चंद्रयान-3 की लैंडिंग तो सफलतापूर्वक हो गई, लेकिन लैंडिंग के बाद हमारा चंद्रयान किस तरह काम कर रहा है, ये जानने की‍ दिलचस्‍पी हर भारतीय को है. लैंडिंग के बाद इसरो लगातार अपडेट्स दे रहा है. कुछ समय पहले ही इसरो ने एक नया वीडियो शेयर किया है जिसमें रोवर प्रज्ञान को लैंडर से बाहर निकलते हुए दिखाया गया है. इस वीडियो में प्रज्ञान रोवर को लैंडर से बाहर आते हुए और चांद की जमीं पर सैर करते हुए साफतौर पर देखा जा सकता है. बता दें कि इस बार रोवर को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि वह जहां-जहां गुजरेगा, वहां भारतीय तिरंगे की शान अशोक चक्र और इसरो  के निशान भी छोड़ता जाएगा.

गुरुवार को इसरो ने दिया था ये अपडेट

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चंद्रयान का अपडेट इसरो ने गुरुवार की शाम को भी दिया था और बताया था कि चांद पर सभी एक्टिविटीज तय शेड्यूल के हिसाब से हो रही हैं. सभी सिस्‍टम नॉर्मल तरीके से काम कर रहे हैं. लैंडर मॉड्यूल पेलोड ILSA, RAMBHA और ChaSTE चालू हो गए हैं. रोवर ने भी काम करना शुरू कर दिया है. उस समय भी इसरो ने 2.17 मिनट का एक वीडियो भी जारी किया. ये वीडियो उस समय का था, जब जब लैंडर चांद की सतह पर लैंड करने जा रहा था. टचडाउन से ठीक पहले लैंडर इमेजर कैमरे ने चंद्रमा की कुछ तस्‍वीरें खींची थीं. 

Video देखें:

साउथ पोल पर चंद्रयान ने क्‍यों की लैंडिंग

बता दें कि भारत के चंद्रयान-3 ने 23 अगस्‍त को चांद के साउथ पोल की सतह पर लैंडिंग की है. साउथ पोल का चुनाव क्‍यों किया गया, इसको लेकर इसरो प्रमुख एस सोमनाथ ने बताया कि 'हम दक्षिणी ध्रुव के करीब पहुंच गए हैं, जो लगभग 70 डिग्री पर है. सूरज की रोशनी कम पहुंचने के कारण दक्षिण ध्रुव में खास तरह के लाभ हैं. जैसे इसमें अधिक वैज्ञानिक सामग्री होने की संभावना है. यही वजह है कि चंद्र मिशन पर काम कर रहे वैज्ञानिकों ने इसके साउथ पोल पर विशेष रुचि दिखाई है. अंतत: इंसान वहां जाना चाहता है और वहां निवेश करके आगे की यात्रा करना चाहता है. इसके लिए सबसे अच्‍छी जगह कौन सी है, इसकी हम तलाश कर रहे हैं. दक्षिणी ध्रुव में इस तरह की जगह की संभावना है.'

भारत के लिए ये मिशन रहा बेहद खास

भारत के लिए चंद्रयान-3 मिशन बेहद खास रहा है. सीमित संसाधनों और कम बजट में भारत को मिली इस उपलब्धि ने दुनिया में नए भारत की तस्‍वीर को उजागर किया है. साउथ पोल पर उतरना आसान काम नहीं था, यही वजह है कि आज तक वहां कोई भी देश नहीं उतरा. साउथ पोल पर सबसे बड़ी चुनौती है गहरे गड्ढों की मौजूदगी. इसी के कारण साल 2019 में चंद्रयान-2 सफल नहीं हो पाया था. ये गड्ढे विक्रम लैंडर की क्रैश लैंडिंग की वजह बने थे. ऊबड़-खाबड़ सतह पर मैन एयरक्राफ्ट के बजाय लैंडर-रोवर को चांद पर उतारना ज्‍यादा कठिन है. इसके अलावा वहां अंधेरा है, जो चुनौतियों को और भी ज्‍यादा बढ़ा देता है. इसके अलावा वहां का तापमान -300 डिग्री फारेनहाइट या इससे भी नीचे जा सकता है. भूकंप के झटके परिस्थितियों को और मुश्किल बनाते हैं.

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