निकट दृष्टि दोष की समस्‍या आजकल तेजी से बढ़ र‍ही है. इस परेशानी को मेडिकल भाषा में मायोपिया कहा जाता है. कई बार ये समस्‍या जन्‍म के साथ ही विकसित हो जाती है. ऐसी स्थिति में जीवनभर सुधारत्मक (करेक्टिपव) लेंस पर निर्भर रहना पड़ सकता है. अगर मायोपिया का समय रहते इलाज ना किया जाए तो इससे मोतियाबिंद, ग्लूकोमा और रेटिना डिटेचमेंट जैसी आंखों की गंभीर समस्‍याएं भी हो सकती हैं. जानिए क्‍या है इस समस्‍या की वजह और इलाज.

इन कारणों से होती है परेशानी

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डॉ. अजय शर्मा के मुताबिक मायोपिया की वजह आनुवांशिक और पर्यावरण से जुड़े मिले-जुले कारण हो सकते है. इसके साथ ही स्क्रीन पर ज्यादा समय बिताना और पर्याप्त रूप से बाहरी गतिविधियां ना करना, खराब खानपान आदि भी इसके कारण हो सकते हैं. हालांकि जिस तरह तेजी से ये बीमारी पैर पसार रही है, उतनी ही तेजी से इसके उपचार के तमाम तरीके भी सामने आ रहे हैं.

अत्याधुनिक विकल्प है सिल्‍क प्रक्रिया

समय के साथ मायोपिया की समस्या को दूर करने के लिए विज़न करेक्शन की काफी सारी तकनीकें आ गई हैं. चश्मे और कॉन्टैक्ट लेंसेस तो पुराने तरीके हो गए हैं, इनसे तात्कालिक राहत ही मिलती है. तमाम लोग आजकल इस समस्‍या को दूर करने के लिए स्‍थायी और परेशानीमुक्‍त विकल्‍प को चुनना पसंद करते हैं. ऐसे में ज्‍यादातर लोग लेज़र विज़न करेक्शन प्रक्रिया की मांग तेजी से बढ़ी है. हालां‍कि लेज़र-असिस्टेड इन सीटू केराटोमाइल्यूसिस (लेसिक) और फोटोरिफ्रेक्टिव केराटेक्टॉमी (पीआरके) जैसे पारंपरिक तरीकों से मायोपिया और एस्टिमेटिज्म का प्रभावी इलाज हुआ है, लेकिन अत्याधुनिक विकल्प सिल्क के साथ इन प्रक्रियाओं ने काफी नई और सटीक प्रक्रियाओं के लिए रास्ता खोला है.

क्‍या है सिल्क प्रक्रिया

सिल्क या स्मूद इनसिजन लेंटिक्यूल केराटोमाइल्यूसिस एक नवीनतम लेज़र विज़न करेक्शन तकनीक है, जिसे एस्टिमेटिज्म के साथ या उसके बिना मायोपिया की समस्या को दूर करने के लिए तैयार किया गया है. सिल्क को जो बात पुरानी तकनीकों से अलग बनाती है, वो है रोगियों को ज्यादा बेहतर, सटीक और आरामदायक अनुभव का मिलना.

सिल्क प्रक्रिया से जुड़े तमाम फायदे

1. लेसिक की तुलना में ऑपरेशन के बाद, सिल्क ड्राइनेस को कम करता है, जिससे इस प्रक्रिया के दौरान कॉर्निया की नसें प्रभावित नहीं होतीं. इस वजह से परेशानी कम महसूस होती है.

2. आमतौर पर, इस प्रक्रिया के बाद रोगी एक या दो दिन में ही अपनी बेहतर विजन का फायदा मिलने लगता है. लेंटिक्यूलर डाइसेक्शन की बदौलत जल्दी रिकवरी होती है.

3. इस प्रक्रिया में कॉर्निया पर लेज़र से एक छोटा-सा चीरा लगाया जाता है, आमतौर पर वह आकार में 3 मिलीमीटर का होता है. इससे कॉर्निया की सुरक्षा और शक्ति का बचाव सुनिश्चित होता है.

4. रिफ्रेक्टिव करेक्शन प्रक्रिया में सिल्क ने काफी ज्यादा उन्नति की है, जिससे पारंपरिक लेसिक की तुलना में एक सुरक्षित तथा प्रभावी विकल्प मिल रहा है.