कभी इजरायल बनने के पक्ष में नहीं था भारत, फिर कैसे दी राष्ट्र के तौर पर मान्यता और कैसे मजबूत हुए दोनों देशों के संबन्ध
बीते कुछ सालों में भारत और इजरायल के बीच संबन्ध काफी मजबूत हुए हैं. लेकिन क्या आपको पता है कि एक समय ऐसा भी था, जब भारत के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू इजरायल बनने के पक्ष में नहीं थे. जानिए इजरायल के बनने से लेकर अब तक की खास बातें.
इजरायल और फिलिस्तीन के चरमपंथी इस्लामिक संगठन हमास के बीच युद्ध चल रहा है. इस युद्ध के चलते हजारों लोगों की मौत हो चुकी है. युद्ध के इन हालातों अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, इटली, जर्मनी जैसे देशों के अलावा भारत भी इजरायल के साथ खड़ा हुआ है. बीते कुछ सालों में भारत और इजरायल के बीच संबन्ध काफी मजबूत हुए हैं. लेकिन क्या आपको पता है कि एक समय ऐसा भी था, जब भारत के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू इजरायल बनने के पक्ष में नहीं थे. हालांकि बाद में उन्होंने इजरायल को राष्ट्र के तौर पर मान्यता दे दी थी. आइए आपको बताते हैं इजरायल के बनने से लेकर अभी तक की खास बातें.
फिलिस्तीन का बंटवारा नहीं चाहता था भारत
14 मई 1948 को इजरायल को आजादी मिली थी. आजादी के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ में इजरायल और फिलिस्तीन दो देश बनाने का प्रस्ताव पेश हुआ. इसके पीछे तर्क दिया गया कि फिलिस्तीनी अरबों के साथ यहूदी लोगों का भी देश होना चाहिए. जब इस मुद्दे को लेकर वोटिंग हुई तो ज्यादातर वोट इजरायल और फिलिस्तीन दो अलग देश और स्वतंत्र देश बनाने की सहमति को लेकर मिले. उस समय भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू फिलिस्तीन के बंटवारे के खिलाफ थे. इसलिए भारत ने 1948 में संयुक्त राष्ट्र में इजरायल के गठन के खिलाफ वोट किया. हालांकि भारत ने 17 सितंबर, 1950 को आधिकारिक रूप से इजरायल को एक संप्रभु राष्ट्र के रूप में मान्यता दे दी.
भारत और इजरायल की दोस्ती
इजरायल को राष्ट्र की मान्यता देने के बाद भी भारत और इजरायल के बीच राजनयिक संबंध लंबे समय तक नहीं रहे. इसका कारण है कि भारत के रिश्ते फिलिस्तीन के साथ ज्यादा करीबी थे. संयुक्त राष्ट्र में कई मौकों पर भारत फिलीस्तीन के साथ खड़ा रहा है. लेकिन जब 1962 में भारत चीन से युद्ध लड़ रहा था, उस समय इजरायल ने भारत को मदद की पेशकश की. इजरायल ने भारत को मोर्टार, मोर्टार रोधी उपकरण दिए थे. इसके अलावा 1965 और 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध में भी भारत को अरब देशों का साथ नहीं मिला, जबकि भारत उनके करीबियों में था. लेकिन उस समय इजरायल ने भारत को सैन्य साजो सामान उपलब्ध कराए. हालांकि इसके बाद भी दोनों देशों के बीच राजनीतिक संबन्ध शुरू नहीं हो सके.
एनडीए के कार्यकाल में बढ़ी दोस्ती
1977 में मोरारजी देसाई सरकार ने इजरायल से बेहतर संबंध बनाने की कोशिश की थी, उस समय इजरायल के रक्षा मंत्री कई सीक्रेट ट्रिप पर भारत आए थे. लेकिन सही मायने में भारत ने 1992 में इजरायल के साथ राजनयिक संबंध बहाल किया, जब पीवी नरसिंहराव देश के प्रधानमंत्री बने. उन्होंने पूर्ण रूप से इजरायल के साथ राजनीतिक संबन्ध की शुरुआत की. हालांकि ये दोस्ती एनडीए यानी अटलजी के कार्यकाल में बढ़ना शुरू हुई. साल 2003 में पहली बार भारतीय विदेश मंत्री जसवंत सिंह इजरायल गए. इसके बाद पीएम नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी इजरायल गए थे. वे इजरायल जाने वाले देश के पहले राष्ट्रपति बने थे. इसके बाद साल 2017 में पीएम नरेंद्र मोदी इजरायल के दौरे पर गए और इजरायल का दौरा करने वाले भारत के पहले प्रधानमंत्री बने और इस तरह दोनों देशों के बीच संबन्ध समय के साथ मजबूत होते गए.
