिक बाजरा खाने से एनर्जी मिलती है. बाजरा कॉलेस्ट्रॉल लेवल को कंट्रोल करता है जिससे हृदय स्वस्थ रहता है. डायबिटीज़ से बचाव में भी बाजरा काम आता है. बाजरे में फाइबर भरपूर मात्रा में होता है जो पाचन क्रिया को भी दुरुस्त करता है. जौ का पानी पीने से वज़न कंट्रोल में रहता है. किडनी की सेहत के लिए जौ को अच्छा माना गया है. ज्वार को वैसे तो पशुओं के चारे में बहुत इस्तेमाल किया जाता है लेकिन इसकी एक किस्म में भरपूर मात्रा में पोटैशियम, फॉस्फोरस, कैल्शियम और आयरन पाया जाता है. खून बढ़ाना हो या बीमारियों से दूर रहने के लिए इम्यून सिस्टम मजबूत करना हो – ज्वार बहुत काम आती है. Journal Global Enviornmental change की एक रिपोर्ट में यह दावा किया गया है कि गेहूं और धान यानी चावल के मुकाबले मोटे अनाजों में पानी की खपत बहुत कम होती है. इसके अलावा इसकी खेती के लिए यूरिया और दूसरे रसायनों की जरूरत भी नहीं पड़ती. ऐसे में ये पर्यावरण के लिए भी बेहतर हैं.

"इन मोटे अनाजों" में है बहुत दम

बाजरा खाने से एनर्जी मिलती है. ये कोलस्ट्रॉल लेवल को कंट्रोल करता है जिससे दिल स्वस्थ रहता है. डायबिटीज से बचाव में भी बाजरा काम आता है. बाजरे में फाइबर भरपूर मात्रा में होता है जो पाचन क्रिया को दुरुस्त रखने का काम भी करता है. जौ का पानी पीने से वज़न कंट्रोल में रहता है. किडनी की सेहत के लिए जौ को अच्छा माना गया है. ज्वार को वैसे तो पशुओं के चारे में बहुत इस्तेमाल किया जाता है लेकिन इसकी एक किस्म में भरपूर मात्रा में पोटेशियम, फॉस्फोरस, कैल्शियम और आयरन पाया जाता है. खून बढ़ाना हो या बीमारियों से दूर रहने के लिए इम्यून सिस्टम मजबूत करना हो, ज्वार बहुत काम आती है.

आपने अक्सर दादा-दादी को ये कहते सुना होगा कि अब खाने में वो बात नहीं, जो पहले होती थी. या फिर ये भी सुना होगा कि अब अनाज में वो ताकत और सेहत नहीं, जो पहले थी. उनकी ये बातें पूरी तरह सच है. हम अपने पारंपरिक खानपान से दूर हो गए हैं. हमारी थाली में जौ, बाजरा और मक्का के लिए कोई जगह नहीं है. पिछले कुछ वर्षों में हमारी खाने की आदतें बदली हैं. हर किचन में डिजाइनर थैले में बंद आटा और चावल मौजूद हैं.

मोटे अनाज का स्टाइलिश अवतार मार्केट में ऊंचे दामों पर है मौजूद 

किसान जिस बाजरे को खेत में उगाता है और एक किलो के बदले उसे 17 रुपए मिलते हैं. उसी को थोक बाजार में 23 रुपए के हिसाब से बेचा जाता है, जबकि मार्केट में स्मार्ट पैकिंग और हेल्थ फूड की ब्रांडिंग के साथ वही बाजरा हमें 80 रुपए किलो में मिलता है. इसी तरह ज्वार के बदले में किसान को 16 रुपए किलो में मंडी में बेचता है थोक व्यापारी को 30 रुपए मिलते हैं. वही ज्वार डिपार्टमेंटल स्टोर में 120 रुपए किलो के भाव में बिक रहा है. किसान जिस जौ को 10 रुपए में बेच देता है. जौ थोक बाजार में 24 रुपए किलो बिकती है जबकि मार्केट में यही जौ आपको 120 रुपए किलो से कम पर नहीं मिलेगी. 200 ग्राम का रागी चिप्स 100 से ढाई सौ रुपये तक में मिलता है. बाजरे का 100 ग्राम बिस्किट 100 से 150 रुपये में मिलते हैं और जौ के 100 ग्राम बिस्किट का पैकेट 150 रुपये तक में मिलता है. जबकि होलसेल मार्केट में रागी, बाजरा और जौ की कीमत 20 से 40 रुपये प्रति किलो है.

आलम ये है कि अब स्मार्टफूड के नए अवतार वाले ये अनाज आपको छोटी मोटी किराना दुकानों पर शायद मिलें भी नहीं. थोक मार्केट में खुले में बिना स्मार्ट पैकिंग के रखा गया ज्वार और बाजरा जैसा मोटा अनाज अभी भी जानवरों और पक्षियों के चारे के लिए ही ज्यादा खरीदा जा रहा है. यानी वो मोटा और सस्ता अनाज जिसे पशुओं के चारे के लायक समझकर बेरुखी से थाली से गायब कर दिया गया, आज अपनी अहमियत रागी बिस्किट, ओटमील दलिया और मिलेट म्यूसली के स्मार्ट अवतार बता रहा है. खान-पान को लेकर दादी-नानी के नुस्खों और नसीहतों को पुराना और आउटडेटेड समझने वालों को अब जिम ट्रेनर और न्यूट्रीशनिस्ट वही बातें नए अंदाज़ में समझा रहे हैं.

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