देवउठनी एकादशी को बहुत खास माना जाता है. कुछ लोग इसे बड़ी एकादशी भी कहते हैं. मान्‍यता है कि देवशयनी एकादशी के दिन श्रीहरि योगनिद्रा में चले जाते हैं. इसके साथ चातुर्मास शुरू हो जाते हैं. लेकिन कार्तिक मास की शुक्‍ल पक्ष की एकादशी के दिन भगवान को योग निद्रा से जगाया जाता है. उनकी विशेष पूजा की जाती है और माता तुलसी के साथ शालीग्राम रूप में उनका विवाह संपन्‍न कराया जाता है. देव जागरण के कारण इस एकादशी को देवउठनी एकादशी के नाम से जाना जाता है. इसी के साथ चातुर्मास का समापन हो जाता है और सभी तरह के शुभ कामों की शुरुआत हो जाती है.

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इस एकादशी को देवोत्‍थान एकादशी और प्रबोधिनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. आज 4 नवंबर को देवउठनी एकादशी है. माना जाता है कि आज के दिन व्रत व भगवान का पूजन करने वाले को बैकुंठ की प्राप्ति होती है. ज्योतिषाचार्य डॉ. अरविंद मिश्र का कहना है कि आप चाहें देवोत्थान एकादशी का व्रत रहें या न रहें, लेकिन कुछ ऐसे नियम हैं जिनका पालन इस एकादशी पर जरूर करना चाहिए. 

 

आज के दिन भूलकर भी न करें ये गलतियां

 

  • तुलसी को माता लक्ष्‍मी का रूप माना जाता है. देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी का भगवान विष्‍णु के शालीग्राम स्‍वरूप के साथ विवाह करवाया जाता है. ऐसे में आज के दिन तुलसी के पत्‍तों को तोड़ने का प्रयास न करें. आज के दिन विशेष रूप से माता तुलसी का पूजन करें. 
  • अगर आप आज के दिन व्रत नहीं रख रहे हैं, तो भी कुछ चीजों में संयम बरतें. आज के दिन प्याज, लहसुन, अंडा, मांस, मदिरा आदि तामसिक चीजें न खाएं. इसके अलावा ब्रह्मचर्य का पालन करें.  
  • शास्त्रों में एकादशी के दिन चावल या चावल से बनी चीजों के खाने के लिए मना किया गया है. देवउठनी एकादशी को तो विशेष एकादशी माना गया है. इसलिए आज के दिन भूलकर भी चावल का सेवन न करें. 
  • आज के दिन किसी भी बुजुर्ग का अनादर न करें. क्लेश, झगड़ा न करें. पूरे दिन मन में प्रभु का नाम लें और घर में माहौल उत्‍सवमय बनाकर रखें. 
  • आज के दिन को बेहद शुभ माना जाता है. इस दिन को सोकर न गंवाएं. आप आज के दिन गीता का पाठ करें. मंत्रों का जाप करें और दिन में सोने से विशेष रूप से परहेज करें. हालांकि बीमार और असमर्थ लोगों के लिए इन नियमों में छूट है.

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ऐसे कराएं तुलसी विवाह

पूजा की सामग्री:  भगवान विष्‍णु की प्रतिमा या शालीग्राम स्‍वरूप, तुलसी का पौधा, गन्‍ना, दो चौकी, आंवला, मूली, शकरकंद, बेर, सिंघाड़ा, सीताफल, अमरूद और अन्‍य मौसमी फल, भगवान के वस्‍त्र, सुहाग का सामान, लाल चुनरी, साड़ी या लाल लहंगा तुलसी मैया के लिए, हल्‍दी, धूप और दीप.

पूजा व विवाह:  सबसे पहले आंगन में गेरू और चूने से रंगोली बनाएं. चौकी पर लाल वस्‍त्र बिछाएं और इस पर शालीग्राम स्‍वरूप को एक सिंहासन पर बैठाएं. तुलसी के गमले को गेरू से रंगें और दूसरी चौकी पर वस्‍त्र बिछाकर तुलसी के गमले को रखें. गन्‍ने से मंडप तैयार करें. शालिग्राम और तुलसी जी के समक्ष घी का दीपक जलाएं और रोली या कुमकुम से तिलक करें. तुलसी पर लाल रंग की चुनरी चढ़ाएं, चूड़ी, बिंदी आदि सुहाग का सामान अर्पित करें. पूजा का सारा सामान भगवान को अर्पित करें. इसके बाद चौकी समेत  शालीग्राम को हाथों में लेकर तुलसी की सात परिक्रमा करें. इसके बाद शालीग्राम और तुलसी मैया की आरती करें और भूल की क्षमा याचना करें. पूजा के बाद सभी को प्रसाद वितरण करें.