हाल के दिनों में कार्डियक अरेस्ट (दिल का दौरा) के मामलों में तेजी आई है, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि ऐसे मामलों का सही समय पर पता कैसे लगाया जाए और उन्हें रोका कैसे जाए. भारत में और मेडिकल क्षेत्र में दिल की बीमारियों और गैर-संक्रामक रोगों के बढ़ते मामलों ने चिंता बढ़ा दी है. इसके लिए भारत के युवाओं की जीवनशैली और स्वास्थ्य से जुड़ी आदतों में सुधार करने की जरूरत है.

74% मौत के लिए जिम्‍मेदार हैं ये बीमारियां

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दिल की बीमारियां, स्ट्रोक, कैंसर, मधुमेह और फेफड़ों की बीमारियां जैसी गैर-संक्रामक बीमारियों का बढ़ना, मौतों का एक कारण हो सकता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, ऐसी बीमारियां दुनिया भर में 74% मौतों के लिए जिम्मेदार हैं. ये बीमारियां 21वीं सदी की सबसे चुनौतीपूर्ण जीवनशैली से जुड़ी समस्याएं मानी जाती हैं.इसमें भी दिल की बीमारियों के मामले तेजी से बढ़े हैं. दिल की बीमारियों के मामले 1990 में 25.7 मिलियन थे और 2023 में ये बढ़कर 64 मिलियन हो गए हैं. यह आंकड़ा चौंकाने वाला है क्योंकि वर्ल्ड हार्ट फेडरेशन के डेटा के अनुसार, भारत में दुनिया भर के कुल मधुमेह के मामलों का 15% हिस्सा है.

40-50% दिल से जुड़ी बीमारियां 55 साल से कम उम्र के लोगों में 

इसके अलावा, 40-50% दिल से जुड़ी बीमारियां 55 साल से कम उम्र के लोगों में पाई जाती हैं. इस गंभीर स्थिति को देखते हुए, उम्मीद की जाती है कि समाज और युवा स्वस्थ जीवनशैली अपनाएं. लेकिन तेज-तर्रार जीवनशैली, डिजिटल आदतें, काम-काज व जिंदगी में संतुलन की कमी एक स्वस्थ जीवन के लिए अनुकूल माहौल नहीं देती हैं. वर्कलोड दोस्तों और समाज की उम्मीदें और खराब खानपान की आदतें, लंबे समय तक तनाव और चिंता का कारण बनती हैं. इससे शरीर में कोर्टिसोल हार्मोन का उत्पादन बढ़ता है, जो दिल की बीमारियों को और बढ़ावा देता है.

बढ़ता हुआ कोर्टिसोल बढ़ाता है खतरा

विश्व स्वास्थ्य संगठन के 2018 के आंकड़ों से पता चलता है कि बढ़ता हुआ कोर्टिसोल न केवल गैर-संक्रामक रोगों को बढ़ाता है, बल्कि यह अंतःस्रावी और तंत्रिका तंत्र से जुड़ी समस्याओं का कारण भी बन सकता है. क्लीनिकल स्टडीज और हालिया मामलों ने यह भी बताया है कि उच्च कोर्टिसोल डीएनएस तक को नुकसान पहुंचा सकता है. आमतौर पर लोगों का मानना है कि युवाओं को डायबिटीज या दिल की बीमारियां नहीं होती हैं,  लेकिन असल में, इस तरह की गैर-संक्रामक बीमारियां धीरे-धीरे वर्षों में विकसित होती हैं. 20 और 30 की उम्र में की गई खराब जीवनशैली की आदतें भविष्य में स्वास्थ्य संकट का कारण बन सकती हैं. युवा पेशेवर जो करियर बनाने की होड़ में होते हैं, अक्सर अपनी बुनियादी स्वास्थ्य देखभाल और काम की आदतों की अनदेखी कर देते हैं.

खानपान की आदतें भी जिम्‍मेदार

जो लोग जंक फूड के खतरों को समझते हैं, वे भी सही खानपान के फैसले नहीं कर पाते. आजकल उन तमाम प्रोडक्‍ट्स जिनको हेल्‍दी बताया जाता है, जैसे  स्मूदी, एनर्जी बार, फ्लेवर्ड योगर्ट यहां तक कि कुछ तरह के सलाद में भी चीनी की अधिक मात्रा होती है. ये इस तरह के रोग और तनाव को बढ़ावा देने का काम करती है. लंबे समय तक तनाव से कोर्टिसोल का स्तर बढ़ता है, उच्च रक्तचाप होता है, और शरीर में सूजन होती है, जो दिल की बीमारियों का कारण बनती हैं. ये बात लोगों को समझने की जरूरत है कि शारीरिक सेहत के साथ-साथ मानसिक सेहत का खयाल रखना भी उतना ही जरूरी है.

ये बात रखें ध्‍यान

समाज या कॉर्पोरेट सेटअप को दोष देना समस्या का हल नहीं है, बल्कि हमें समस्या को समझने और मानने की जरूरत है. शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर एक संतुलित तरीका अपनाने की आवश्यकता है. युवाओं को अपने स्वास्थ्य के प्रति सोच को बदलकर रोकथाम पर ध्यान देना होगा. यह धारणा कि यंग एज पर गंभीर बीमारियां नहीं होतीं, गलत और खतरनाक है. कैंसर, दिल की बीमारियां और मधुमेह जैसी बीमारियां आपकी उम्र देखकर नुकसान नहीं पहुंचातीं, वे आपकी अनदेखी का फायदा उठाती हैं.

(डॉ. मनप्रीत सेठी मैक्स हॉस्पिटल्स, दिल्ली एनसीआर में पीडियाट्रिक एंडोक्रिनोलॉजिस्ट हैं.)