हर साल भाद्रपद मास के शुक्‍ल पक्ष की चतुर्दशी से अनंत चौदस तक गणेशोत्‍सव को सेलिब्रेट किया जाता है. महाराष्‍ट्र समेत तमाम राज्‍यों में इस पर्व को काफी धूमधाम से मनाया जाता है. गणेशोत्‍सव के दौरान भगवान गणेश के भक्‍त उन्‍हें घर पर लेकर आते हैं, दस दिनों तक उनका विशेष पूजन करते हैं और इसके बाद गणपति का विसर्जन कर दिया जाता है. लेकिन क्‍या आप जानते हैं कि गणेश फेस्टिवल को इस तरह मनाने की शुरुआत कैसे हुई थी ? इस बार गणेश चतुर्थी 31 अगस्‍त से शुरू हो रही है, इस मौके पर हम आपको बताते हैं गणेशोत्‍सव से जुड़ा वो किस्‍सा, जिससे हो सकता है कि आप अनजान हों.

बाल गंगाधर तिलक ने रखी थी गणेशोत्‍सव की नींव

COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

कहा जाता है कि गणेशोत्‍सव की नींव आजादी की लड़ाई के दौरान लोकमान्‍य बाल गंगाधर तिलक ने रखी थी.  1890 के दशक में स्‍वतंत्रता संग्राम के दौरान तिलक अक्‍सर ये सोचते थे कि किस तरह से आमजन काे एकजुट किया जाए. इसके लिए उन्‍होंने धार्मिक मार्ग को चुना. महाराष्‍ट्र में पेशवाओं ने लंबे समय से गणपति की पूजा की परंपरा शुरू कर दी थी. इस बीच तिलक के मन में खयाल आया‍ कि क्‍यों न गणेशोत्‍सव को घरों की बजाय सार्वजनिक स्‍थल पर मनाया जाए. तब 1894 में इस महापर्व की नींव रखी गई. सार्वजनिक रूप से गणेशोत्‍सव मनाने का श्रेय बाल गंगाधर तिलक को दिया जाता है.

गणेशोत्‍सव के लिए तिलक को सहना पड़ा था विरोध

कहा जाता है कि गणेशोत्‍सव की शुरुआत करने के लिए बाल गंगाधर तिलक को काफी विरोध सहना पड़ा था. लेकिन लाला लाजपत राय, बिपिनचंद्र पाल, अरविंदो घोष, राजनरायण बोस और अश्विनीकुमार दत्त ने उनका साथ दिया और गणेशोत्‍सव की शुरुआत हुई. इससे तिलक की लोकप्रियता भी कहीं ज्‍यादा बढ़ गई. 20वीं सदी में गणेशोत्‍सव और भी लोकप्रिय हो गया. इसके बाद वीर सावरकर व कवि गोविंद ने नासिक में गणेशोत्सव मनाने के लिए मित्रमेला संस्था बनाई थी.

आजादी का एक बड़ा जनआंदोलन बन गया था गणेशोत्‍सव

कहा जाता है कि उस समय गणेशोत्‍सव ने वर्धा, नागपुर और अमरावती जैसे शहरों में आजादी का एक बड़ा जनआंदोलन छेड़ दिया था. सार्वजनिक गणेशोत्सव से अंग्रेज घबरा गए थे और इस बारे में रोलेट समिति की रिपोर्ट में भी गंभीर चिंता जताते हुए कहा गया था कि गणेशोत्‍सव के दौरान युवाओं की टोलियां सड़कों पर अंग्रेजी हुकूमत का विरोध करती हैं और ब्रिटिश सरकार की खिलाफत में गीत गाती हैं. उनके खिलाफ हथियार उठाने का आवाह्न किया जाता है. कुल मिलाकर उस समय गणेशोत्‍सव एक ऐसा आंदोलन बन गया था, जिसने ब्रिटिश साम्राज्‍य की नींव को हिलाने में बहुत बड़ा योगदान दिया था.

समय के साथ लोकप्रिय हो गया गणेशोत्‍सव

समय बढ़ने के साथ  गणेशोत्‍सव भी लोकप्रिय होता गया. आज गणेशोत्‍सव को महाराष्‍ट्र के बड़े त्‍योहार के रूप में मनाया जाता है. साथ ही मध्‍यप्रदेश, राजस्‍थान समेत तमाम राज्‍यों में भी इसे काफी धूमधाम से मनाया जाता है.  इस बीच गणपति को मंगलमूर्ति के रूप में पूजा जाता है. जाति की बेड़‍ियों को तोड़कर सभी लोग इस पूजा में शामिल होते हैं.