कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि (Kartik Purnima) को गुरू नानक देव का जन्‍म हुआ था, इस‍लिए इस दिन को गुरू नानक जयंती (Guru Nanak Jayanti) के तौर पर मनाया जाता है. गुरु नानक जी सिख समुदाय के पहले गुरु थे, उन्‍होंने ही सिख धर्म की नींव रखी थी. अपने जीवन को उन्‍होंने न सिर्फ दूसरों के लिए समर्पित कर दिया बल्कि लोगों को सच का आइना दिखाकर उनका मार्गदर्शन भी किया. नानक जी को उनके अनुयायी बाबा नानक, नानकदेव और नानकशाह जैसे नामों से भी पुकारते हैं और उनके जन्‍म दिवस को ‘प्रकाश पर्व' के तौर पर मनाते हैं. आज 15 नवंबर को देशभर में नानक जयंती मनाई जा रही है. इस मौके पर आपको बताते हैं उनके 4 ऐसे स‍बक जो इंसान को जीवन के सच से वाकिफ करवाते हैं. 

1. किरत करो, नाम जपो और वंड छको

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किरत करो यानी किसी भी व्‍यक्ति को मेहनत करके धन कमाना चाहिए. नाम जपो यानी हमें हर क्षण ईश्‍वर को याद करना चाहिए, उनका नाम जपना चाहिए और वंड छको यानी अपनी अर्जित की गई वस्‍तु को दूसरों से भी बांटों और मिलकर उसका उपभोग करो. इस नियम को मानते हुए सिख अपनी अर्जित की गई आय का दसवां हिस्सा साझा करते हैं, जिसे दसवंध कहते हैं. इसी से लंगर चलता है. 

2. हक पराया नानका उस सूअर, उस गाय

गुरु नानक जी हमेशा लोगों से कहा करते थे कि कभी किसी का हक नहीं छीनना चाहिए. उन्‍होंंने लोगों चोरी की गई संपत्ति की तुलना मुसलमानों के लिए सुअर के मांस और हिंदुओं के लिए गाय के मांस से की थी.

3. महिलाओं का सम्‍मान

गुरु नानक जी कहा करते थे- भंड जमिये,भंड निमिये, भंड मंगन व्याह, भंडो होवे दोस्ती,भंडो चले राह, भंड मुआ भंड भालिया, भंड होवे भदान, सो क्यों मंदा आखिये जित जमेह राजान, भंडो ही भंड उपजे,भंडो बाज ना कोई,नानक भंडो बाराह, एको सच्चा सोहि.

इसका अर्थ है कि हम सब स्त्री से पैदा हुए हैं, गर्भ धारण करने वाली स्त्री ही है. स्त्री से विवाह करते हैं, स्त्री से दोस्ती होती है. स्‍त्री से भी सभ्‍यता चलती है. जब कोई स्‍त्री की मृत्‍यु होती है, तब उसकी महत्‍ता का अहसास होता है. स्‍त्री से ही ये सारी व्‍यवस्‍था बनी है, तो उस स्‍त्री को बुरा क्यों कहते हैं? महापुरुष और राजा भी एक स्‍त्री से ही जन्‍मे हैं, स्‍त्री से ही स्‍त्री जन्‍म लेती है और स्त्री न हो, तो कोई भी अस्तित्व में नहीं. इस संसार में केवल शाश्वत भगवान ही हैं, जो स्त्री पर निर्भर नहीं हैं.

4. एक ओंकार सतनाम 

गुरु नानक जी ने कहा है- एक ओंकार सतनाम करता पुरखु, निरभउ निरबैर अकाल मूरति अजूनी सैभं गुरप्रसादि यानी इस पूरे संसार का स्वामी एक ही है और वह ही ब्रह्माण्ड का निर्माता है. वही सत्‍य है. वो भय से रहित है और किसी के प्रति बैर भाव नहीं रखता है. वो जन्म मरण के बंधन से मुक्त है और स्वयं में ही परिपूर्ण है.