फिलिस्तीन के बंटवारे और भारत के बंटवारे में भी समानता
फिलिस्तीन के बंटवारे के इतिहास को अगर आप देखें तो 1948 में फिलिस्तीन के दो टुकड़े हुए और एक नया देश इजरायल बना था. उससे एक साल पहले 1947 में भारत का बंटवारा हुआ था और पाकिस्तान बना था. दोनों ही जगह पर ये अंग्रेजों का किया धरा है. अंग्रेज जहां भी गए, उस देश को आजाद करने के बाद लड़ाई का एक बीज बो दिया. इजरायल और फिलिस्तीन बनाने का फैसला लंदन में हुआ. इंडिया-पाकिस्तान भी लंदन की ही देन हैं. बंटवारे के बाद ही दोनों देशों के बीच विवाद शुरू हो गया.
दरअसल 1948 में फिलिस्तीन का बंटवारा बेलफोर घोषणापत्र के तहत किया गया. ये कॉन्सेप्ट अंग्रेज ही लेकर आए थे. आर्थर बेलफोर ब्रिटेन के विदेश सचिव थे, जिन्होंने फिलिस्तीन में यहूदियों के लिए एक अलग देश बनाने की जरूरत बताई थी. बंटवारे के समय फिलिस्तीन की कुल जमीन का 44% हिस्सा इजरायल और 48% फिलिस्तीन को दिया गया. वहीं यरुशलम को 8% जमीन देकर इसे UNO का हिस्सा बना दिया गया. UNO के पास जो हिस्सा था, उस पर न तो इजरायल अपना हक दिखा सकता था और न ही फिलिस्तीन. अरब देश इससे नाराज हो गए. इजराइल बना ही था कि जंग शुरू हो गई ठीक उसी तरह जैसे पाकिस्तान बनने के बाद कश्मीर मुद्दे पर दोनों देशों के विवाद शुरू हो गए थे और आज भी सिलसिला जारी है. इजरायल के बनने के साथ ही उस पर अरब देशों ने हमला बोल दिया. लेकिन इजरायल ने जंग जीत ली क्योंकि ये उसके अस्तित्व का सवाल था.
यरुशलम को लेकर क्या है विवाद
भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर को लेकर जो विवाद है वो तो आप जानते हैं, लेकिन यरुशलम को लेकर क्या विवाद है, वो नहीं जानते होंगे. दरअसल ये शहर तीन धर्मों की आस्था का केंद्र है. ईसाई, मुस्लिम और यहूदी. ईसाई मानते हैं कि यरुशलम ही बैथलेहम है जहां ईसा मसीह का जन्म हुआ. यहूदी मानते हैं कि यहीं से उनके धर्म की शुरुआत हुई और मुस्लिम मानते हैं कि उनकी तीसरी सबसे पवित्र मस्जिद अल अक्सा यहीं है.
48% से 12% जमीन पर सिमट गया फिलिस्तीन
बंटवारे के समय फिलिस्तीन को 48% जमीन दी गई थी, लेकिन फिलिस्तीन उसे भी संभाल नहीं पाया. इजरायल अपनी ताकत की दम पर कब्जा जमाता चला गया. 1948, 1956, 1967, 1973 और 1982 में झड़पें हुईं. हर बार इजरायल फिलिस्तीन पर भारी पड़ा और फिलिस्तीन की जमीन पर कब्जा करता चला गया. आज फिलिस्तान मात्र 12% जमीन पर सिमट गया. अब फिलिस्तीन अपनी जमीन इजरायल से वापस चाहता है. लेकिन इजरायल ने जंग जीतकर जमीन को हासिल किया है, इसलिए वो जमीन वापस नहीं करेगा. आज फिलिस्तीन का बचा हुआ जमीन का हिस्सा भी दो टुकड़ों में बंट चुका है. पहला वेस्ट बैंक और दूसरा गाजा पट्टी. वेस्ट बैंक में रहने वाले समस्या का शांतिपूर्ण हल चाहते हैं. वहीं, गाजा पर हमास का कब्जा है. वो जंग के जरिए जमीन पर कब्जा जमाना चाहता है.
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