आंखें सिर्फ आपकी खूबसूरती को बयां नहीं करतीं, बल्कि आपके व्‍यक्तित्‍व को भी बताती हैं. किसी से मिलते समय उसकी आंखों की चंचलता, स्थिरता वगैरह को देखकर उसके स्‍वभाव का अंदाजा लग जाता है. लेकिन आंखों का रंग कुदरत की देन होता है. क्‍या आपने कभी सोचा है कि आंखों का रंग काला, नीला या भूरा किस वजह से होता है. आइए आपको बताते हैं-

आंखों का रंग अलग-अलग होने की वजह

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दरअसल आंखों की पुतली के रंग को तय करने में मेलानिन की मात्रा का बड़ा रोल होता है. हमारी त्‍वचा और बालों के रंग को निर्धारित करने में भी मेलानिन की बड़ी भूमिका होती है. मेलानिन एक पिगमेंट होता है जो हर व्‍यक्ति के अंदर तमाम रूपों और अनुपात में मौजूद होता है. अगर मेलानिन कम हो तो आंखों का रंग नीला हो जाता है और इसकी अधिकता होने पर आंखों का रंग भूरा और काला हो जाता है. 

इसके अलावा प्रोटीन का घनत्व और आसपास पहले उजाले पर भी आंखों का रंग निर्भर करता है. इसके अलावा अलग-अलग रंग के आंखों के पीछे जीन्‍स भी जिम्‍मेदार होते हैं. OCA2 और HERC2. ये दोनों ही क्रोमोसोम 15 में मौजूद होते हैं. इन्‍हें भी आंखों के रंग के लिए जिम्‍मेदार माना जाता है.

2 फीसदी लोगों की आंखें हरी

दुनिया में करीब 2 फीसदी लोग ऐसे भी हैं, जिनकी आंखों का रंग हरा होता है. मेलानिन की मात्रा कम होने के कारण ऐसा होता है. वहीं कुछ की आंखों का रंग भूरे और नीले रंग के बीच का होता है. इसका कारण है कि पुतली के बाहरी हिस्से में मैलानिन की मात्रा ज्यादा हो जाती है. वैज्ञानिकों की मानें तो बच्‍चे के जन्‍म के बाद शुरुआती समय में आंखों का रंग बदलने की भी काफी संभावना होती है. ऐसा कई बार देखा गया है कि कोई बच्‍चा जब पैदा हुआ हो, तब उसकी आंखें नीली हों और बाद में भूरी या काली हो गई हों.

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