Karnataka Election 2023: बात कर्नाटक की सियासत की- जानें कैसे कर्नाटक में भाजपा का हुआ उदय और सत्ता तक पहुंची
1957 से लेकर 1982 तक कर्नाटक में कांग्रेस ने एकतरफा राज किया. इस दौरान आठ मुख्यमंत्री आए. आखिरी मुख्यमंत्री देवराज उर्स थे. लेकिन 1983 के बाद कर्नाटक में बहुत कुछ बदल गया.
Karnataka Assembly Elections 2023: कर्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए 10 मई को मतदान हो चुका है और 13 मई को रिजल्ट सबके सामने होंगे. मौजूदा समय में इस राज्य में भाजपा की सरकार है और बसवराज बोम्मई मुख्यमंत्री हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि कभी इस राज्य में एकतरफा कांग्रेस का शासन हुआ करता था. फिर कैसे सूबे में हुआ भाजपा का उदय और कैसे सत्ता तक पहुंची पार्टी, यहां जानिए इसके बारे में.
1883 में हुई भाजपा की एंट्री
1957 से लेकर 1982 तक कर्नाटक में कांग्रेस ने एकतरफा राज किया. इस दौरान आठ मुख्यमंत्री आए. आखिरी मुख्यमंत्री देवराज उर्स थे. लेकिन 1983 के बाद कर्नाटक में बहुत कुछ बदल गया. यही वो साल था जब पहली बार भारतीय जनता पार्टी ने कर्नाटक विधानसभा की 110 सीटों पर चुनाव लड़ा और उसमें से वो 18 जीतने में कामयाब रही. उस साल में कांग्रेस 224 में से सिर्फ 82 सीट ही जीत सकी. पार्टी का वोट शेयर भी 3.8 फीसदी कम होकर 40.4 फीसदी पर आ गया. तब पहली बार सूबे में गैर कांग्रेसी सरकार बनी. जनता दल ने भारतीय जनता पार्टी और अन्य दलों के साथ मिलकर सरकार बनाई और रामकृष्ण हेगड़े वहां के मुख्यमंत्री बने. हालांकि सरकार बहुत ज्यादा लंबे समय तक नहीं चल पायी और 1985 में फिर से एक बार चुनाव हुए.
1985 के चुनाव में रामकृष्ण हेगड़े के नेतृत्व वाली जनता पार्टी ने कमाल कर दिया और 139 सीटें जीतकर सत्ता में वापसी की. वहीं बीजेपी ने इस चुनाव में 116 सीटों पर उम्मीदवारों को खड़ा किया लेकिन सिर्फ दो ही सीटें हासिल कर पायी. 1988 में हेगड़े को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा. 1989 में फिर से विधानसभा चुनाव हुए और इस चुनाव में 178 सीटें जीतकर कांग्रेस ने फिर से वापसी की. लेकिन भाजपा को सिर्फ 4 सीटें ही मिलीं.
90 के दशक में मिला बूस्ट
वर्ष 1990 से मंडल कमीशन की सिफ़ारिशों से उपजे आंदोलन और राम जन्मभूमि के आंदोलन की वजह से भाजपा को बूस्ट मिला और भाजपा ने राज्य में अपनी पकड़ को मजबूत करना शुरू किया. इसके बाद पार्टी का ग्राफ धीरे-धीरे बढ़ता गया. 1994 के चुनाव में भाजपा ने 40 सीटें जीतीं, इसके बाद 1999 में 44 और 2004 में 79 सीटें जीतीं. 2007 में जेडीएस और भाजपा की मिलीजुली सरकार बनी और बी एस येदियुरप्पा राज्य के मुख्यमंत्री बने. हालांकि कुछ समय बाद ही उन्हें इस्तीफा देना पड़ा.
2008 में भाजपा को मिली शानदार जीत
2008 में एक बार फिर से चुनाव हुआ और इस चुनाव ने भाजपा ने शानदार जीत हासिल की. इस विधानसभा चुनाव में भाजपा को 110 सीटें मिलीं और बी एस येदियुरप्पा फिर से मुख्यमंत्री बने. लेकिन भ्रष्टाचार की आंच ने उन्हें कार्यकाल पूरा नहीं करने दिया. कर्नाटक लोकयुक्त की रिपोर्ट में उनके खिलाफ भ्रष्टाचार का मामला सामने आया. जिसके बाद उन्हें इस्तीफा देना पड़ा और सदानंद गौड़ा को सीएम बनाया गया.
2013 में भाजपा को फिर से झटका लगा और सीट सिमटकर 40 रह गईं. लेकिन साल 2018 में एक बार फिर से बीजेपी ने 104 सीटें प्राप्त कीं. हालांकि बीजेपी बहुमत हासिल नहीं कर पायी और उस साल कांग्रेस और जेडीएस ने मिलकर सरकार बना ली. इस सरकार के गिरने के बाद फिर से भाजपा की सरकार बनी. एक बार फिर से येदियुरप्पा मुख्यमंत्री बने. लेकिन कुछ समय बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया. इसके बाद बसवराज बोम्मई को सीएम बनाया गया.
कर्नाटक में बीजेपी को मजबूत करने वाले व्यक्ति हैं येदियुरप्पा
दक्षिण में बीजेपी को मजबूत करने का श्रेय येदियुरप्पा को ही जाता है. येदियुरप्पा की मजबूती का अंदाज़ा इससे भी लगाया जा सकता है कि जब साल 2011 में उन्होंने मुख्यमंत्री पद छोड़ा था. उसके अगले चुनाव में बीजेपी को करारी हार मिली थी. येदियुरप्पा लिंगायत समुदाय से आते हैं. कर्नाटक में सबसे बड़ा समुदाय इसी जाति का है. राज्य के गठन के समय से ही यहां इस जाति का दबदबा रहा है. 1956 से लेकर अब तक इस राज्य को लिंगायत जाति से 8 सीएम मिल चुके हैं. बीजेपी इस बात को अच्छी तरह से समझती है कि येदियुरप्पा फैक्टर उसके लिए कितना जरूरी है. यही वजह है कि 2023 के चुनाव अभियान की कमान भी बीजेपी ने येदियुरप्पा को ही सौंपी, जबकि इस साल खुद येदियुरप्पा चुनाव नहीं लड़े हैं. अब देखना ये होगा कि इस बार येदियुरप्पा फैक्टर बीजेपी के कितने काम आता है.